कार्मिक, लोक शिकायत एवं पेंशन मामलों के राज्य मंत्री डॉ जितेन्द्र सिंह ने लोकसभा में अपने बयान में कहा, ‘सरकार का मत है कि सिविल सेवा परीक्षा प्रश्न पत्र-2 में अंग्रेजी भाषा वाले प्रश्न के अंकों को ग्रेडिंग या मेरिट में सम्मलित करने का कोई औचित्य नहीं है।’ उन्होंने कहा, सिविल सेवा परीक्षा 2011 के उम्मीदवारों को 2015 की परीक्षा में बैठने का एक और मौका दिया जाना चाहिए।
यूपीएससी सीसैट और इस परीक्षा में अंग्रेजी को तवज्जो दिए जाने को लेकर छात्र पिछले कुछ दिनों से आंदोलन कर रहे हैं। संसद के वर्तमान सत्र में भी यह विषय कई बार उठा था। सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी करने वाले हिन्दी भाषी क्षेत्र के छात्र सीसैट का विरोध कर रहे हैं। उनका दावा है कि सीसैट की वजह से सभी छात्रों को समान अवसर नहीं मिल रहा है और यह कला, समाज विज्ञान और ग्रामीण पृष्ठभूमि के छात्रों के खिलाफ है। छात्रों का दावा है कि सीसैट के एक सेट में 40 से 45 प्रश्न अंग्रेजी में पूछे जाते हैं। सिविल सेवा परीक्षा के पैटर्न में बदलाव को लेकर छात्रों के आंदोलन के बीच यूपीएससी ने 24 अगस्त को होने वाली प्रारंभिक परीक्षा में बैठने वाले अभ्यर्थियों को प्रवेश पत्र जारी करना शुरू कर दिया था। इसके कारण आंदोलन ने उग्र रूप अख्तियार कर लिया था।
सरकार ने इस विषय पर विचार के लिए तीन सदस्यीय समिति नियुक्त की थी जिसने सिविल सेवा एप्टीट्यूट परीक्षा (सीसैट) के पैटर्न को बदलने की परीक्षार्थियों की मांग पर अध्ययन कर रिपोर्ट पेश की। इस विषय पर कार्मिक राज्य मंत्री डॉ जितेन्द्र सिंह की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री राजनाथ सिंह के साथ भी चर्चा हुई थी।
आज भी राज्यसभा में यूपीएससी सीसैट परीक्षा का मुद्दा उठा था और विपक्षी सदस्यों ने सीसैट के मुद्दे पर सरकार पर गुमराह करने का आरोप लगाया और उसके खिलाफ विशेषाधिकार नोटिस दिया। लोकसभा में कार्मिक राज्य मंत्री डॉ जितेन्द्र सिंह के बयान के बाद सपा के धर्मेन्द्र यादव ने सरकार के बयान को आधा अधूरा बताते हुए यह स्पष्ट करने को कहा कि क्या सीसैट को हटा दिया गया है।
बीजद के भतृहरि माहताब ने भी जानना चाहा कि क्या सीसैट को हटा दिया गया है। उधर, राज्यसभा में विभिन्न दलों के सदस्यों ने मंत्री के जवाब के बाद उनसे स्पष्टीकरण मांगना चाहा लेकिन उपसभापति पी जे कुरियन द्वारा इसकी अनुमति यह कह कर नहीं दी गई कि मंत्री का यह बयान स्वत: आधार पर न हो कर सदस्यों की मांग पर दिया गया था, लिहाजा इस पर स्पष्टीकरण नहीं हो सकता। सदस्यों के स्पष्टीकरण की मांग पर अड़े रहने के कारण हुए हंगामे के चलते उच्च सदन की बैठक दस मिनट के लिए स्थगित करना पड़ा।