एक वक्त था जब पत्रकार की कलम पर लोगों को पूरा भरोसा हुआ करता था। इस देश का हर नागरिक जानता था कि कलम से लिखा गया हर शब्द सच होगा और हर नागरिक आँख बन्द करके उस पर आसानी से भरोसा भी कर लेता था।
कहा तो यह भी जाता है कि पत्रकार की कलम अगर किसी के खिलाफ चल जाये तो वो बन्दूक से निकली गोली से भी ज्यादा खतरनाक हो सकती है।
लेकिन आज ऐसा नहीं है आज वक्त बदल चुका है आज कलम है पर वो पैसो के लिए चल रहा है। कभी पत्रकारिता सेवा थी लेकिन आज की पत्रकारिता व्यापार बन चुकी है। ये एक ऐसा व्यापार है जिसमें कम से कम समय में पैसा और प्रसिद्धि दोनों प्राप्त किया जा सकता है। आजकल मीडिया नेताओं की मुठठी में रहती है। राजनीतिक पार्टियां कुछ लुभावने उपहार देकर या कुछ बड़े सपने दिखाकर मीडिया को अपनी जेब में आसानी से रख सकते हैं। मीडिया को देश का चौथा स्तंभ कहा जाता है जो देश के लोगों की बातों को अन्य तीनों स्तंभों तक है और अन्य तीन स्तंभों की बातों को जनता तक पहुँचाने का काम करती है।
यदि मीडिया की नजर में कुछ खराब है तो इसका मतलब यह होता है कि वह देश की आँखों में खटकती है। इस बात से राजनीतिक पार्टियाँ अच्छी तरह वाकिफ हैं , इसलिए राजनीतिक पार्टियों ने पैसे की
दम पर इन्हें अपना गुलाम बनाना शुरू कर दिया है। पैसे की चका चौंध किसी से क्या नहीं करा सकती ये तो सच है पर मीडिया में बैठे बड़े-बड़े दलालों, चैनल के मालिकों, एंकरों, रिर्पोटरों आदि को यह तो समझना चाहिए कि देश की करोडों आँखे इनके इंतजार में बैठी हैं और उनको विश्वास है कि मीडिया वाले उनके लिए न्याय ही करेंगे। पर इन भोली भाली आम जनता को क्या पता आजकल मीडिया खबर कम दिखाती है और पैसे की आड़ में जो बोला जाता है उसे ज्यादा महत्व देती है चाहे तो किसी को निर्दोष साबित करना हो या फिर की पर कोर्इ आरोप लगाना हो, किसी की बुरार्इ करवानी हो या किसी को नीचा दिखाना हो। ये सब पैसे के दम पर मीडिया में करवाया जाता है।
राजनीतिक पार्टियां चुनाव के दौरान दूसरी पार्टियों की बुरार्इ दिखाने तथा अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए जहां मीडिया का इस्तेमाल करती हैं वहीं दूसरी ओर घोटालों में फंसे बड़े नेता भी मीडिया को घूस देकर बहुत आसानी से बच निकलते हैं। पहले प्रिंट मीडिया हो या इलैक्ट्रोनिक मीडिया का रिर्पोटर एक खबर को ढूंढने तथा उसकी तह तक जाने के लिए जी जान से मेहनत करता था लेकिन आज ऐसा नहीं है क्योंकि आजकल खबर बनार्इ जाती है। मीडिया के एक खबरिया चैनल आये दिन अपने चैनलों में खानेपीने की चीजों में मिलावट दिखाते हैं पर सबसे बड़ी मिलावट तो मिडिया में होती है जो वह कभी नहीं दिखाते।
पत्रकार के लिए खबर का मतलब केवल खबर नहीं होना चाहिए बलिक खबर के पीछे की सच्चार्इ को महसूस करने वाला संवेदनशील पत्रकार बेहतरीन सिक्रप्ट लिखकर खबर को इस तरह से उजागर करता है कि देश दुनिया की नजर उस पर पड़ती है। हमारे देश के कूछ खबरिया चैनलों ने दर्शकों के बीच इस तरह की छवि बना रखी है कि जिसे देख ऐसा लगता है कि वह बिना वजह खबरों को खीच कर लंबा किए जा रहे हैं। दर्शक भी अब खबरों को जान गये हैं और उन्हें पता चल जाता हैं कि खबर को रिर्पोटर सिर्फ खींच रहा है।
खबरों की महत्वत्ता और संवेदनशील मुद्दों को प्राथमिकता देना खत्म होता जा रहा है। खबरिया चैनलों को किसी भी कीतम पर खबर चाहिए चाहे वो किसी की मौत की खबर हो , बलात्कार की या शादी की। उन्हें इस बात से कोर्इ मतलब नहीं है कि जो खबर वो दिखा रहे हैं उसका समाज पर क्या असर पड़ेंगा।
इस मुद्दें को लेकर जब भी बात करो तो चैनल रटा रटाया जवाब देते हैं कि जो दिखता है वही बिकता है। इसलिए वही खबर दिखाते हैं जो बिकता है। आज की मीडिया टी. आर. पी. की भूखि है। टी. आर पी. की भूख में मीडिया उन खबरों को शामिल करने लगती है जो काप्लनिक है असंभव है लेकिन उसे तोड़मरोड़ कर इस तरह से लोगों के समक्ष पेश किसा जाता है कि वो भी लोगों को संभव लगने लगता है।
इस दौड़ में और न्यूज चैनल तो जब भी ठीक है लेकिन कुछ प्राइवेट खबरिया चैनल जो बाबाओं के तंत्र मंत्र को भी प्रसारित करते रहते हैं, जो लोगों में अंधविश्वास को पैदा करने का काम करता है। वहीं दूसरी तरफ डरावने श्लोगन का प्रयोग करना जिसे सुनकर ऐसा लगता है मानों कोर्इ सामने से धमकी दे कर डरा रहा है। यह सब बस अपने को अन्य चैनलस से होड़ करने के लिए और टी. आर. पी. को बढ़ाने के लिए कोर्इ भी तरकीब अपनाने से पीछे नहीं हटते हैं।
मीडिया की दिन प्रतीदिन ऐसी हालत को देखकर तो यही लगता है कि यदि मीडिया यूँ ही पैसो के आगे झुकती रही तो आने वाले समय में देश की हालत और बिगड़ने वाली है। हमें जरूरत है ऐसी ताकत की जो देश को बचा सके और इस देश की रक्षा अगर पुलिस और फौज के अलावा कोर्इ और कर सकता है तो वह एक मात्र मीडिया ही है।
यह निशिचत तौर पर तभी संभव है जब इसके लिए सही दिशा में कदम बढ़ाए जायें। क्योंकि भविष्य में कर्इ नये युवा पत्रकार मिडिया से जुड़ेंगे और यह तभी सही रास्ते पर चल सकेगें जब इनके रोल माडल इनको सही रास्ता दिखाएंगे। मीडिया को निष्पक्ष और निडर होकर किसी भी तरह के भेदभाव को छोड़कर जनता के साथ और जनता के हित के लिए काम करना होगा।