नई दिल्ली: सरकार की तमाम कोशिशों और विपक्ष के विरोध के बीच मंगलवार को लोकसभा में जमीन अधिग्रहण बिल पास हो गया। हालांकि इसके लिए सरकार को बिल में 11 संशोधन करने पड़े तथा वोटिंग तक की नौबत आ गई।
हालाँकि, शुरुआत से ही विपक्ष इस बिल के खिलाफ थी और कांग्रेस ने तय किया था कि वह बिल के पक्ष में सरकार की तमाम दलीलों के बावजूद इसका पुरजोर विरोध करेगी।विपक्ष और सहयोगी दलों की तरफ से भी पड़ रहे दबाव के चलते बिल पर केंद्र सरकार की और से नौ संशोधन करना पड़ा।
इनमें सोशल इंफ़्रास्ट्रक्चर को ‘मंज़ूरी न लेने वाले सेक्टर’ से बाहर करने, केवल सरकारी संस्थाओं, निगमों के लिए ज़मीन का अधिग्रहण, राष्ट्रीय-राजमार्ग, रेलवे लाइन के दोनों तरफ एक-एक किलोमीटर ज़मीन का अधिग्रहण संभव, किसानों को अपने ज़िले में शिकायत या अपील का अधिकार देने, औद्योगिक कॉरीडोर के लिए सीमित ज़मीन का अधिग्रहण होने, बंजर ज़मीनों का अलग से रिकॉर्ड रखने और विस्थापित परिवार के कम से कम एक सदस्य को नौकरी दिया जाना शामिल है। इसके बावजूद कांग्रेस नेता और सांसद पीएल पूनिया ने कहा है कि सरकार के ये संशोधन केवल दिखावे के हैं।
इसके साथ ही सरकार को इस बिल पर राज्यसभा में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। यहां विरोधी दल कांग्रेस अपनी पूरी रणनीति के साथ तैयार है। वह इसे किसी भी कीमत पर पास नहीं होने देगी। राज्यसभा में कांग्रेस मांग करेगी कि इसे सलेक्ट कमेटी के पास भेजा जाए। दरअसल, लोकसभा में जो काम स्थायी समिति के पास है, वही राज्यसभा में सलेक्ट कमेटी का होता है। उच्च सदन में सरकार के पास र्प्याप्त संख्याबल नहीं है, लिहाजा यहां बिल अटकना तय है।
दरअसल, विपक्ष ने बिल में 50 से ज़्यादा संशोधन सुझाए हैं। इनमें भूमि अधिग्रहण की सीमा स्पष्ट करने, इस पर आने वाले प्रोजेक्ट में किसानों को मुआवज़े के साथ हिस्सेदारी देने, मुआवज़े को लेकर किसी विवाद की सूरत में सुनवाई के लिए एक समिति बनाने जैसे संशोधन शामिल हैं।
इससे पहले, कांग्रेस का मानना था कि इस तरह के संशोधनों के बावजूद यूपीए सरकार द्वारा पास कानून का महत्व खत्म हो जाएगा, इसके लिए वह सरकार से इसे लोकसभा में स्थायी समिति के पास भेजने की मांग करेगी ताकि वहां सभी दलों से सलाह कर इस बिल में दुरूस्त किया जा सके।