हर तरह के जीवन का आरंभ एक छोटे सेल में होता है जो पोटोप्लाइजम से भरा रहता है। सेल इतना छोटा होता है कि वो माइक्रोस्कोप से ही देखा जा सकता है। हमारे शरीर में करीब 2600000 करोड़ सेल होते हैं। यह एक-दूसरे से मिलकर शरीर को जीवित रखते हैं। दिमाग हमारे सिर में मजबूत सुरक्षा के साथ स्थापित है।
हमारी नैतिक भावनाएं बुद्धि सही निर्णय इच्छा शक्ति और यह सभी दिमाग से किया जाता है।सेरी ब्राउन के अनुसार इसमें 12000000000 नर्व सेल होते हैं जो लगातार सारे शरीर को आदेश देते रहते हैं। यह शरीर की सभी अंगों में जुड़ा रहता है। अगर पैरालाइज है तो इसका मतलब है कि शरीर के एक भाग में नुकसान हुआ है। एक सुई की नोक में लगे खून में करीब 60 लाख रेड ब्लड सेल होते हैं। यह भोजन और आक्सीजन शरीर के विभिन्न अंगों में पहुंचाते हैं। करीब 6 हजार सफेद ब्लड सेल हैं जो शरीर के किटाणुओं से रक्षा करते हैं। (खून करीब 20 हजार कि. मी.) खून की नसों में बहता है।
हृदय एक अद्भुत पंप है जिसका कोई इंसान निर्माण नहीं कर सकता। सौ साल तक भी बिना खराबी के यह चल सकता है। आंख सबसे अद्भुत व खूबसूरत कार्य आंख का है यह अपना कार्य अद्भुत प्रकाश की किरणों की सहायता से करती है। यह एक सैंकड में 10 बार से ज्यादा नई तस्वीरें दिमाग में भेजती है जो बिल्कुल साफ तस्वीर होती है। प्रकाश किरणें 3 लाख से 8 हजार इंच की बेव लेंथ में होती है। इस दूरी में हम आंख से 230 रंगों के सैट पहचान सकते हैं।
मानव शरीर एक अद्भुत रचना है लेकिन मानव ने अपने स्वार्थ के खातिर गर्भ में ही खून करना शुरू कर दिया है। अपनी भौतिक सुख की बढ़ती अभिलाषा ने मनुष्य को इतना अंधा बना दिया है कि वह आज अपने अजन्में शिशु की गर्भपात द्वारा हत्या करता जा रहा है। गर्भपात की संख्या में हो रही निरंतर वृद्धि समाज के सामने गंभीर चुनौति बन चुकी है। इस घिनौने कार्य के कारण मनुष्य अशांति, मानसिक तनाव और अनेक भयानक दुष्परिणामों का शिकार होता जा रहा हैं वहीं माँ के लिए खतरों का जनक है।
माँ जहां एक ओर गर्भपात कार्य से अपनी संतान खो देती है वहीं दूसरी ओर अपने मानसिक तथा शारीरिक स्वास्थ्य के साथ भी खिलवाड़ करती है। आज का युग विज्ञान का युग कहलाता है और यह सच भी है कि विज्ञान के अविष्कारों ने सारे जगत को एक देहात की तरह सीमित बना दिया है। विज्ञान का उपयोग महत्वपूर्ण है, लेकिन इसका दुरूपयोग हो तो उससे बहुत बड़ी हानि की संभावना है।
आज का भौतिकवाद विज्ञान का दुरूपयोग ही हो रहा है। गर्भ में ही शिशुओं की हत्या इस विज्ञान की देन है। आश्चर्य की बात है कि हत्या मातृशक्ति के द्वारा संपन्न हो रही है। नारी जाति ही यदि शिशुओं का पालन पोषण न कर उनकी हत्या करें फिर इसे कौन बनाएगा। गर्भपात द्वारा शिशु हत्या परमाणु हमले से कम नहीं है।
आज तक इस धरती पर विश्वयुद्ध हुए हैं। कुछ दशकों पूर्व विश्वयुद्ध में जो हिंसा हुई है वह वर्तमान में गर्भपात के द्वारा हो रही मानव हिंसा की तुलना में आज समाज के माथे पर लगा घोर कलंक है। इस का दुष्परिणाम स्वयं समाज को ही भोगना पड़ेंगा। सभी का कर्तव्य है कि यथा शक्ति इस शांति विश्वयुद्ध जैसी स्थिति का डटकर मुकाबला करें।