मन्टो ज़िन्दा रहेगा

उर्दू अदब के अज़ीम अफ़सानानिगार सआदत हसन मंटो की 107वीं सालगिरह 11 मई को मनाई गई। मन्टो 11 मई 1912 को लुधियाना के शहर समराला में पैदा हुए। बाप की सख़्ती और माँ की शफ़क़त में मन्टो की शख़्सियत पनपी। हमेशा मुआशरे की दुखती रग पर हाथ रखने वाले इस इंक़लाबी ख़ून ने अपने पहले ही अफ़साने ‘तमाशा’ से अपनी क्रांतिकारी सोच ज़ाहिर कर दी। जैसे-जैसे ‘सआदत हसन’ ‘मन्टो’ बनाता गया वैसे-वैसे उसकी क़लम समाज को उसकी असली शक़्ल दिखती गई। मन्टो ने ह्यूगो, गोर्की, चेखव, मोपासां जैसे कई दूसरे क्लासिक लेखकों को पढ़ा। मन्टो रूसी कथाकारों में से गोर्की से सबसे ज़्यादा प्रभावित था और गोर्की के बारे में मशहूर है कि ‘वह घर में बैठ कर कहानी लिखने का आदी नहीं था’। मन्टो की ज़िन्दगी और अफ़सानों दोनों पर ये असर नुमायाँ है, मन्टो जिस तरह कभी एक शहर में टिक कर रह ना सके उसी तरह उनके अफ़साने भी ना तो एक तबके तक बंधे रहे और ना ही उन्हेंने ने सभ्य सामज द्वारा पचा लिए जाने वाले किरदारों को बाउंड्री में बांधे रक्खा। मन्टो के किरदार इसी समाज का हिस्सा हैं जिसे हम और आप औरत, मर्द, तवाइफ़ या हिजड़ा कहते हैं। मन्टो की कलम मुल्क की हालत, सियासत और मज़हब की ऐसी चीरफाड़ करती है कि जिस पर टांके लगाने में खुद मुल्क, सियासत और मज़हब के छिलके उतर जाते हैं। वह ‘किसी के भी साथ’ हो रही नाइंसाफी के ख़िलाफ़ चीख़ चीख़ कर सामज का कान फोड़ देने का ठेका लेते हैं और आप को भी ‘किसी’ और हर ‘उस किसी’ के साथ खड़े हो कर इंसानियत निभाने का इसरार करते हैं जिससे आपको कोई फ़र्क नहीं पड़ता। ‘टोबा टेक सिंह’, ‘खोल दो’, ‘धुआँ,’ ‘ठंढा गोश्त’, ‘बू’ जैसे अफ़सानों से शोहरत की बुलन्दियों को चूमने वाले मन्टो को इन्ही अफ़सानों के कारण तीन बार अदालती सज़ाओं का सामना भी करना पड़ा। मन्टो ने कहा- “ज़माने के जिस दौर से हम इस वक़्क्त गुज़र रहे हैं, अगर आप उससे नावाकिफ़ हैं तो मेरे अफ़साने पढ़िए। अगर आप इन अफ़सानों को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो इसका मतलब यह है कि यह ज़माना नाक़ाबिले बर्दाश्त है।”
इस कलमनिगार की कहानियाँ समाज और इस समाज की तथाकथित सभ्यता के गाल पर तमाचा मरती हैं यही कारण है कि पाठक उनकी कहानियाँ पढ़ते वक़्क्त समाज की बदसूरती को नंगा देखता है, जिसे कपड़े पहनाने की कोशिश मंटो नहीं करता। अपनी 42 साल की ज़िन्दगी में मन्टो ने वो मक़ाम हासिल किया कि उनके बग़ैर उर्दू अफ़साने का वजूद मुक़म्मल नहीं हो सकता। मन्टो ने लिखा कि- ‘ऐन मुमकिन है कि सआदत हसन मर जाए मग़र ‘मन्टो’ ज़िन्दा रहेगा’। वाक़ई जब तक इंसानी वजूद इस दुनियाँ में रहेगा तब तक मन्टो ज़िन्दा रहेगा।