अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटन मानचित्र पर अपनी खास पहचान बनाने वाला हिमाचल प्रदेश का छोटा शहर ’मनाली’ प्राकृतिक दृश्य का एक नायाब खजाना है, और देश व विदेश के सैलानियों के लिए आकर्षण का केन्द्र रहा है। मनाली मनुआलय से बना है। ’मनुयालय का अर्थ मनुऋषि का घर है। मान्यता है कि यहीं से महाऋषि मनु ने सुष्टि की रचना शुरू की। कुल्लू मनाली में चारों ओर हरे-भरे वन तथा हिमाच्छादित पहाड़ों की चोटियाँ हैं, चाहे कोई भी ऋतु हो मनाली कर मौसम में आकर्षण है। प्रकृति ने मनाली को यह सब कुछ प्रदान किया है। यहाँ प्राकृतिक दृश्य मनमोहन है स्थानीय लोग शान्ति प्रिय एवं सहयोगी है। यहां की संस्कृति तथा जीवन शैली भिन्न है, ऐसा कहा जाता है कि मनाली शहर 1890 ई. के बाद बसा उस समय मनाली में दो तीन दुकाने ही हुआ करती थी, होटल तो नाम मात्र के भी नहीं थे।
मनाली के मुख्य बाजार से एक किलो मीटर की दूरी पर स्थित प्रसिद्ध सनशाईन गेस्ट हाऊस है। इसे मेजर स्थित प्रसिद्ध सनशाईन गेस्ट हाऊस है। इसे मेजर एच. एम. बेनन ने सन् 1928 ई. अपने निजी निवास हेतु बनवाया था, और 1944 में इसे गेस्ट हाऊस के रूप में शुरू किया गया, न जाने कितनी ही महान हस्तियाँ इस गैस्ट हाऊस में ठहर चुकी है। रिकार्ड पुस्तिका में सबके नाम व हस्ताक्षर मौजूद हैं। सन् 1958 में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री प. जवाहरलाल नेहरू पहली बार मनाली आए और उस समय वे लोक निर्माण विभाग के छोटे से विश्राम गृह में रूके थे। नेहरू जी के आगमन से मनाली ने अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि पाई, और धीरे-धीरे मनाली में होटल व गैस्टहाऊस बनने लगे।
श्रीमती इन्दिरा गांधी पहली बार सन् 1972 में मनाली आई। तभी से मनाली का धीरे-धीरे विकास होना शुरू हुआ और फिर मनाली में फिल्मों की शुटिंग भी होने लगी। न जाने कितनी ही सुपरहिट फिल्मों की शुटिंग मनाली में हो चुकी हैं। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की यह सबसे प्रिय जगह रही है। वाजपेयी जी पिछले कई सालों से मनाली आते रहे हैं, इस वजह से भी मनाली काफी तेजी से मशहूर हुआ है।
कैसे करें मनाली की यात्रा
आज मनाली में काफी होटल मौजूद हैं, अपनी इच्छानुसार आप अपना कमरा बुक करा सकेते है। हर साल लाखों की तादात में पर्यटक मानसिक शान्ति के लिए शहरों की भीड़-भाड़ को छोड़ कर यहाँ आते हैं। प्रकृति छटा के मनमोहक सजीले दृश्य, श्वेत बर्फीली चोटियां, बहते झरने तथा हरे भरे वन यहां आने वाले हर पर्यटक को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। यह जगह फोटोग्राफरों तथा फिल्म शुटिंग व चित्रकारों के लिए स्वर्ग है। आप वायुयान द्वारा भी दिल्ली से या चण्डीगढ़ से मनाली का सफर कर सकते हैं। दिल्ली से वायुयान द्वारा 2 घंटा व चण्डीगढ़ से 45 मिनट में आप भंतूर हवाई अड्डा कुल्लू पहुंच सकते हैं। यहाँ से मनाली 50 किलोमीटर दूर है। इसके अलावा सबसे निकट रेलवे स्टेशन कालका, चण्डीगढ़ व पठानकोट