दुनिया के कुल कुपोषित लोगों की आधे से कुछ ही कम आबादी भारत में रहती है। चौंकि, नहीं ये हम नहीं कह रहे ये आंकड़ा है एक अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट का, जिसमें खुलासा हुआ है कि दुनिया की 40 फीसदी कुपोषित आबादी भारतीय है कुपोषण के अलावा कम वजन वाले बच्चों की संख्या भी भारत में सबसे अधिक है।
उभरती अर्थव्यवस्था होने के बावजूद स्वास्थ्य और पोषण के मामले में भारत की हालत ब्राजील, नेपाल, बांग्लादेश और चीन जैसे देशों से खराब है। रिपोर्ट के मुताबिक दक्षिण एशिया में पाँच वर्ष से कम उम्र वाले इन कुपोषित बच्चों की
तादाद आठ करोड़, 30 लाख के क़रीब है। भारत के लिए चिंताजनक बात यह है कि ऐसे कुपोषित बच्चों का प्रतिशत भारत में पाकिस्तान और बांग्लादेश से भी ज़्यादा है। केवल भारत में कुपोषित बच्चों की तादाद 6.1 करोड़ के आसपास है।
क्या है कुपोषण ?
आवश्यक संतुलित आहार का लंबे समय तक शरीर को नहीं मिलना ही कुपोषण है। कुपोषण के कारण बच्चों और महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है जिससे वे आसानी से कई तरह की बीमारियों के शिकार बन जाते हैं। कुपोषण पर्याप्त संतुलित आहार के आभाव में होता है बच्चों और महिलाओं में अधिकांश रोगों की जड़ में कुपोषण ही होता है। महिलाओं में रक्ताल्पता या घेंघा रोग तथा बच्चों में सूखा रोग और रतौंधी कुपोषण के ही दुष्परिणाम हैं।
कुपोषण के कारण
विकसित राष्ट्रों की अपेक्षा विकासशील देशों में कुपोषण की समस्या ज्यादा विकराल है। इसका प्रमुख कारण है। गरीबी, धन के अभाव में गरीब लोग पर्याप्त, पौष्टिक चीजें जैसे दूधए फलए घी इत्यादि नहीं खरीद पाते, कुछ तो केवल अनाज से मुश्किल से पेट भर पाते हैं लेकिन गरीबी के साथ ही एक बड़ा कारण अज्ञानता तथा निरक्षरता भी है। अधिकांश लोगों, विशेषकर गांव और दूरदराज के इलाकों में रहने वाले लोगों को संतुलित भोजन के बारे में जानकारी नहीं होती, इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान लापरवाही भी कुपोषण का एक बड़ा कारण है। भारत में हर तीन गर्भवती महिलाओं में से एक कुपोषण की शिकार होती है। अक्सर महिलाएं अपने खान.पान को लेकर लापरवाह होती है जबकि गर्भवती महिलाओं को ज्यादा पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है।
कुपोषण को कैसे पहचाने ?
शरीर का स्वस्थ रहना बहुत आवश्यक है और कुपोषण कई तरह की बीमारियों की जड़ है। लिहाजा कुपोषण के लक्षणों को पहचानना बहुत जरुरी हो जाता है। यदि मानव शरीर को संतुलित आहार के जरूरी तत्व लंबे समय तक न मिलें तो निम्नलिखित लक्षण दिखते है जिनसे कुपोषण का पता चल जाता है।
1. शरीर की वृद्धि रुक जाती है 2. मांसपेशिया सिकुड़ने लगती है 3. त्वचा पर झुर्रियां पड़ने लगती है और त्वचा का रंग पीला हो जाता है 4. थकान महसूस होती है 5. स्वभाव में चिड़चिड़ापन और मन में घबराहट होने लगती है 6. आंखों के चारों ओर काला घेरा बन जाता है 7. शरीर का वजन कम होने लगता है 8. नींद नहीं आती है 9. हाथ पैर पतले और पेट बढ़ा होने लगता है या शरीर में सूजन आने लगती है
कुपोषण राष्ट्रीय शर्म है
दिल्ली में भूख और कुपोषण संबंधी रिपोर्ट जारी करते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि कुपोषण की समस्या पूरे देश के लिए शर्म की बात है। सकल घरेलू उत्पाद में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी के बावजूद देश में कुपोषण का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। सरकार की नाकामी की ओर इशारा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि भले ही समेकित बाल विकास योजना (आईसीडीएस) कुपोषण से लड़ने के लिए सरकार के पास मौजूद सबसे कारगर हथियार है लेकिन अब केवल इस योजना के सहारे नहीं रहा जा सकता। हमें उन राज्यों पर खासतौर से ध्यान केंद्रित करना होगा जहां कुपोषण सबसे ज़्यादा है और इस समस्या को बढ़ावा देने वाली परिस्थितियां मौजूद हैं।
सबसे कुपोषित राज्य कौन ?
