पटना : बिहार के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने राज्य के बीएड कॉलेजों में एडमिशन के लिए कॉमन एंट्रेंस टेस्ट की शुरूआत की। इस टेस्ट में पास छात्रों का ही राज्य के सरकारी और निजी बीएड कॉलेजों में एमिशन होना है। राज्यपाल की लाख कोशिशों के बाद भी इन कॉलेजों में एमिशन के छात्रों के परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। उन्हें अपने पसंद का कॉलेज नहीं मिल रहा है। इसके अलावा कई ऐसे कॉलेज हैं जो इस एंट्रेंस टेस्ट के आधार पर एमिशन नहीं ले रहे हैं।
राज्य स्तरीय बीएन नामांकन प्रक्रिया में छात्रों को किस तरह से परेशान हुई यह इससे समझा जा सकता है कि घर से तीन सौ किलोमीटर छात्रों को कॉलेज का एलॉटमेंट कर दिया गया। कुछ का दो सौ किलोमीटर पर है। वहीं कुछ का सौ किलोमीटर तक दूर कॉलेज एलॉटमेंट किया गया। वह भी तब जबकि उन कॉलेजों को छात्रों ने च्वाइस फीलिंग में ऑप्शन भी नहीं चुना था।
इस वजह से बड़ी संख्या में छात्रों ने उन कॉलेजों में नामांकन ही नहीं लिया क्योंकि वे वहां जाकर रहकर अगर पढ़ाई करते तो यह उनके लिए संभव ही नहीं था। एक तो फीस डेढ़ लाख रुपये पहले से ही छात्रों के ऊपर बोझ जैसा था और उस पर वहां रहने और खाने का खर्च अगले दो वर्षों में इससे भी दोगुना लग सकता था। चार-पांच लाख रुपये खर्च करके एक बीएड की डिग्री लेना छात्रों के लिए काफी महंगा सौदा साबित हुआ और इसका परिणाम यह हुआ कि बड़ी संख्या में सीटें इस वजह से भी खाली रह गयीं।
छात्रों की परेशानी का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि फीस अधिक होने से कई छात्र पहला इंस्टॉलमेंट नहीं भर सकते थे और इस वजह से भी वे नामांकन नहीं ले पाये। क्योंकि पैसे जुटाने में उन्हें देरी हुई और जब तक पैसे का जुगाड़ हुआ तब तक नामांकन का समय निकल चुका था। ऐसे न जाने कितनी ही कहानियां हैं। ये छात्र परेशान हैं लेकिन कुछ नहीं कर सकते।