है। मनाली आने वाले पर्यटक दिल्ली व चण्डीगढ़ को अपना स्टेशन चुन सकते हैं, यहाँ से हर प्रकार की साधारण व डीलक्स बस सेवाएं मौजूद हैं, या फिर अपने निजी वाहन द्वारा भी राष्ट्रीय उच्च मार्ग 21 से होते हुए मनाली पहुंच सकते हैं। प्राकृतिक दृश्य का आनन्द लेना है तो दिन में ही यात्रा करे, यहाँ आंखों के लिए निरन्तर आकर्षक दृश्य मिलते हैं। मनाली में अधिकतम तापमान 32.8 डिग्री सेल्सियस तथा सर्दियों में न्यूनतम तापमान 7 से 8 डिग्री सेल्सियस होता है।
सर्द मौसम अक्टूबर से फरवरी तक तथा गर्म मौसम मार्च से जून तक होता है। मनाली भ्रमण पर निकलने से पहले आप अपने साथ स्टील कैमरा, वीडियों कैमरा, दूरवीन व जरूरी दवाईयां अवश्य रख लें। मनाली की ऊँचाई समुन्द्रतल से 2050 मीटर है। मनाली में पहले दिन आप स्थानीय जगह देख सकते हैं, इच्छानुसार टैक्सी या ऑटो रिक्शा बुक करा सकते हैं।
मनाली के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल
हिडिम्बा मन्दिरः
मनाली के मुख्य बाजार से डेढ़ किलो मीटर की दूरी स्थित हिडिम्बा देवी मन्दिर भी यहाँ पर्यटकों को खूब लुभाता है। महाभारत के सन्दर्भ के अनुसार, हिडिम्बा पांडवो के भाई भीम की पत्नी थी, हिडिम्बा देवी इस पूरे इलाके की अराध्य देवी है।
इस मंदिर में कई फिल्मों की शुटिंग भी हो चुकी है। देवदार के वृक्षों से घिरा हुआ हिडिम्बा देवी का यह मंदिर अत्यंत सुन्दर है। यहां पर आप याक पर बैठ कर कुल्लू के परिधान पहन कर यहाँ की संस्कृति को महसूस कर इन पलों को अपने कैमरे में कैद कर सकते हैं। इसके अलावा घटोत्कच्छ का मंदिर, सियाली महादेव का मंदिर, श्री महामाया दुर्गा मन्दिर, यहाँ सभी मन्दिर इसी हिडिम्बा रोड पर स्थित है।
मनु मंदिरः
मनाली के मुख्य बाजार से 2 किलो मीटर की दूरी पर मनु मन्दिर पुराना गांव में स्थित है। ऐसा कहा जाता है कि सृष्टि की रचना इसी जगह से शुरू हुई। मनुऋषि का यह मन्दिर पूरे भारत में कहीं नहीं है। इसी रोड़ पर स्थित कलब हाऊस में आप विलियर्ड, टेनिस व बच्चों के लिए कई खेलों की सुविधा उपलब्ध है। 1980 के दशक में इस जगह कई फिल्मों की शुटिंग हो चुकी है। बौद्धित्सव मन्दिर मनाली बाजार में ही स्थित है। यह बिब्बतियों का धार्मिक स्थल है, वहां लामाओं को धर्म प्रचार तथा धार्मिक अनुष्ठान का प्रशिक्षण दिया जाता है।
वशिष्ट गरम जल स्त्रोतः
यह जगह मनाली के मुख्य मनाली से 4 किलो मीटर दूर है। यहाँ वशिष्ट ऋषि जी का चार वर्ष प्रचीन मन्दिर है।
एक कथानुसार जब लक्षमण ने देखा कि गुरू वशिष्ट को स्नान करने के लिए काफी दूर जाना पड़ता था तो उन्होंने धरती पर इतने जोर से तीर मारा कि यहां से गरम जल गठिया तथा चमड़ी रोग के उचपार के लिए इस जल में नहाना अत्यंत लाभदायक है। पुरूष तथा महिलाओं के लिए अलग अलग कुण्ड की व्यवस्था है। इसके दायीं ओर श्री राम चन्द्र जी का प्रचीन मन्दिर है। यहां भी कई फिल्मों की शुटिंग हो चुकी है। सोलांग वैली मनाली से 12 किलोमीटर की दूरी पर रोहतांग रोड़ पर स्थित है। यह जगह सदियों में शीतकालीन स्कीइंग प्रेमियों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है।
