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उत्तराखंड में कुदरत के कहर ने मचाई भारी ताबाही

 

India-monsoon-Uttarakhandउत्तराखंड में बारिश, भूस्खलन, बाढ़ और बादल फटने से जानमाल का भारी नुकसान हुआ है। आधिकारिक तौर पर अब तक इस त्रासदी में 1000 से ज्यादा लोगों के मारे जाने की खबर है और 70 हजार से ज्यादा तीर्थयात्रियों समेत स्थानीय लोग प्रभावित इलाकों में अभी भी फंसे हुए हैं। हजारों लोग लापता बताए जा रहे हैं, केदारनाथ से बचकर ने आशंका जताई कि 15 से 20 हजार से भी ज्यादा लोगों की जान इस आपदा में गई होगी

उत्तराखंड में रेस्क्यू ऑपरेशन का काम अभी भी जारी है। इसी बीच पहाड़ों पर फिर से भारी बारिश का खतरा मंडराने लगा है। मौसम विभाग ने चेतावनी दी है कि

24 जून से दोबारा पहाडों पर भारी बारिश होने वाली है। ऐसे में अगर चार दिन के अंदर फंसे हुए लोगों को बाहर नहीं निकाला गयाए तो मुसीबत और बढ़ना तय है।

 हादसे की वजह से वहां पर आवाजाही को  रोक दिया गया हैं, उत्तराखंड में सैलाब से मची तबाही दिल दहलाने वाली है। यहां जो अपनी जान बचाने में कामयाब हो गए हैं, उन्हें अपनी सांसें बनाए रखने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ रही है। ऐसे में दाद देनी होगी फौजए पुलिस और एनडीआरएफ के लोगों कोए जो प्रकृति के तांडव के बीच फंसे लोगों को बचाने में बड़ी दिलेरी जुटे हुए हैं।

उत्तराखंड में अब तक 22 हजार से ज्यादा लोगों को सुरक्षित बचाया जा चुका हैए जबकि करीब 70 हजार लोग जहां.तहां फंसे हुए हैं। सरकार ने आंकड़े जारी करते हुए बताया कि उत्तराखंड में आपदा से अब तक 71 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है। हालांकि अब तक करीब 150 लोगों की मौत की खबर आ रही है। अब तक की जानकारी के मुताबिक 366 घर पूरी तरह तबाह हो गए हैंए जबकि 272 को आंशिक नुकसान हुआ है।

यही नहीं 1400 लोगों के लापता होने की खबरें भी आ रही हैं। अचानक आई इस बाढ़ में 90 से ज्यादा धर्मशालाएं बह गई हैं। इसके अलावा केदार घाटी के 60 गांव भी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं। ज्यादातर सड़कें और रास्ते बह जाने से हजारों लोग फंसे हैं। 50 बड़े भूस्खलनों में उत्तराखंड के चार प्रमुख रास्ते रुद्रप्रयाग−गौरीकुंड सड़क ऋषिकेश−जोशीमठ, ऋषिकेश−धरासु−गंगोत्री सड़क और पिथौरागढ़−घटियाबगढ़ सड़क बंद हो गई है। चमोली, रूद्रप्रयाग और उत्तरकाशी के कई गांवों में भी हजारों लोग फंसे हैं। इन इलाकों में बिजली सेवा पूरी तरह ठप हो गई है। साथ ही संचार सुविधाओं पर भी खासा असर पड़ा है। राहतकार्य में सेना, वायुसेना, एनडीआरएफ़, बीआरओ, आईटीबीपी और एसएसबी के हजारों जवान लगे हैं।

रक्षा मंत्रालय के मुताबिक, सेना ने बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन के तीन हजार जवानों के साथ आठ हजार से ज्यादा अपने जवानों को उत्तराखंड में प्रभावित इलाकों में तैनात किया है। रक्षामंत्री एके एंटनी ने कहा है कि सेना के जवानों को अधिकतम संभव सहायता देने का निर्देश दिया गया है, वहीं मीडिया में बूढ़े और बीमार लोगों को प्राथमिकता नहीं दिए जाने की खबरें आने के बाद इंडियन एयरफोर्स ने राज्य सरकार से आग्रह किया है कि राहत अभियानों के दौरान ऐसे लोगों को प्राथमिकता दी जाए।

बताया जा रहा है कि यहां हालात सामान्य होने में अभी काफी वक्त लग सकता है। इस भीषण प्राकृतिक आपदा के बाद उत्तराखंड सरकार राज्य में 20 जून से 22 जून तक तीन दिनों के राजकीय शोक का ऐलान किया है। उत्तराखंड ने मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने कहा है कि इस हादसे में मरने वालों का सही आंकड़ा और इससे हुए नुकसान का सही अंदाजा पानी कम होने के बाद ही लगाया जा सकेगा।

उत्तराखंड का आज का जो भयानक मंजर देख रहे हैं ए इसे  देखकर ऐसा लगता है कि प्रकृति ने सबसे ज्यादा कहर इसी पर बरसाए हैंए लेकिन सिर्फ उत्तराखंड की मात करना उन जगहों से बैमानी करना होगा जो इस मुसीबत का सामने कर चुके है या अभी भी कर रहे हैं। मौसम की मार से दुनि‍या भर में सिर्फ उत्‍तराखंड ही पीड़ि‍त नहीं है। दुनि‍या के कई देशों में इस समय बाढ़ आई हुई है तो कुछ देश भयानक सूखे और भूख से होने वाली मौतों का सामना कर रहे हैं। ऐसे में यहाँ सवाल यह खड़ा होता है कि क्‍या समय रहते इससे बचा जा सकता है। अगर यह समस्‍या हैए तो इस समस्‍या का जि‍म्‍मेदार कौन हैं। वैज्ञानि‍कों का मानना है कि हालांकि अब वह वक्‍त हाथ से नि‍कल चुका हैए जब हम इस समस्‍या को जहां हैए जैसी हैए उस हालत में रोक सकते हैं। लेकि‍नए इस समस्‍या को और भी ज्‍यादा भयावह होने से रोकना अभी भी हमारे हाथ में हैए और हम इतना सब होने के बाद भी सचेत नहीं हुए तो तभी का मंजर इससे भी भयानक हो सकता है।