मुंबई: प्रसिद्ध कथक नृत्यांगना सितारा देवी का देर रात मुंबई के जसलोक अस्पताल में निधन हो गया। वह पिछले दो दिनों से वेंटीलेटर पर थीं। 94 वर्षीया नृत्यांगना का रविवार को उनका ऑपरेशन किया गया था। सितारा देवी का गुरुवार को उनके बेटे के विदेश से लौटने पर अंतिम संस्कार किया जाएगा।
बहुत कम लोग जानते हैं कि सिर्फ 16 साल की उम्र में उनका नृत्य देखकर गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने उन्हें ‘कथक क्वीन’ के खिताब से नवाजा था। आज भी लोग इसी खिताब से उनका परिचय कराते हैं। इसके अलावा उनके खाते में पद्मश्री और कालिदास सम्मान भी है।
उनका जन्म 1920 में कोलकाता में हुआ था। सितारा देवी ने अपने पिता के संग्रहीत विषयों, कविताओं और नृत्यशैली को अपने नृत्य में उकेरा था। चाहे गांव का माहौल हो या शहर का, उन्होंने अपने नृत्य के लिए आसपास के वातावरण से प्रेरणा ली।
सितारा देवी के जीवन के आसपास रहने वाले चरित्र उनके नृत्य में जीवंत हो उठते थे। वह अक्सर कहा करती थीं, ‘मैं बस रियाज से कृष्ण-लीला की एक कथाकार हूं।’ कथक का अर्थ ही होता है ‘कथा’ जो कृष्ण मंदिरों में विकसित हुआ और मुस्लिम राजाओं के दरबार में अपनी बुलंदियों पर पहुंचा।
सितारा देवी की जड़ें इन्हीं ‘कथाकारों’ या आरंभिक कथक नर्तकों तक जाती है। वह एक ब्राह्म्ण कथाकार सुखदेव महाराज के परिवार में धन्नोलक्ष्मी के रूप में पैदा हुई थीं और उन्होंने कम उम्र में शादी की जगह नृत्य को ही अपने जीवन के लक्ष्य के रूप में चुना।
उनके पिता एक वैष्णव ब्राह्म्ण विद्वान और कथक कलाकार थे। उन्होंने सितारा को एक स्थानीय विद्यालय में भेजा। जहां उन्होंने ‘सावित्री सत्यवान’ की प्रस्तुति देकर अपने अध्यापकों और स्थानीय मीडिया का ध्यान खींचा।
अगले छह दशकों में वह कथक की बड़ी हस्ती बनीं। उन्होंने मुगल ए आजम के निर्देशक के. आसिफ से विवाह किया। बाद में उनका विवाह प्रताप बारोट से हुआ। वर्ष 2011 में उन्हें लीजेंड्स ऑफ इंडिया लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से नवाजा गया।