नई दिल्ली : इंडियन आर्मी ने फिर से खुद के लिए ‘मिनी एयर फोर्स’ की मांग की है जबकि देश की वायु सेना अतीत में इस मांग का कड़ा विरोध कर चुकी है।
आर्मी दूसरे चॉपरों के साथ-साथ हेवी-ड्यूटी अटैक हेलिकॉप्टरों के तीन स्क्वॉड्रन चाहती है ताकि इसकी तीन प्राइमरी स्ट्राइक कोर को दुश्मनों के इलाके में बख्तरबंद दस्ते की त्वरित पहुंच सुनिश्चित करने में मदद मिले।
आर्मी इस प्रक्रिया की शुरुआत अमेरिका से 11 अपाचे अटैक हेलिकॉप्टरों की खरीद के लिए सरकार को मनाने में जुटी है। एयर फोर्स ऐसे 22 चॉपरों के लिए पहले ही 13,952 करोड़ रुपये की डील कर चुका है।
रक्षा मंत्रालय के सूत्रों ने बताया, ‘शनिवार को रक्षा मंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता में होनेवाली रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) की बैठक में इस खरीद प्रस्ताव पर विचार हो सकता है।’ आर्मी इसलिए जल्दबाजी में है क्योंकि नियम के तहत अमेरिका को 28 सितंबर तक ही ऑर्डर दिया जा सकता है।
दरअसल, ऑरिजनल कॉन्ट्रैक्ट पर दस्तखत 2015 में इसी तारीख को हुआ था। इस ‘हाइब्रिड’ डील के एक हिस्से में चॉपरों के लिए बोइंग के साथ हस्ताक्षर हुआ था जबकि दूसरे हिस्से में हथियारों, राडार और इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर स्वीट्स के लिए अमेरिकी सरकार के साथ करार हुआ था।
भारत ने सितंबर 2015 में 15 चिनूक हेलिकॉप्टरों की खरीद का करार किया था।
इसके तहत जुलाई 2019 से भारतीय वायु सेना को 22 अपाचे हेलिकॉप्टरों की आपूर्ति होनी है। इनके अलावा, 812 AGM-114L-3 हेलफायर लॉन्गबो मिसाइल, 542 AGM-114R-3 हेलफायर-II मिसाइल, 245 स्ट्रिंगर ब्लॉक I-92H मिसाइल और 12 AN/APG-78 फायर-कन्ट्रोल राडार भी मिलने वाले हैं। आर्मी ने इन 22 अपाचे हेलिकॉप्टरों की खरीद प्रक्रिया के दौरान भी इन पर अपने ‘मालिकाना हक एवं नियंत्रण’ की मांग की थी क्योंकि दुनियाभर में मशीनगनों से युक्त हेलिकॉप्टरों का इस्तेमाल दुश्मन के इलाकों पर हवा से चौतरफा हमला करने में किया जाता है।
आर्मी का मानना है कि हमलावर दस्तों के साथ-साथ ‘सामरिक हवाई संपत्तियों’ की त्वरित तैनाती के लिए इनपर उसका ‘पूर्ण नियंत्रण’ रहे जबकि एयर फोर्स को बड़ी सामरिक भूमिकाओं पर ध्यान देना चाहिए। इधर, एयर फोर्स इस पर अड़ा है कि ऐसे हेलिकॉप्टर उसके अधीन ही रहने चाहिए क्योंकि अगर आर्मी भी खुद के लिए ‘छोटा-मोटा एयर फोर्स’ की खड़ा कर लेगी तो उसपर बहुत संसाधन खर्च होंगे।