जनसंचार माध्यमों द्वारा समाज में प्रत्येक व्यक्ति को अधिक से अधिक अभिव्यक्ति का अवसर प्राप्त हो रहा है। स्वतंत्र जनसंचार माध्यम लोकतंत्र की आधारशिला है। अर्थात जिस देश में जनसंचार के माध्यम स्वतंत्र नहीं है वहां एक स्वस्थ लोकतंत्र का निर्माण होना संभव नहीं है। जनसंचार माध्यमों का जाल इतना व्यापक है कि इसके बिना एक सभ्य समाज की कल्पना नहीं की जा सकती।
हालांकि जनसंचार माध्यमों में हाल ही कुछ वर्षों में एक क्रांति का उदय हुआ है जिसे हम संचार क्रांति कहते हैं। जनमाध्यमों में क्रांति के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी क्रांति आई है। जिसने मॉर्सल मैक्लुहान के वक्तव्य को पूर्णतः सत्य कर दिया कि संपूर्ण दुनिया एक गांव में तब्दील हो जाएगी। मनुष्यक के बोलने का अंदाज बदल जाएगा और क्रिया-कलाप भी।
ऐसा ही हुआ है, आज युवा रेडियों सुन रहा है, टेलीविजन देख रहा है, मोबाइल से बात कर रहा है और अंगुलियों से कंम्प्यूटर चला रहा है। कहने का मतलब यह है कि युवा एक साथ कई तकनीकों से संचार कर रहा है। संचार का विस्तृत रूप जनसंचार है। जनसंचार माध्यमों का युवा वर्ग पर पड़ने वाले प्रभावों के संदर्भ में बाते करें तो हर एक विषय की तरह इसके भी दो रूप दिखाई पड़ते हैं- सकारात्मक और नकारात्मक।
अब मुख्य प्रश्नद यह उठता है कि आज की युवा पीढ़ी जनसंचार माध्यमों के किस पहलू पर अधिक अग्रसरित हो रही है। सकारात्मक पहलू पर या नकारात्मक पहलू पर। यह बात सही है कि जनसंचार माध्यमों के द्वारा आज का युवा वर्ग अपनी आवश्यलकताओं की पूर्ति कर रहा है।
युवाओं पर मीडिया का प्रभाव मौजूदा आंकड़ों के मुताबिक कहें तो देश की तकरीबन 58 फीसदी आबादी युवाओं की है। ये वो वर्ग है जो सबसे ज्यादा सपने देखता है और उन सपनों को पूरा करने के लिए जी-जान लगाता है। मीडिया इन युवाओं को सपने दिखाने से लेकर इन्हें निखारने तक में अहम भूमिका निभाने का काम करता है।
अखबार-पत्र-पत्रिकाएं जहां युवाओं को जानकारी मुहैया कराने का गुरू दायित्व निभा रहे हैं, वहीं टेलीविजन-रेडियो-सिनेमा उन्हें मनोरंजन के साथ आधुनिक जीवन जीने का सलीका सिखा रहे हैं। लेकिन युवाओं पर सबसे ज्यादा और अहम असर हो रहा है न्यू- मीडिया का। जी हां, इंटरनेट से लेकर तीसरी पीढ़ी (थ्री-जी) मोबाइल तक का असर यूं है कि देश-दुनिया की सरहदों का मतलब इन युवाओं के लिए खत्म हो गया है। इनके सपनों की उड़ान को तकनीक ने मानों पंख लगा दिए हैं। ब्लॉगिंग के जरिए जहां ये युवा अपनी समझ-ज्ञान-पिपासा-जिज्ञासा-कौतूहल-भड़ास निकालने का काम कर रहे हैं।
