नई दिल्ली : नोटबंदी पर केंद्र सरकार ने दावा किया था कि उसका यह कदम काले धन और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिए उठाया गया है, लेकिन क्या इससे सच में काले धान का सर्कुलेशन बंद हुआ है यह कहना जरा मुश्किल है। कई बैंकर्स का दावा है कि नोटबंदी के बाद वे लोग जो दिहाड़ी मजदूरी पर काम करते हैं और उन्हें कैश में भुगतान किया जाता है उन्हें इस फैसले से काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है। बिजनेस स्टैंडर्ड की एक खबर के मुताबिक नोटबंदी के बाद दिहाड़ी मजदूरी पर काम करने वालों को जबरन अपनी जरूरतों का सामान खरीदने के लिए किसी एक दुकान पर एमआरपी से ज्यादा चुकाने पड़ रहे हैं।
खबर के मुताबिक एक फाइनैन्शियल सर्विस फर्म के चीफ एक्सिक्युटिव का दावा है कि कैश की कमी के चलते लोगों को अपनी दिहाड़ी मजदूरी समय पर नहीं मिल रही, जिसकी वजह से वे उधार खरीदारी करने के लिए मजबूर हैं। उनकी इसी परेशानी का नाजायज फायदा उठाकर कई दुकानदार 10% तक के बयाज पर अपना सामान उन्हें बेच रहे हैं। नोटबंदी के बाद भुवन रस्तोदी, लेंडबॉक्स के सीओओ हैं, उनके मुताबिक नोटबंदी के बाद हर महीने लोग नॉन-बैंकिंग फर्म्स से ऋण ले रहे हैं और इसमें लगभग 25% की बढ़ोतरी देखी गई है। वहीं एक और पब्लिक सेक्टर बैंक के एक्सिक्युटिव ने दावा किया है कि पश्चिमी महाराष्ट्र के कुछ देहात इलाकों में कैश की कमी के चलते लोग बयाज पर पैसा लेने को मजबूर हैं और सूदखोर इससे खूब मुनाफा कमा रहे हैं।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि आने वाले समय में कैश का सर्कुलेशन बढ़ाने से या डिजिटल पेमेंट्स की सुविधा को बेहतर करने से ही यह समस्या ठीक हो पाएगी। नोटबंदी के बाद कई जगहों पर, खास कर गांव-देहात के इलाकों में बयाज खोरों को बढ़िया मुनाफा कमाने का मौका मिल गया है। आने वाले समय में कब कैश की किल्लत दूर होगी इस पर पुख्ता तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता। खबर के मुताबिक बैंकों के पास कैश की कमी के चलते सिर्फ गांव-देहात में ही नहीं बल्कि शहरों में भी लोग सूदखोरों के हाथों छोटे ऋण लेने को मजबूर हैं।