जानिये, कोलकाता में एक साथ लोगों ने क्यों बुझा दी बत्ती? राजभवन में भी छाया अंधेरा

कोलकाता के RG कर मेडिकल कॉलेज में महिला डॉक्टर से रेप और मर्डर को लेकर लोगों में गुस्सा है. देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहा है. इसी बीच बुधवार को कोलकाता अंधेरे की चादर में लिपटा हुआ दिखाई दिया. सिटी ऑफ जॉय का प्रतिष्ठित विक्टोरिया मेमोरियल हॉल समेत राजभवन भी रोशनी से महरूम रहा.

RG कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक डॉक्टर के साथ क्रूर बलात्कार और हत्या के मामले में अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है. मामले में जल्दी कार्रवाई की मांग करने वाले जूनियर डॉक्टरों का विरोध प्रदर्शन और भी बढ़ गया है. बुधवार को शहर के नागरिकों ने एक अनूठा शक्तिशाली प्रदर्शन किया. शहरवासियों ने रात 9 बजे से 10 बजे तक एक घंटे के लिए अपनी लाइटें बंद कर दीं और मोमबत्तियां लेकर सड़कों पर उतर आए. सैकड़ों जूनियर डॉक्टरों ने लालबाजार के पास कैंडल मार्च निकाला, जहां कोलकाता पुलिस मुख्यालय स्थित है और पीड़िता के लिए न्याय की मांग करते हुए नारे लगाए.

राज्यपाल ने जलाई मोमबत्ती
बंगाल के राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने भी राजभवन में मोमबत्ती जलाई और कहा, ‘जब प्रकाश से भय लगता है, तो अंधकार प्रिय होता है.’ रात ठीक 9 बजे विक्टोरिया मेमोरियल और राजभवन जैसे प्रमुख स्थल, शहर, उपनगर और जिलों के घर विरोध प्रदर्शन के हिस्से के रूप में अंधेरे में डूब गए. पश्चिम बंगाल के कई जिलों में भी देर शाम को सड़कों पर उतरकर लोगों ने विरोध-प्रदर्शन किया, जिसमें मशालें, मोमबत्तियां और यहां तक कि मोबाइल फोन की लाइट जलाकर आरजी कर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल की पीड़िता के लिए न्याय की मांग की.

लेट देयर बी लाइट, लेट देयर बी जस्टिस
विरोध-प्रदर्शन का आह्वान करने वाले ‘पश्चिम बंगाल जूनियर डॉक्टर्स फ्रंट’ ने इसे ‘लेट देयर बी लाइट, लेट देयर बी जस्टिस’ का नाम दिया था. हाईकोर्ट में पांच सितंबर को होने वाली सुनवाई से ठीक पहले यह विरोध-प्रदर्शन आयोजित किया गया है. प्रदर्शनकारियों ने मांग की कि इस मामले का शीघ्र निपटारा किया जाए ताकि न्याय में और देरी न हो. इस मामले की सुनवाई वर्तमान में सुप्रीमकोर्ट की पीठ द्वारा की जा रही है.

अंधेरों में डूबा कोलकाता
जिसके बाद पूरा कोलकाता अंधेरे की चादर में लिपटा हुआ दिखाई दिया, क्योंकि हजारों लोगों ने अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाने में सरकार की विफलता पर बढ़ती हताशा के प्रतीक के रूप में रात 9 से 10 बजे तक अपने घरों की लाइटें बंद की थी. विरोध प्रदर्शन के समर्थन में सिटी ऑफ जॉय का प्रतिष्ठित विक्टोरिया मेमोरियल हॉल समेत पश्चिम बंगाल के राजभवन की लाइटें भी बंद कर दी गईं.

राज्यपाल ने कहा- बस बहुत हुआ
राजभवन की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, ‘राज्यपाल ने मुख्यमंत्री को निर्देश दिया है कि वे आरजी कर अस्पताल की घटना से आक्रोशित बंगाल के लोगों की भावनाओं को शांत करने के लिए ठोस कदम उठाएं और राज्य में कानून-व्यवस्था बनाए रखें तथा महिलाओं को सुरक्षा प्रदान करें- बस, बहुत हो गया’

14 अगस्‍त को ‘रिक्लेम द नाईट’
14 अगस्त की मध्य रात्रि के ‘रिक्लेम द नाईट’ आंदोलन की याद दिलाते हुए लोग न्याय की मांग के लिए न्यू टाउन के बिस्वा बांग्ला गेट, श्यामबाजार, सिंथिर मोड़, सोदपुर ट्रैफिक मोड़, हाजरा मोड़, जादवपुर 8बी बस स्टैंड, लेक गार्डन और बेहाला साखर बाजार जैसे विभिन्न स्थानों पर एकत्र हुए.

जानें क्या है रिक्लेम द नाइट (Reclaim the Night)
महिलाओं की सुरक्षा और आजादी को लेकर रीक्लेम द नाइट नाम से प्रदर्शन करना और सड़कों पर उतरने का आंदोलन आज पूरी दुनिया में फेमस है. खास बात यह है कि रिक्लेम द नाइट नाम से प्रदर्शन का आगाज विकसित देश में हुआ था. धीरे-धीरे यह शब्द चर्चा में आ गया और महिलाओं के विरोध की यह बड़ी आवाज बनती चली गई.

ऐसे मिली ब्रिटिश महिलाओं को प्रेरणा
रीक्लेम द नाइट की शुरुआत कुछ इस तरह से हुई. 30 अप्रैल 1977 को जर्मनी में महिलाओं ने सड़क पर उतरकर देश में बढ़ रही यौन उत्पीड़न के खिलाफ प्रदर्शन किया और अपने विरोध को ‘टेक बैक द नाइट’ नाम दिया. इसी से प्रेरणा लेते हुए ब्रिटेन की महिलाओं ने विरोध के लिए अपना खुद का रिक्लेम द नाइट’ मार्च बनाने का फैसला लिया. ब्रिटेन के लीड्स शहर में “रिपर” हत्याओं के जवाब में साल 1977 में 11 शहरों में रीक्लेम द नाइट की शुरुआत हुई.

कहां से हुई शुरुआत
“रिपर” मर्डर में सीरियल किलर पीटर सुटक्लिफ की ओर से की गई हत्याओं को शामिल किया गया था, जिसे मीडिया ने ‘यॉर्कशायर रिपर’ के रूप में नामित किया. पीटर ने 1975 और 1980 के बीच यॉर्कशायर में 13 महिलाओं के साथ पहले यौन हमला किया और फिर उनकी निर्मम हत्या कर दी. यहां की महिलाएं इस बात से नाराज थीं कि इन हत्याओं पर पुलिस ने बहुत सुस्ती दिखाई और कोई कड़ा एक्शन नहीं लिया. मीडिया ने भी इन कत्लों को अपने अखबारों में ज्यादा प्रमुखता नहीं दी. इसके पीछे की बड़ी वजह यह मानी जाती है कि इनमें ज्यादातर महिलाएं सेक्स वर्कर थीं और उनकी हत्या कर दी गई थी.