पूरी दुनियां में प्रभाव डालने वाला ग्लोबल वार्मिंग ने, अपनी चपेट में लेने से पड़ोसी राष्ट्र नेपाल को भी अछूता नहीं छोड़ा है ।फलस्वरूप चाहे वह वर्ष 2014 का भूसंस्खलन हो या फिर 2015 में आये जोरदार भूकंप,दोनों के ही प्राकृतिक आपदा का कुप्रभाव न सिर्फ पडोसी देश नेपाल बल्कि भारत को भी इसके दंश झेलने पड़े हैं।
वर्ष 2014 को काठमांडू नेपाल के सिंधुपालचौक अवस्थित हुए लैंड स्लाइडिंग की वजह से सुनकोशी नदी के मुहाने पर जिस तरह से मलवा ने जमा होकर नदी के रास्ते को अवरुद्ध कर पानी को रोक दिया था,उसे नेपाल सरकार ने आनन-फानन में बम विस्फोट कर हटाने की जो कोशिश की थी वह पूरी तरह से हटी नहीं है, बल्कि 80% मलवा आज भी वहाँ जमा है, जिस कारण वहाँ से पानी का डिस्चार्ज कम और धीरे हो गया है । नतीजतन नेपाल और भारतीय क्षेत्र के किसानों का खेती करना दुभर हो गया है।
इसके साथ ही 2015 में आये जोरदार भुकम्प ने काठमांडू नेपाल को जिस तरह तहस-नहस कर दिया था,इसका सबसे बड़ा प्रभाव नेपाली क्षेत्र के कई ऊपरी इलाकें में पानी की कमी के रूप ऐसी हुई है, कि वहां के लोग अब गड्ढे में जमा बारिश के गंदे पानी पीने की मजबूरी से त्रस्त होकर पलायन करने लगें है। हांलाकि नेपाल के ग्रामीण क्षेत्रों में फिर से रोज-मर्रे की जिंदगी एक बार फिर से लौटने जरूर लगी है,किन्तु सिंधुपालचौक में नेपाल सरकार द्वारा लैंडस्लाइडिंग में जमा हुए मलवे को पूरी तरह से नहीं हटवाना भारत के लिए भी बेहद चिंता का विषय है।
साथ ही एक ओर जहाँ वर्ष 2014 में उसी सिंधुपालचौक अवस्थित हुए लैंडस्लाइडिंग की वजह से सुनकोशी नदी का पानी वहाँ 80%मलवा होने की वजह से कोसी बराज तक कम पहुंचना ओर बराज होकर उसी पानी का न्यूनतम डिस्चार्ज होने से भारतीय क्षेत्र के नहर पर इस चिलचिलाती गर्मियों की वजह से सूख जाने को लेकर यहाँ के निर्भर किसानों की खेती बर्बाद हो रही है,वहीँ दूसरी ओर उसी सिंधुपाल चौक अवस्थित अगर दूसरी बार फिर लैंडस्लाईडिंग हो गयी तो सुनकोशी नदी के फिर से पूरी तरह बंद हो जाने की पूरी सम्भावना होगी,जिससे आने वाले मानसून में पिछली बार की तरह 72 लाख क्यूसेक से भी ज्यादा पानी का जमाव हो सकता है जिसके कारण अचानक कोसी बराज टूटने की सम्भावना से कतई इंकार नहीं किया जा सकता है। इसके खामियाजे के तौर पर इसका असर न सिर्फ नेपाली क्षेत्र बल्कि भारतीय सीमावर्ति क्षेत्रों पर भी भयानक खतरनाक और महा प्रलयंकरकारी होंगें।