फरवरी महीने में यहां हर समय स्कींइग प्रेमियों का तांता लगा रहता है। इसके अलावा यहां मनोरंजन के कई और खेल भी मौजूद हैं। गर्मियों के मौसम में हरे-भरे घास के विशाल मैदान में पैराग्लाइडिंग, माऊंटेनबाईक, होर्स राइडिंग और अन्य प्रमुख खेलों का मजा आप ले सकते हैं। दिसम्बर में मार्च तक यहां पर कुदरती बर्फ से बना शिवलिंग भी बनता है, हजारों श्रद्धालु दर्शन हेतु यहां आते हैं।
मनाली आकर अगर आपने रोहतांग पास नहीं देखा तो समझिए आपका टूर अधूरा है। रोहतांग पास मनाली से 51 किलोमीटर पर है, इस रोड पर विशेष सावधानी बरते गाड़ी चलाते समय आप या अपने ड्राइवर को मादक पर्दार्थों का सेवन ना करने दें, क्योंकि इस रूट पर ज्यादातर सड़क घुमावदार हैं। रास्ते की दर्शनीय जगहों को देखते हुए रोहतांग पास को निकलने वाले रास्ते में कहीं से भी आप बर्फ में पहनने वाले बूट व कपड़े किराये पर ले सकते हैं।
श्रोहतांग पास यहां कुल्लू सीमा समाप्त हो जाती है और लाहौर वैली की सीमा आरम्भ हो जाती है। इसे लाहौर का स्वागत द्वार भी कहते हैं। यहां की ऊंचाई समुन्द्रतल से 13,500 फीट है, इस जगह पर तेज नहीं भागना चाहिए क्योंकि यहां ऑक्सीजन कम होती है। दिसम्बर से अप्रैल तक रोहतांग पास बन्द रहता है। क्योंकि इन दिनों यहां पर भारी बर्फ बारी होती है।
मार्च के पहले समाप्ताह से विशेष स्नोकब्र, व बुलडोजर द्वारा बर्फ हटाने का कार्य लगातार डेढ़ महीने तक चलता है। बर्फ हटाने का यह कार्य काफी चुनौतियों भरा होता है। ठंड के कारण रोड़ पर पानी जम जाता है। शुरूआती दिनों में जब रोहतांग पास खुलता है तो रोड़ के दोनों तरफ ज्यादा बर्फ होने के कारण पार्किंग की सुविधा हेतु पर्यटक को कुछ दिनों तक आने की इज़ाजत नहीं होती। मई के अन्तिम सप्ताह से सभी पर्यटको के लिए रोहतांग पास खोल दिया जाता है। जून के महीने जब पूरा भारत गर्मी से तप रहा होता है तो यहां बर्फ का ठंडा नजारा देखने को मिलता है, जिसे देखने और महसूस करने की चाह मैदानी इलाकों से सैलानियों को यहां खीच लाती है, यह सैलानियों की सबसे प्रिय जगह है। बर्फ का आनन्द उठाने से पहले अपने कीमती आभूषण, फोन, पर्स, घड़ी, कैमरा, सुनिश्चित जगह पर सम्भाल ले ताकि आप बर्फ का आनन्द पूरी तरह से ले सकें, क्योंकि अक्सर ये चीजे बर्फ में खेलते समय गिर जाती है। हर चीज का मोल भाव पहले से तय कर लें।
मौसम अगर सही है तो आप जितना चाहे रूक सकते हैं, अगर मौसम खराब है तो ज्यादा आगे न जाये कभी भी बारिश या बर्फ गिर सकती है। यहां पर आप बर्फ पर स्कीइंग, स्नोस्कूटर, स्लैज, घोड़े या याक की सवारी, स्नो मैन व यहाँ के परिधान पहन कर प्रत्येक क्षण को अपने कैमरे में कैद कर सकते हैं। 1962 में जब नेहरू जी दूसरी बार अपनी फैमली के साथ मनाली आये थे त बवह रोहतांग पास भी आए थे। उस समय इतनी अधिक सुविधा नहीं थी कई किलो मीटर तक पैदल मार्ग था।
