इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए यूपी में जातिगत रैलियों के आयोजन पर रोक लगा दी है। अदालत ने केंद्र व राज्य सरकारए चुनाव आयोग और चार राजनीतिक पार्टियों कांग्रेस, बीजेपी, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी को नोटिस जारी किए हैं। अगली सुनवाई की तारीख फिलहाल पता नहीं चल पाई है।
इस मामले पर अदालत ने पक्षकारों केंद्र तथा राज्य सरकार समेत भारत निर्वाचन आयोग एवं चार राजनीतिक दलों कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी ;बीजेपीद्धए समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) को नोटिस जारी किए हैं।
जस्टिस उमानाथ सिंह तथा जस्टिस महेंद्र दयाल की खंडपीठ ने यह आदेश स्थानीय वकील मोतीलाल यादव की जनहित याचिका पर दिया है। याचिकाकर्ता का कहना था कि उत्तर प्रदेश में जातियों पर आधारित राजनीतिक रैलियों की बाढ़ आ गई है और सियासी दल ब्राह्मण रैली, क्षत्रिय रैली, वैश्य सम्मेलन आदि नाम देकर अंधाधुंध जातीय रैलियां कर रहे हैं।
गौरतलब है कि यूपी में अक्सशर जाति आधारित रैलियां होती रहती हैं। बात चाहे बीएसपी की हो या सत्ताधारी एसपी कीए ऐसी रैलियों के आयोजन में कोई पार्टी एक.दूसरे से पीछे नहीं रहना चाहती हैण् वोट बैंक की खातिर सियासी पार्टियां अब तक धड़ल्लेक से जाति विशेष पर आधारित रैलियां करती आई हैं।
आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बीएसपी और एसपी पिछले कुछ दिनों से लगातार ब्राह्मण रैलियां कर रही थीं। इससे पहले वैश्य समाज और कुशवाहा समाज की रैलियां भी आयोजित की जा चुकी हैं। बीएसपी ने पिछले दिनों प्रदेश के करीब 40 जिलों में ब्राह्मण भाईचारा सम्मेलन आयोजित किया है। इसके अलावा एसपी द्वारा भी पिछले महीने लखनऊ में ऐसा ही सम्मेलन किया गया था।
इस मामले को लेकर पार्टी के सीनियर नेता और सांसद विजय बहादुर सिंह का कहना है की देश में जाति आधारित राजनीति की शुरुआत कांग्रेस पार्टी ने की थी। कांग्रेस ने अपने फायदे के लिए सियासत में टिकट से लेकर सरकार में मंत्री बनाने तक जातिवाद का सहारा लिया था।