वहीं सोशल मीडिया साइट्स के जरिए दुनिया भर में अपनी समान मानसिकता वालों लोगों को जोड़ कर सामाजिक सरोकार-दायित्व को पूरी तन्मयता से पूरी कर रहे हैं। हाल में अरब देशों में आई क्रांति इसका सबसे तरोताजा उदाहरण है। इन आंदोलनों के जरिए युवाओं ने सामाजिक बदलाव में अपनी भूमिका का लोहा मनवाया तो युवाओं के जरिए मीडिया का भी दम पूरी दुनिया ने देखा। युवाओं पर इसका अधिक प्रभाव इसलिए पड़ा क्योंकि वे उपभोक्तावादी प्रवृति के होते हैं। वे बिना किसी हिचकिचाहट के किसी भी नई तकनीक का उपभोग करना शुरू कर देते हैं।
यह कहना गलत नहीं होगा कि दूसरी ओर युवा वर्ग जनसंचार की चमक के माया जाल में फंसता जा रहा है। इस आलोच्य में कहा जाए तो युवाओं में तेजी से पनप रहे मनोविकारों, दिषाहीनता और कत्र्तव्यविमुखता को संचार माध्यमों के दुष्पारिणामों से जोड़कर देखा जा सकता है।
पश्चिम का अंधा अनुसरण करने की प्रवत्ति उन्हें आधुनिकता का पर्याय लगने लगी है। इनसे युवाओं की पूरी जीवन-षैली प्रभावित दिखलाई पड़ रही है जिससे रहन-सहन, खान-पान, वेषभूषा और बोलचाल सभी समग्र रूप से शामिल है। मद्यपान और धूम्रपान उन्हें एक फैशन का ढंग लगने लगा है। नैतिक मूल्यों के हनन में ये कारण मुख्य रूप से उत्तरदायी है। आपसी रिश्तेंल-नातों में बढ़ती दूरियां और परिवारों में बिखराव की स्थिति इसके दुखदायी परिणाम हैं।
इसी क्रम में बात करें तो अति आधुनिक संचार माध्यम जिसे हम न्यू मीडिया के नाम से जानते हैं वो भी जहां एक ओर युवाओं के लिए वरदान साबित हो रहा है, वहीं दूसरी ओर ये एक अभिशाप के रूप में युवाओं की दिशाहीनता को बढ़ा रहा है। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो 30 जून, 2012 तक भारत में फेसबुक व सोशल साइटों के उपयोग करने वालों की संख्या लगभग 5.9 करोड़ है जो 2010 की तुलना में 84 प्रतिशत अधिक है।
इन 5.9 करोड़ लोगों में लगभग 4.7 करोड़ युवा वर्ग से सरोकार रखते हैं। अगर आंकड़ों को देखें तो भारत दुनिया का चैथा सबसे अधिक फेसबुक का इस्तेमाल करने वाला देश बन गया है। इसमें दो राय नहीं कि डिजिटल क्रांति ने युवाओं की निजता को प्रभावित किया है और युवा अपनी सोच से अपने समाज को प्रभावित कर रहे हैं।
वहीं इंडिया बिजनेस न्यूज एंड रिसर्च सर्विसेज द्वारा 1200 लोगों पर किए गए सर्वेक्षण जिनमें 18-35 साल की उम्र के लोगों को षामिल किया गया था। इसमें करीब 76 फीसदी युवाओं ने माना कि सोशल मीडिया उनको दुनिया में परिवर्तन लाने के लिए समर्थ बना रही है। उनका मानना है कि महिलाओं के हित तथा भ्रष्टावचार विरोधी आंदोलन में ये सूचना का एक महत्वपूर्ण स्रोत साबित हुई है।
करीब 24 फीसदी युवाओं ने अपनी सूचना का स्रोत सोशल मीडिया को बताया। करीब 70 फीसद युवाओं ने ये भी माना कि किसी समूह विशेष से संबद्ध हो जाने भर से जमीनी हकीकत नहीं बदल जाएगी, बल्कि इसके लिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है।
वास्तव में जनसंचार माध्यमों ने ग्लोबल विलेज की अवधारणा को जन्म दिया है। जनसंचार के अंतर्गत आने वाले माध्यम है पत्र-पत्रिकाए, टीवी, रेडियों, मोबाइल, इंटरनेट।