मनाली के बुजुर्ग लोगों की माने तो 70 के दशक में जब मनाली में भारी बर्फ बारी हुआ करती थी तो 10 से 15 दिन बिजली भी ठप पड़ जाती थी। कोई हरी सब्जियां व दूध, पनीर नहीं मिलता था। बहुत कम पर्यटक यहाँ आते थे, टी. वी. भी नहीं थे, पहली बार जब नेहरू मनाली आये थे तो उन्होंने मनाली हाई स्कूल को एक रेडियों भेंट किया था। पैदल चलने के मार्ग ज्यादा थे, मगर आज मनाली में हर सुविधा उपलब्ध है। नई सड़कों के निर्माण से नये पर्यटन स्थल विकसित हुए हैं। अब यहां पर्यटक 10 से 12 दिनों तक ठहरते हैं। रोहतांग पास से पहले गर्मियों में आप के लिए हैलीकाॅप्टर सेवाएं भी मौजुद हैं। आप हैलीकॉप्टर में बैइकर ऊँचाई से यहाँ के सुन्दर दृश्यों को देख सकते हैं।
मनाली से नगर 20 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। यह विश्व विख्यात रशियन चित्रकार निकोलस रोरीक आर्ट गैलरी है, इस गैलरी में रोरीक द्वारा बनाये गऐ हिमालय के चित्र सजाए गए हैं। मनाली से मणीकरण 85 किलोमीटर दूर है। यह एक धार्मिक स्थल है, यहां एक विशाल गुरूद्वारा है, ओर प्राकृतिक गरम जल स्त्रोत है। इस गुरूद्वारे में हर समय चलने वाला लंगर इसी प्राकृतिक गर्म पानी में पकाया जाता है। गुरूद्वारे में लगभग 14000 श्रद्धालुओं के रहने की व्यवस्था है। मणिकण्ज्ञ्र की विरूतृत जानकारी के लिए यहां पुस्तके भी उपलब्ध हैं। यहां मेलों और त्योहारों की अद्भुत परम्परा है, मेलों में यहां के लोग नाचने और गाने के बहुत शौकिन हैं। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर यहां का सबसे प्रसिद्ध मेला कुल्लू का दशहरा है। जब सम्पूर्ण भारत में दशहरे का समापन होता है तो वहीं इस कुल्लू दशहरे का आरम्भ होता है। अक्टूबर माह में होने वाला यह दशहरा सात दिन तक होता है। रोहतांग पास सरकारी घोषणा के अनुसार 15 नवम्बर को बन्द होता है, तथा मई के अन्ति सप्ताह में पुनः खोला जाता है।
कुछ जरूरी निर्देशः
1. यहां के अधिकतर मिन्दर में चमड़े से बनी वस्तुऐं ले जाना मना है।
2. व्यास नदी का जल को हल्के में न लें, इस नदी का जल तीव्र गति से बहता है। नदी के पास न ही जाए तो ठीक है।
3. किराये पर लिए गए कपड़ों को लौटाते समय जेब अवश्य चैक कर लें।
4. वापसी की टिकट एक दिन पहले बुक करा लें, कई बार ज्यादा भीड़ होने के कारण टिकट नहीं मिलती।
5. मनाली के बारे में विस्तृत जानकारी की पुस्तके व वीडियों सी. डी. जरूर ले जायें।
6. चलते फिरते गाइड अपने साथ न लेकर जाए, उन का परिचय पत्र जरूर जांच लें।
7. हिमाचल पर्यटन सूचना केन्द्र व निजी ट्रेवलस कम्पनियों की सुविधाऐं जरूर लें, सभी जरूर दफ्तर मनाली के मुख्य बाजार में ही स्थित है।
साथ ले जाने वाली आवश्यक चीजें:
1. यहां से आप कुल्लू की शाल, टोपी व घास से बने पूले जो की एक प्रकार की सुन्दर डिजाईन वाली चप्पल है। इसके अलावा ऊन से बनी सुन्दर डिजाईन वाली जुराबे भी जरूर लेकर जाऐं। यह उपहार के लिए दिये जाने वाली उपयुक्त वरूतुएं हैं।
2. शकौरी (ड्राई एपल) लोकल बादाम, सेब से बना जैम, पलम जैम, लकड़ी से बनी वस्तुऐं अखरोट, काला जीरा आदि अवश्य लेकर जायें।