देश में शेर हैं और विदेश में ढेर

dhएक बार फिर टीम इंडिया साबित कर दी। यारों! हम तो देश के शेर हैं और विदेश में जाकर ढेर हो जाने वालों में प्रमुख हैं। हां, हालिया टीम प्रदर्शन के तौर पर जरूर कहा जा सकता है। जो भी कथन होगा, वह टीम इंडिया के लिए उपयुक्त ही है। यह सब टीम इंडिया के लिए ही बनया गया है।

लाखों-करोड़ों में खेलने वाले एक विदेशी गेन्दबाज से खौफ खा जाते हैं। ऐसा लगता है कि उनके सामने हथियार डाल देते हैं। विदेशियों के सामने हथियार डालने का परिणाम सामने हैं। हम विदेश में चार बार ऋखंला गवा दिए हैं। अभी-अभी संपन्न टेस्ट मैच में गजब हो गया। टेस्ट मैच की रेकिंग में नम्बर 8 पायदान में रहने वाली न्यूजीलैंड से हार गए। विदेश में हारने का सिलसिला 2011 से प्रारंभ है। 7 साल से टीम इंडिया के कप्तान एमएस धोनी और उनके साथ नाक कटवा दे रहे हैं। हालांकि कप्तान धोनी ने टीम इंडिया को शिखर तक पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़े। जब से स्वयंभू कप्तान बनकर सीनियर प्लेयर को दूध में पड़ी मक्खी के समान बाहर करते चले गए। इसका साफ जाहिर होने लगा है। विदेश में जीत की राह से ही भटक गए हैं।

शायद आपलोगों को स्मरण होगा कि न्यूजीलैंड के कप्तान मैककुल्लम ने कहा भारत से हार टालने के लिए विशेष पारी खेलने पड़ेंगे। उसने कहा और करके दिखा दिया। उसने अपने देश के लिए ऐतिहासिक 302 रन बनाकर हार के डगर से निकल पाने में समर्थ हो गए। इसमें टीम इंडिया के खिलाड़ियों का योगदान भी रहा है। वर्तमान कप्तान और भावी कप्तान के साथ 3 लोगों ने कैच छोड़ दिए। इनको कौन बताएं क्रिकेट में कैच पकड़ों और मैच जीतों को प्रमुखता दी जाती है।

द्वितीय टेस्ट में न्यूजीलैंड को सस्ते में पवेलियन भेजने के बाद बढ़त हासिल कर लिए थे। उसके द्वितीय पाली में भी शानदार प्रदर्शन किए। 3 खिलाड़ियों को सस्ते में निपटा लिया गया। भारतीय को जीत की खुशबू मिलने लगी। जो मृगमरिचिका साबित हुआ। हम विदेश की धरती पर बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते। गेन्दबाज प्रभावशाली होते तो बल्लेबाज धोखेबाज बन जाते हैं। सामूहिकता की खेल में व्यक्तिगत उपलब्धि सामने दिखायी देने लगता है। हम लगातार 14 टेस्ट मैच हार गए। यह सोचने को मजबूर होना पड़ रहा है कि आखिरकार पिछले ढाई साल से टीम इंडिया को क्या हो गया है? विदेशी घरती पर जीत का स्वाद लेना भूल गए हैं। सब कुछ खोते चले जा रहे हैं।

सबसे पहले 2011 में इंग्लैंड से हार गए। उसी साल ऑस्ट्रेलिया से भी हार गए। फिर 2013 में दक्षिण अफ्रीखा से भी गच्चा खा गए। जो आबरू बचाने का समय 2014 में आया। भारत से सोचकर गए थे कि न्यूजीलैंड को दबोच देंगे। मगर आठवीं पायदान में रहने वाले न्यूजीलैंड ने गला दबा दिया। यहां भी ऋखंला गवा दिए।

कप्तान एमएस धोनी पर तलवार लटकनी शुरू हो गयी है। वह भी 2015 तक कप्तान को नहीं हटाने की वकालत भी होने लगी है। टीम इंडिया के पूर्व कप्तानों का कहना है कि विश्व कप के आलोक में छेड़छाड़ नहीं किया जाए। इसके अलावे आगामी इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया दौरा के समय भी कप्तान में बदलाव नहीं किया जाए। यह सब टर्फ टूर है। वर्तमान समय में क्रिकेट व्याप्त राजनीति को समाप्त करके पेशेवर रूख अपनाकर टीम इंडिया के हित में कदम उठाना चाहिए।