दरअसल, लोकपाल बनने से पहले ही विवाद शुरू हो गए। देश के जानेमाने कानूनविद् फली एस नरीमन ने सर्च समिति का सदस्य बनने से इन्कार कर दिया तो सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश केटी थामस ने भी समिति के अध्यक्ष पद की पेशकश ठकरा दी। इससे पहले जैसे-तैसे सरकार ने सेलेक्ट कमेटी में वरिष्ठ वकील पीपी राव का सदस्य के तौर पर चयन किया तो विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने अपना विरोध दर्ज करा दिया। ये सब चल ही रहा था कि सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिला हो गई है, जिसमें लोकपाल चयन प्रक्रिया और लोकपाल कानून के तहत बनाए गए नियमों चुनौती दे दी गई।
सूत्र बताते है कि इन सब चीजों को देखते हुए ही केंद्र सरकार ने प्रक्रिया धीमी कर दी है। माना जा रहा है कि सरकार 31 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका पर तय सुनवाई में सालीसिटर जनरल के जरिये अपना पक्ष रख सकती है। हालांकि अभी सुप्रीम कोर्ट ने जनहित याचिका पर सुनवाई नहीं की है और न ही सरकार को कोई नोटिस जारी हुआ है। ऐसे में हो सकता है कि याचिका पर सुनवाई के दौरान अगर कोर्ट मामले में विचार करने का मन बनाता है और नोटिस जारी करता है तो उसी समय सरकार की ओर से फौरी तौर पर पक्ष रखा जाए।
सरकार खुले तौर पर नही मान रही है कि उसने लोकपाल चयन प्रक्रिया धीमी की है। लेकिन ऐसा अंदाजा
इसलिए लगाया जा रहा है क्योंकि लोकपाल के बारे में पिछले सप्ताह प्रधानमंत्रीकी अध्यक्षता में होने वाली अहम बैठक निरस्त हो गई थी और अगले महीने आम चुनाव से पहले इसके होने की उम्मीद भी नहीं है।
गैर सरकारी संस्था कामनकाज की ओर से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई जनहित याचिका में लोकपाल की पूरी चयन प्रक्रिया पर ही सवाल उठा दिया गया है। साथ ही लोकपाल कानून के तहत बनाए गए नियमों को भी चुनौती दी गई है। याचिका में कोर्ट से कुछ नियमों को रद करने की मांग की गई है।