नई दिल्ली : इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन को बड़ा झटका लगा। भारत के आठवें नैविगेशन सैटलाइट IRNSS-1H की लॉन्चिंग कामयाब नहीं हो पाई। 1,425 किलोग्राम वजन के सैटलाइट को श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन स्पेस सेंटर के दूसरे लॉन्च पैड से PSLV-XL के जरिए छोड़ा गया था। इसरो चेयरमैन एएस किरण ने मिशन के फेल होने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि सैटलाइट हीट शील्ड से अलग नहीं हो पाया।
पहली बार सैटलाइट के असेंबलिंग और टेस्टिंग में प्राइवेट सेक्टर भी सक्रिय रूप से शामिल किया गया था। इससे पहले प्राइवेट सेक्टर की भूमिका सिर्फ कल-पुर्जों की सप्लाई तक सीमित थी। IRNSS-1H सैटलाइट को बनाने में बेंगलुरु बेस्ड अल्फा डिजाइन टेक्नॉलजिज की अगुआई में प्राइवेट कंपनियों का 25 प्रतिशत योगदान था।
अल्फा डिजाइन के सीएमडी एच. एस. शंकर ने कहा कि कन्सॉर्शीअम को IRNSS-1I को बनाने का ऑर्डर मिला और उससे पहले ही हम इस पर काम शुरू कर चुके थे। IRNSS-1I की अप्रैल 2018 में लॉन्चिंग होनी है। संयोग से IRNSS-1H के एक अहम पार्ट को वाइटफील्ड में इसरो के नए-नए बने स्पेस पार्क में विकसित किया गया। ISRO को 2013 में लॉन्च हुए अपने पहले नैविगेशनल सैटलाइट IRNSS-1A की 3 परमाणु घड़ियों के काम बंद कर देने के बाद IRNSS-1H को लॉन्च करने की जरूरत महसूस हुई। परमाणु घड़ियों को सही-सही लोकेशनल डेटा उपलब्ध कराने के लिए लगाया गया था और इन्हें यूरोपियन एयरोस्पेस निर्माता ऑस्ट्रियम से खरीदा गया था।
अहमदाबाद बेस्ड स्पेस ऐप्लिकेशन सेंटर के डायरेक्टर तपन मिश्रा कहते हैं, ‘हमें सैटलाइट के पोजिशन को जानने की जरूरत पड़ती है ताकि हम धरती पर किसी वस्तु के पोजिशन का पता लगा सकें। किसी सैटलाइट के पोजिशन को जानने के लिए परमाणु घड़ियों का इस्तेमाल होता है। इसके जरिए हम आधे मीटर की ऐक्युरेसी से किसी सैटलाइट के पोजिशन का पता लगा सकते हैं।’ जब टाइम सिग्नल नहीं मिलता है तो सही पोजिशन जानने में समस्या आती है।
ISRO ने इंडियन रीजनल नैविगेशन सैटलाइट सिस्टम के 9 सैटलाइट के लिए 27 परमाणु घड़ियों को आयात किया था। इनमें से 7 सैटलाइट अपनी कक्षाओं में हैं।