राहत शिविर खाली कराने अखिलेश सरकार पहुंची जेसीबी लेकर

unnamedलखनऊ। दंगे में अपना सबकुछ गवाँ चुके, राहत शिविर में रह रहे लोगो को सरकार ने दंगे के बाद रही सही कसार पूरी कर दी। जब अखिलेश सरकार की प्रशासनिक अमला रहत शिविर खाली करवाने जेसीबी लेकर पहुँच गयी।

चारो ओर से मुजफरनगर में हुए दंगे का आरोप झेलते झेलते कितना तंग आ गयी है, इसका असर यूपी सरकार पर दिखने लगी है। इसकी झुंझलाहट जेसीबी के रूप में प्रदेश की जनता ने दिखा दिया। अब प्रदेश सरकार राहत शिविरों को खाली करवाने के लिए शाम दंड सब अपनाने में लग गयी है। और वहाँ रह रहें दंगा पीड़ितों को हटाने की जुगत में लग गयी हैं।

आज मुजफ्फरनगर के लोई कैंप में स्थानीय प्रशासन नें जेसीबी भेज दिया। पिछले कई दिनों से राज्य सरकार इन पीड़ितों को अपनें अपनें घर लौटनें पर जोर दे रही थी। मगर राहत शिविरों में रह रहें लोगों नें वापस लौटने से इंकार कर दिया। तब जाकर सरकार नें ये कदम उठाया है। राहत शिविरों

में बदइंतजामी के आरोप झेल रही सरकार नें अब ये ठान लिया है कि समझानें बुझानें के बावजूद नहीं मानने पर इन लोगों को अब जबरदस्ती हटाना पड़ेगा।

मुजफ्फरनगर औऱ शामली के पांच शिविरों में इस समय लगभग चार हजार आठ सौ लोग रह रहें हैं। सरकार का कहना है कि अलग अलग कारणों से और अलग उम्मीद में ये लोग इन शिविरों में रह रहें और यहां से जाना नहीं चाहतें।

प्रमुख सचिव जावेद उस्मानी के अनुसार कुछ लोग जो अभी भी रहे है 4800 लोगों में वो है जो कि पांच लाख रुपये पा चुके है। लेकिन कहां सैटेल होना है ये तय नहीं कर पाये है। ये एक बड़ा निर्णय है। गरीब आदमी के लिये कि वो कहां जाकर सैटेल होगा। इसलिये उसको टाइम लग रहा है ।इसलिये अभी वो कैंप में मौजूद है। कुछ लोग इस प्रकार है कि परिवार के मुखिया को पांच लाख रुपये मिल चुके है। उसनें ऐफिडेविट दिया है कि मै परिवार का मुखिया हूं। उस एफिडेविट के आधार पर परिक्षण के आधार पर जांच के आधार पर पांच लाख रुपये स्वीकृत किये गये है और पे कर दिये गये है।

उनके ही परिवार का एक व्यस्क लड़का कह रहा है कि मै एक अलग परिवार हू। और मुझको अलग से पांच लाख रुपये दिया जाये वो कैंप में रह रहा है वो कैंप छोड़कर नही गया है। पिता पैसा लेकर कैंप छोड़कर चला गया है जो परिवार पहले एक था अब वो अपनें को दो परिवार कह रहा है औऱ पांच लाख रुपये के लिये क्लेम कर रहे है।इसके आलावा मनकपुर औऱ लोई ये दोनों जो कैंप है वो सरकारी भूमि पर है।

सरकारी भूमि है टेम्परेरली रह रहे है प्रशासन औऱ शासन उनके रहने देने में किसी भी प्रकार की कोई कठिनाई नहीं पैदा करने दे रहा है। लेकिन उनको आश्वासन लोकल लेवल पर दिया गया है कुछ लोगो द्धारा कि आप यहां रहते रहोगे तो जमीन मिल जायेगी तो कुछ लोग इस उम्मीद में वहां बने हुये कि ये सरकारी भूमि उन्हें आंवटित की जायेगी।

कुछ लोग जो है वो इस आधार पर रुके है कि उनका कहना है कि हमारे गांव को भी उन 9 गांवों की लिस्ट में शामिल किया जाये।और जो पांच लाखकी सहायता दूसरे 9 गांवों को दी गयी है वो पांच लाख की सहायता हमको भी दी जाये।हम भी भयक्रांत औऱ हम भी वापस नहीं जा सकते।