युवा वर्ग पर इन सभी जनसंचार माध्यमों ने अपना व्यापक प्रभाव छोड़ा है। इनका प्रभाव इतना शक्तिशाली है की आज के युवा इन जनसंचार माध्यमों के बिना अपने दिन की शुरुआत ही नहीं कर सकते। जैसे पत्र-पत्रिकाओं को खरीदने से ज्यादा कामुकता तथा अश्लील साहित्य, पत्र-पत्रिकाएं खरीदता व पढ़ता है और अपने चरित्र का नैतिक पतन कर अपने भविष्य को अंधकार में डालता है।
इसी प्रकार टीवी जैसे सबसे प्रभावशाली माध्यम का भी युवाओं पर अच्छा और बुरा दोनों तरह का प्रभाव पड़ा है टीवी श्रव्य के साथ ही दृश्य माध्यम है जिसके कारण युवा वर्ग किसी भी विषय को भली-भांती समझ सकता है भले ही वह अधिक शिक्षित न हो परंतु युवा वर्ग इस माध्यम का भी दुरूपयोग कर नैतिक पतन करने वाले कार्यकर्मों को ही अधिक देखते हैं क्योंकि उनको तत्कालिक आनंद की प्राप्ति होती है और वे दूरगामी विनाश को नहीं समझ पाते जिससे उनका भविष्य बिगड़ता है।
हालांकि नई विद्या मोबाइल और इंटरनेट अत्याधुनिक तकनीकों के उदाहरण है। जिनका निसंकोच उपयोग अधिकांश युवाओं द्वारा किया जा रहा है। मोबाइल यह एक ऐसा माध्यम है जिससे दूर बैठे व्यक्ति के साथ बात की जा सकती है तथा अपने हसीन पलों को चलचित्रों के रूप में कैद किया जा सकता है। यह तो इसका सदुपयोग है परंतु आज युवा इस माध्यम का गलत प्रयोग कर एमएमएस जैसे दुर्व्यसनों में फस जाते हैं।
इसी प्रकार इंटरनेट जनसंचार माध्यमों में सबसे प्रभावशाली है जिसने दूरियों को कम कर दिया है। इसका अधिकतर उपभोग युवा वर्ग द्वारा किया जाता है जहां इसके द्वारा युवाओं को सभी जानकारियां उपलब्ध होती हैं। ये ज्ञानवर्धन में तो सहायक है परंतु आज वर्तमान समय में युवा द्वारा इसका दुरूपयोग अधिक होता है।
हालांकि संस्कारी व्यक्तियों द्वारा इस मीडिया का सही उपयोग किया जा रहा है वहीं लगभग 100 में से 85 प्रतिशत लोग पोर्न साइटों का प्रयोग करते हैं और हैंरतअंगेंज करने वाली बात है कि सर्वाधिक विजिटर भी इन पोर्न साइटों के ही हैं। इन अश्लील साइटों पर जाकर वे अपनी उत्कंठा को शांत करते हैं। परंतु वे यह नहीं जानते कि इससे उनका और समाज दोनों का नैतिक पतन होता है।
साथ ही इंटरनेट के अधिक उपयोग ने साइबर क्राइम जैसे अपराधों को जन्म देकर युवाओं में अपराध करने की नई विद्या उत्पन्न कर दी है। जिससे आज का युवा वर्ग मानसिक, शारीरिक और आर्थिक पतन की ओर अग्रसरित हो रहा है। जो हमारे समाज के लिए चिंता का विषय है।
अगर निष्कैर्ष की बात करें तो सभी जनसंचार माध्यमों ने जहां ग्लोबल विलेज, शिक्षा, मनोरंजन और जनमत निर्माण, समाज को गतिशील बनाने तथा सूचना का बाजार बनाने में सहयोग किया वही अश्लीलता, हिंसा, मनोविकार, उपभोकतावादी परवर्ती तथा समाज को नैतिक और सांस्कृतिक पतन की ओर अग्रसर किया है। अब हम युवाओं को स्वयं ही इसका चयन करना होगा कि वो किस ओर जाना चाहते हैं। बुलंदी पर या पतन की ओर?