इन दिनों देश में कथित रूप से बढ़ती सांप्रदायिक दंगों की आंच ने लोकसभा में गर्मी का माहौल पैदा कर दिया है। मामले में सत्तारूढ़ बीजेपी और विपक्षी कांग्रेस के सदस्यों के बीच जम कर तकरार हुई। दोनों ने एक-दूसरे पर धुव्रीकरण का एजेंडा आगे बढ़ाने का आरोप लगाया।
यहाँ विपक्ष ने आरोप लगाया कि बीजेपी और उससे जुड़े संगठन सत्ता में बने रहने के लिए ‘समाज को बांटने’ का प्रयास कर रहे हैं, वहीं बीजेपी ने पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस अपने शासनकाल में हुए दंगों पर चर्चा क्योंव नहीं करती है। दरअसल, कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद के दो महीनों में देश के विभिन्न हिस्सों में 600 से अधिक दंगे हुए हैं। खड़गे कांग्रेस के एमआई शनवास और मुहम्मद असरारूल हक की ओर से सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं से निपटने के लिए प्रभावी तंत्र की जरूरत के बाबत चर्चा की शुरुआत कर रहे थे। उन्होंने चेतावनी दी कि अगर इसे रोका नहीं गया तो पछताना पड़ेगा।
खड़गे ने विहिप, बजरंग दल और आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत का उल्लेख करते हुए कहा कि बीजेपी के सत्ता में आने के बाद से ‘सांप्रदायिक शक्तियां’ उत्साहित हो गई हैं और उन्हें लगता है कि उनके पास राजनीतिक शक्ति है और वह उन्हें संरक्षण प्रदान करेगी. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे उन राज्यों में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हो रही हैं जहां चुनाव होने वाले हैं।
इसकी साथ कांग्रेस के जुबानी प्रहार पर पलटवार करते हुए बीजेपी के योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘आप धर्मनिरपेक्ष होने का दावा करते हैं, लेकिन आप सांप्रदायिकता का एजेंडा लागू करते हैं। उन्होंने कहा कि कांग्रेस शासन के दौरान हुए सांप्रदायिकदंगों में हजारों लोग मारे गए और साढ़े तीन लाख कश्मीरी पंडित अपने ही देश में शरणार्थी बन गए। कांग्रेस पार्टी ने संसद में कभी उस पर चर्चा नहीं की।
तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंदोपाध्याय ने कहा कि हम जनप्रतिनिधियों को सुनिश्चित करना चाहिए कि देश के लोग सुरक्षित रहें, शांतिपूर्ण ढंग से रहें और विकास करें। ऐसा तंत्र बनाना चाहिए कि देश में सभी तरह की सांप्रदायिक हिंसा पर रोक लग सके।
आरजेडी के राजेश रंजन ने कहा कि देश में दलितों, आदिवासियों के साथ अल्पसंख्यकों की स्थिति काफी खराब है। अगर कोई उन्हें आगे बढ़ाने का प्रयास करता है तो इसे तुष्टिकरण नहीं कहना चाहिए। उन्होंने कहा कि कभी भी दंगों को किसी ने भी सही नहीं ठहराया, तब पिछले दो महीनों में जो दंगे हुए उन्हें सही कैसे ठहराया जा सकता है।
पीडीपी की महबूबा मुफ्ति ने कहा कि जब भी ऐसा कोई विषय उठता है तब प्वॉ।यंट स्कोर करने का प्रयास किया जाता है। देश में इतने अधिक दंगे हुए, लेकिन इन पर पूरी तरह से लगाम लगाने की पहल क्यों नहीं की गई। इसे रोकना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है, क्योंकि लोग सम्मान के साथ जीना चाहते हैं।
टीडीपी के एम श्रीनिवास राव ने कहा कि जनप्रतिनिधि होने के नाते देश में सौहार्द बनाए रखना हम सबकी जिम्मेदारी है। सबसे बड़ी चुनौती गरीबी है। देश में सांप्रदायिक माहौल खराब होने के लिए वोट बैंक की राजनीति एक कारण है। उन्होंने कहा कि दुनिया में दो धर्म हैं, अमीर और गरीब। सांप्रदायिक हिंसा से केवल गरीब प्रभावित होता है।
माकपा के मोहम्मद सलीम ने कहा कि हमारा मकसद भावनाओं को भड़काना नहीं होना चाहिए, बल्कि इसे रोकना होना चाहिए। लेकिन अधिकांश समय हम ऐसा करने में विफल रहे हैं। पिछले अनेक वर्षों में देश में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं देखने को मिली हैं और यह समय-समय पर कम या अधिक रहा है। सलीम ने कहा कि पिछले 10 वर्षों में यूपीए सरकार सांप्रदायिक हिंसा रोकने वाला विधेयक लाने में विफल रही, वहीं कुछ लोग धर्म के ठेकेदार बनकर धर्म को हथियार बनाकर इस्तेमाल कर रहे हैं।
एनसीपी के तारिक अनवर ने कहा कि लोग वोट बैंक की राजनीति की बात कर रहे हैं। देश में अल्पसंख्यकों विशेष तौर पर मुसलमानों को देश की मुख्यधारा से जोड़ना जरूरी है और इसके लिए ठोस पहल किए जाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि सच्चर समिति और रंगनाथ मिश्रा आयोग की रिपोर्ट में यह साफ किया गया है कि एक वर्ग विशेष के तुष्टीकरण के प्रयास नहीं हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत में दुनिया के हर धर्म को मानने वाले लोग हैं और इन सब को एक साथ सर्व-धर्म संभाव की भावना के साथ आगे ले जाने की जरूरत है।