श्री माता जी की उत्पत्ति के बारे में मार्कण्डेय पुराणात्तर्गत वर्णित दुर्गाचरित्र में देखने से प्रतीत होता है कि देवासुर संग्राम में महिषासुर से परास्त हो सभी देवता दुःखी हो महादेव के पास जाकर अपनी व्यथा सुनाने लगे। तब महादेव क्रोधित हो उठे तथा सभी देवता इकट्ठे हो कर बिन्दु पर केंद्रित हो स्तुति करने लगे। जिससे सभी देवताओं के शरीर से तेज निकल कर एक केन्द्र बिन्दु पर केंद्रित होने लगा जिससे तीनों लोक प्रकाशित होने लगे यही प्रकाशपूँज क्योंकि सभी की शक्ति से उत्पन्न हुआ इसी लिये इसने स्त्री रूप धारण किया तथा सभी देवताओं ने श्रद्धा स्वरूप् श्री माताजी को अपने अस्त्र-शस्त्र प्रदान किये तथा इन्हें जगदम्बा एवं दुर्गा इत्यादी नामों से अलंकृत किया गया।
यदि आधारभूत श्री ज्वालामुखी माता जी के सम्बन्ध में भी बात कही जाये तो किन्चित गलत न होगा कि यही वह प्रकाशपुंज है जो विश्वकल्याण हेतु अवतरित हुआ है। एक अन्य प्रसंग के अनुसार माता जी कि उत्पत्ति के विषय में शिवमहापुरान ज्ञानसंहिता के सातवें अध्याय में यह वर्णित है कि पूर्व में दक्षप्रजापति ने एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमें सभी देवी देवताओं ऋषियों इत्यादि को आमन्त्रित किया परन्तु महादेव को नहीं। परन्तु दक्ष पुत्री बिना महादेव की आज्ञा के पिता के बुलाने पर भी उस यज्ञ में गई जहां उन्हें तिरस्कृत होना पड़ा व इसी क्षोम में उन्होंने अपने प्राण त्याग त्याग दिये।
यह समाचार जान महादेव के वीरभद्र आदि गणों ने यज्ञ का विध्वंस कर दिया व महादेव सती का पार्थिव शरीर ले कर व्याकुल हो भ्रमण करने लगे। इस अवस्था से महादेव को निकालने के लिये सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि आप ही कृपा कर इस संकट की स्थिति से त्राण दिलायें। तब भगवान विष्णु ने चक्र से सती के शरीर को खण्ड-खण्ड किया तथा जहाँ-जहाँ अंग पृथ्वी पर गिरते चले गये वहां शक्ति पीठों का निर्माण हुआ तथा शक्ति संग शिव भी कई रूपों में वहां विराजमान हुए। सती की जिहवा गिरने से यह स्थान श्री ज्वालाजी के नाम से प्रसिद्ध हुआ तथा शंकर जी यहां उम्मत भैरव के रूवरूप में विद्मान है।