देश भर में कुपोषण से सर्वाधिक प्रभावित सौ जिलों में से 41 जिले अकेले उत्तर प्रदेश के है। लेकिन दुर्भाग्य की बात ये है कि उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनावों में कुपोषण कोई मुद्दा नहीं था। हैदराबाद के एक एनजीओ द्वारा कुपोषण पर तैयार की गई एक रिपोर्ट में देश के सर्वाधिक कुपोषित 112 जिलों में से उत्तर प्रदेश के 41, बिहार के 23, झारखंड के 140, मध्यप्रदेश के 12, राजस्थान के 10, उड़ीसा के 6 और हिमाचल प्रदेश, केरल एवं तमिलनाडु के दो-दो जिलों को शामिल किया गया।
सरकारी उपाय
कुपोषण की समस्या से निपटने के लिए लगातार पंचवर्षीय योजनाओं में प्रावधान किया जा रहा है। पर सचाई यह भी है कि हम छह दशक बाद भी कुपोषण से मुक्ति पाने के लिए असफल संघर्ष करते नजर आ रहे हैं। इसके अलावा भी सरकार विभिन्न योजनाओं के जरीए कुपोषण से निपटने की कोशिश कर रही है।
- राष्ट्रीय बाल नीति-1974
- एकीकृत बाल विकास परियोजना आईसीडीएस-1975
- राष्ट्रीय पोषण नीति-1993
- नेशनल प्लान ऑफ एक्शन फॉर न्यूट्रीशन-2005
- एनीमिया को रोकने के लिए विशेष योजना
- सरकारी स्कूलों में मध्याह्न भोजन योजना
- 9 माह से 3 साल तक के बच्चों को विटामिन ए की खुराक
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली
- राज्यों की संवैधानिक बाध्यताएं
भारत के संविधान का अनुच्छेद 21 हर एक के लिए जीवन और स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार सुनिश्चित करता है। इस अनुच्छेद के तहत भोजन का अधिकार सम्मिलित है। वहीं संविधान का अनुच्छेद 47 कहता है कि लोगों के पोषण और जीवन के स्तर को उठाने के साथ ही जनस्वास्थ्य को बेहतर बनाना राज्य की प्राथमिक जिम्मेदारी है। मानव अधिकारों पर जारी अन्तर्राष्ट्रीय घोषणा पत्र (1949) की धारा.25 हर व्यक्ति के लिये पर्याप्त भोजन के अधिकार को मान्यता देती है राज्य सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए कमजोर वर्ग के लोगों को सस्ती दरों पर खाद्यान्न उपलब्ध कराता है।
भले ही ऊंची विकास दर अर्थव्यवस्था की गतिशीलता का पैमाना होए मगर खाद्य असुरक्षा को लेकर कृषि प्रधान देश की कुपोषित दुर्दशा निश्चित ही गंभीर बात है। सोचिए, यह एक ऐसे देश की तस्वीर है जो 2020 तक सुपर पावर बनने का सपना देख रहा है। बहरहाल इससे बड़ी त्रासदी और क्या हो सकती है कि एक ओर कुपोषण, भुखमरी से हर साल लाखों लोग मरते है वहीं दूसरी तरफ लाखों टन अनाज खुले में बरबाद होता है जबकि देश की बड़ी आबादी को भरपेट भोजन नसीब नहीं है।