कोयला घोटाले में पूर्व कोल सचिव पी. सी. पारेख और देश के जाने-माने उद्योगपति कुमार मंगलम बिड़ला पर एफआईआर के बाद केंद्र की मनमोहन सरकार बुरी तरह से फंसती दिख रही है। प्रधानमंत्री कार्यालय ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए हिंडाल्को को कोयला ब्लॉक के विवादास्पद आवंटन मुद्दे में किसी तरह की अपराधिता को यह कहते हुए खारिज किया कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उसे मंजूरी मामले की पात्रता के आधार पर दी थी जो उनके समक्ष रखी गई थी।
पी. सी. पारेख द्वारा प्रधानमंत्री पर उंगली उठाए जाने के बाद मामला और संगीन हो गया है। इस मामले मे सबसे विस्फोटक प्रगति तब हुई जब प्रधानमंत्री कार्यालय ने इस बात को कबूल कर लिया कि कुमार मंगलम बिड़ला की कंपनी हिंडाल्को को कोल ब्लॉक के आवंटन की मंजूरी प्रधानमंत्री ने ही एक अक्टूबर 2005 में दी थी।
दिलचस्प तो यह है कि हिंडाल्को को आवंटित कोल ब्लॉक सीबीआई जोर देकर अवैध बता रही है और इसी वजह से मंगलम बिड़ला पर एफआईआर दर्ज की गई है। वहीं दूसरी तरफ प्रधानमंत्री का कहना है कि हिंडाल्कों को कोल ब्लॉक के आवंटन में कुछ भी गलत नहीं हुआ है।
इसी के साथ प्रधानमंत्री कार्यालय की ओर से यह भी कहा गया कि पब्लिक सेक्टर की कंपनी नेयवेली लिग्नाइट कार्पोरेशन के हितों से समझौता करके हिंडाल्को की हिस्सेदारी वाले जॉइंट उपक्रम को कोल ब्लॉक आवंटित नहीं किए गए। इस आवंटन को दी गई मंजूरी को सही ठहराते हुए पीएमओ के बयान में कहा गया कि प्रधानमंत्री इस बात से संतुष्ट हैं कि इस मामले में लिया गया अंतिम फैसला उनके सामने प्रस्तुत किए गए तथ्यों के आधार पर पूरी तरह सही था।
गौरतलब है कि सीबीआई ने चार दिन पहले आदित्य बिड़ला समूह के अध्यक्ष कुमार मंगलम और पूर्व कोयला सचिव पी सी पारेख के खिलाफ मामला दर्ज किया है। जिसमे पारेख ने कहा है कि यदि वह षड्यंत्र के आरोपी थे तो प्रधानमंत्री को भी एक आरोपी बनाया जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने इस संबंध में संशोधित निर्णय को मंजूरी दी थी। इस पर भाजपा ने प्रधानमंत्री के त्यागपत्र की मांग कर दी।