फ़िल्म और साहित्य समाज में घट रही घटनाओं को दर्शाता है. लेकिन किसी व्यक्ति या धर्म की भावनाओं को आहत करने वाला साहित्य या फ़िल्म का विरोध धार्मिक संगठन और समाज करता आया है. धर्म व्यक्ति को एक समुदाय देता है ,एक समाज देता है और एक पहचान भी देता है लेकिन जब इस धर्म को लोग व्यक्ति से बड़ा मान कर उसे कट्टररता के साथ अपनाने लगते है तो यही धर्म व्यक्ति में नफ़रत और हिंसा बढ़ाने काम करता है . ऐसा ही एक घटना पाकिस्तान में हुई है. पाकिस्तान में एक मौलवी के जीवन संघर्ष पर आधरित फ़िल्म को रिलीज होने से रोक दिया गया है.क्योंकि पाकिस्तान की एक धार्मिक पार्टी का कहना कि इस फ़िल्म से उनकी धार्मिक भवना को ठेश पहुंच सकता है . ये फ़िल्म पाकिस्तान में 24 जनवरी को रिलीज होने वाली थी लेकिन धार्मिक पार्टी के विरोध के बाद इसको रिलीज रोक दिया गया.
‘जिंदगी तमाशा ‘ नाम की इस फ़िल्म की कहानी एक ऐसे व्यक्ति पर आधारित है जिसके डांस की एक विडियो वायरल हो जाती है जो उसके जीवन को बहुत प्रभावित करती हैं ये विडियों उस व्यक्ति की जिंदगी पुरी तरह बदल देती है .यानी उस वीडियों के वायरल होने से उसकी जिंदगी का तमाशा बन जाता है .फ़िल्म का दाढ़ी धारी पात्र नात-वाचन करने वाले किरदार को निभाया है नात-वाचन अर्थात धार्मिक काव्य का पाठ करने वाला, विरोधी संगठन का कहना है कि यह किरदार जनता की संवेदनाओ को ठेस पहुचाएगा .
ये पात्र इस्लाम और पैगंबर मुहम्मद साहब की आस्था पर बने विश्वास को कम करेगा. बता दें कि पाकिस्तानी क़ानून के अनुसार पैग़ंबर मोहम्मद के अपमान में लिप्त होने और का दोषी पाए जाने मृत्यु दण्ड दी जाती है. 2011में ईश निंदा क़ानून पर बोलने वाले पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर को मौत की घाट उतार दिया गया था.
फ़िल्म के निर्माता निर्देशक सरमत ने कहा कि इस फ़िल्म के माध्यम से मैं किसी की भावनाओं को चोट नहीं पहुँचना चाहता , मेरा कतई इरादा नहीं है कि मैं कभी किसी को दुखी और नाराज करू. सरमत का ने प्रधानमंत्री को चिठ्ठी लिख कर कहा कि उनको और उनके परिवार को धमकियां दी जा रही है . और साथ ही फ़िल्म के रिलीज को रोकने को कहा जा रहा है .
इस फ़िल्म को 2019 में बुसान इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल से सम्मानित किया जा चुका है . ये फ़िल्म न तो पहली फ़िल्म है न ही आखिरी जिसका विरोध कर रिलीज होने से रोका गया .
फ़िल्म को राज्य और देश के मुख्य सेंसर बोर्ड से रिलीज करने की मंज़ूरी मिल गई थी लेकिन विरोधी संगठन के विरोध के बाद रिलीज को रोक दिया गया. 2011 में खादिम हुसैन रिज़वी द्वारा बनाया गया यह (तहरीक-ए-लब्बैक) संगठन पुलिसकर्मी मुमताज क़ादरी के फांसी को रोकने कारण से संगठित हुआ था .
पाकिस्तान के एक धार्मिक (तहरीक-ए-लब्बैक) संगठन का कहना है इस फ़िल्म से इस्लाम को ठेस पहुँचेगा इससे समाज में हिंसा को चिंगारी उठ सकती है ,और ये फ़िल्म पैगंबर मुहम्मद साहब और इस्लाम के बीच रेखाएं खिंच सकती है . विरोधी संगठन का कहना है कि इस फ़िल्म से इस्लाम में ईश निंदा” होगी. ईश निंदा पाकिस्तान में बहुत बड़ा धार्मिक दोष का मामला है .इस मामले में अगर कोई फसता है तो उसे सजा दी जाती है .इस लिए संगठन की मांग पर इस फ़िल्म को रिलीज होने से रोक दिया गया.
पाकिस्तान के सूचना और प्रसारण मंत्री ने प्रधानमंत्री की सलाहकार फ़िरदौस आशिक अवान ट्वीट कर केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड को फिल्म के रिलीज़ को रोकने को कहाँ और इस इस फ़िल्म की जांच करने का आदेश काउंसिल ऑफ़ इस्लामिक विचारधारा को सौंपा ताकि समिति जांच के बाद सही से निर्णय लिया जा सके. अब देखना यह होगा कि धार्मिक पचड़े में गिरी ये फ़िल्म रिलीज़ होगी या भी नहीं.