1971 इंडो-पाक युद्ध : इस मेजर ने अपने ही हाथों खुकरी से काटी थी अपनी टांग

नई दिल्ली : 1971 इंडिया- पाकिस्तान युद्ध के दौरान एक ऐसी घटना घटी जिसके बारे जान कर आप भी देश के इस सिपाही कि बहादुरी की मिसाल देंगे। जी हाँ हम आपको ऐसे ही एक बहादुर सिपाही के जीवन की सच्ची घटना से रूबरू करवा रहे है।

मेरी खुकरी कहां है…? मेजर इआन कारडोजो के पूछने पर उस गोरखा जवान ने मेजर को बताया- ये है सर..! फिर दूसरे आदेश को जवान ने मानने से इनकार कर दिया क्योंकि मेजर ने उसे कहा था- ‘मेरी टांग के इस हिस्से को काटकर अलग कर दो।’

जवान जब उनके द्वारा दिए गए आदेश को नहीं मान सका तो मेजर इआन ने उससे अपनी खुकरी लेकर खुद अपनी टांग काट दी और बोले- ‘जाओ अब इसे ले जाकर दफन कर दो।’

जानिए, क्या होती है खुकरी ?

खुकरी गोरखाई सैनिकों की पहचान और चिन्ह होती है। खुकरी एक लगभग 7 इंच लंबी दांते वाली चाकू होती है। यह इतनी तेज होती है कि गलती से हाथ पर पड़ जाए तो हाथ गया! जब गोरखाई जवान रिटायर होते हैं तो उनकी खुकरी को भी उनसे ले लिया जाता है।

 

13 दिन, 8 हीरो और 93, 000 पाकिस्तानी सैनिकों का सरेंडर! जी हाँ, ये कोई फिल्मी या काल्पनिक घटना नहीं, 1971 के युद्ध में घटित सच्ची कहानी है। बारूदी सुरंग फटने से बुरी तरह जख्मी होने के बाद अपनी टांग खुद काटने वाले यही मेजर आगे चलकर भारतीय सेना में मेजर जनरल के ओहदे तक पहुंचने वाले पहले ऐसे अधिकारी थे जिनका अंग भंग हुआ हो।

अंग भंग होने की सूरत में किसी फौजी का सेना में रहना और वो भी कमांडर के स्तर तक पहुंचने की बात तब कोई सोच भी नहीं सकता था। लेकिन असली टांग के बदले लकड़ी की टांग लगाकर भी मेजर जनरल इआन कोरडोजो उतने ही फिट थे जितना कोई अंग भंग होने से पहले होता है।

जान की परवाह किये बिना जिद्द पर अड़े रहे

टांग कट जाने के बाद भी उनकी सर्जरी किए जाने की जरूरत थी। खून बहुत बह रहा था…। तभी उन्हें एक अफसर ने बताया- ‘हमने जो पाकिस्तानी फौजी बंधक बनाए हैं उनमें एक सैनिक अधिकारी सर्जन मेजर मोहम्मद बशीर भी हैं।’ इसे सुनते ही मेजर इआन ने जवाब दिया- ‘मैं किसी पाकिस्तानी से सर्जरी नहीं करवाऊंगा और ना ही किसी पाकिस्तानी का खून मुझे चढ़ाया जाए।’ मौत से लड़ रहे किसी शख्स से ऐसे जवाब की उम्मीद तब किसी को नहीं थी। खैर, किसी तरह मेजर इआन को मनाया गया और पाकिस्तानी डॉक्टर ने उनकी सर्जरी की।

ऑपरेशन के वक्त की बाकी दोनों शर्ते मान ली गईं। मेजर इआन को पाकिस्तानी नागरिक का खून नहीं चढ़ाया गया और ऑपरेशन के दौरान उनके कमांडिंग अफसर वहीं रहे। अपने जिस्म के हिस्से को खुद काटकर अलग कर देने वाले इस साहसी मेजर के सामने चुनौतियां और भी थीं। वो फौज में सेवा जारी रखना चाहते थे और वो भी तरक्की के हक के साथ। तरक्की तो उन्हें मिली लेकिन इसके लिए उन्हें बेहद सख्त इम्तहानों से गुजरना पड़ा।

खुद को कमांडर के लायक फिट साबित करने के लिए उन्होंने लकड़ी की टांग लगाकर इतनी प्रैक्टिस कर ली कि दौड़ के टेस्ट में तो सात अफसरों को पीछे ही छोड़ डाला। यही नहीं उनका अगला टेस्ट तो सेना के उप प्रमुख ने ही लिया जिसे पास करने के लिए मेजर इआन ने छह हजार फुट की पैदल चढ़ाई की।

अपने हौसलों से बदलकर रख दिया फैसला:

जब तरक्की के लिए उनकी फाइल सेना प्रमुख के पास पहुंची तो वो उन्हें अपने साथ लद्दाख ले गए। वहां खतरनाक बर्फीले पहाड़ों पर जब इआन कारडोजो चलते चले गए तो सेना प्रमुख भी हैरान रह गए। दिल्ली पहुंचते ही उन्होंने इआन कारडोजो की तरक्की वाली फाइल पर दस्तखत किए और इस तरह इआन बन गए मेजर जनरल कारडोजो।

मेजर जनरल कारडोजो की हार न मानने वाली कोशिशें और उनसे मिली तरक्की ने उन अफसरों की तरक्की के रास्ते भी खोल गई जिन्हें अंग भंग होने के हालात में कमांडर ना बनाए जाने की परम्परा थी।