जानिए, मुसलमानों ने क्यों कहा मोदी मजबूरी नहीं, देश के लिए जरूरी हैं

नई दिल्ली : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में BJP की शानदार जीत के बाद राजनीति का जो पैटर्न दिख रहा है, उससे तो यही लग रहा है कि मुसलमान और उनकी राजनीति करने वाले लोगों को एक बार फिर से सोच-विचार करना होगा।

उनकी राजनीति की दिशा क्या हो, आज राजनीति का एक मकसद है, सिर्फ जीत, तो फिर मुसलमानों के लिये रिवर्स पोलराइजेशन का तोड़ क्या हो सकता है।

ये तो सोचने को विवश करती है कि देश के सबसे बड़े विधानसभा चुनाव में देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को टिकट नहीं देती और 312 सीटों पर जीत दर्ज करती है, 403 सदस्यों वाले विधानसभा में 25 उम्मीदवार जीतकर आए हैं।

BJP की प्रचंड जीत के बाद यूपी के मुस्लिम संगठनों का कहना है कि मुसलमानों का मोदी को वोट देना कोई चमत्कार नहीं है। ये तो होना ही था।

मोदी को वोट देना कोई मजबूरी नहीं देश के लिए जरूरी है। बता दें कि मायावती और अन्य पार्टियां ये सवाल उठा रही हैं कि मुस्लिमों ने BJP को वोट दे कैसे दिया।

समाजवादी पार्टी और कांग्रेस गठबंधन से 19 और बीएसपी से 6 विधायक हैं, अगर पिछले विधानसभा चुनाव यानि साल 2012 की बात करें, तो 67 मुस्लिम विधायक विधानसभा पहुंचे थे, तो 2007 में इनकी संख्या 56 थी।

राजनीतिक पंडितों ने बड़ा सस्ता सा गणित लगाया है कि बीजेपी को रिवर्स पोलराइजेशन का फायदा मिला, ऐसे में सवाल ये उठ रहा है कि अगर फायदा इस स्तर का रहा, तो राजनीति में मुसलमान कहां रह जाएंगे।

इन्हीं सवालों से जुड़ता हुआ एक सवाल ये भी है बीजेपी के कुछ गिने-चुने चेहरों को छोड़ कोई ऐसा चेहरा याद आता है, जो पिछले दस सालों में राजनीति में उभरा हो ? ये खतरनाक संकेत है, मुसलमानों की राजनीति करने से ज्यादा एक समुदाय के तौर पर मुस्लिमों के लिए।

यूपी में विधानसभा चुनाव के ऐलान के साथ ही बहुजन समाज पार्टी ने अपने प्रत्याशियों की मुसलमान और दलित सूचीवार लिस्ट जारी कर दी थी, मायावती पहले पहली जनसभा से लेकर आखिरी रैली तक मुसलमानों को बीएसपी के लिये एकजुट होकर वोट देने की अपील करती है, हालांकि वो किसी भी रैली जनसभा या बयान में दो मुस्लिम समुदाय के भीतर भरोसा जगाने में नाकाम रही।

दूसरी ओर राहुल-अखिलेश की जोड़ी ने जनसभाओं, रैलियों और रोड शो के जरिये मुसलमानों को लुभाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन इस साथ पर भी मुसलमानों का यकीन आधा ही रहा, इस चुनाव में इतना तो साफ हो गया कि एक नेता के तौर पर मुसलमान जितना भरोसा मुलायम सिंह यादव पर करते थे, उतना अखिलेश यादव पर नहीं किया।

उत्तर प्रदेश में कुल मिलाकर मुस्लिम समुदाय कंफ्यूजन का शिकार हो गई, वो मोदी से डराने वाली समाजवादी पार्टी का दामन थामे या बीएसपी की, जिसका नतीजा वोटों को बंटवारे के तौर पर दिखा, मुस्लिम वोटों को एकजुट करने में जैसी कामयाबी नीतीश कुमार ने दिखाई, या फिर केजरीवाल या ममता बनर्जी भी भरोसा जीतने में सफल रहे, वैसा यकीन अखिलेश और मायावती नहीं दिला पाए।