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क्योकि मुर्दे शिकायत नहीं करते, हरदोई में लाशों से खिलवाड़

hardoiजिन्दा इंसानों की इस दुनिया में मुर्दों से खिलवाड़ हो रहा है, क्योकि मुर्दे शिकायत नहीं करते। कभी-कभी इंसान अपनी भागती-दौड़ती जिंदगी में यह भूल जाता है कि वह भी कभी मुर्दा होगा फिर उसी इंसान के मखमल जैसे सरीर के साथ गर खिलवाड़ हो तो वह क्या सोचेगा क्योकि मुर्दे सोचा नहीं करते, तो बस उन्हें चाहे जहा डाल दिया जाना ठीक है यह भी एक सवाल है?और यही बहुत सारे सवाल लिए खड़ा है हरदोई का पोस्ट मार्टम हाउस।

यह पोस्ट मार्टम हाउस गुजरे ज़माने से हरदोई के बीचो बीच बना है यह पोस्ट मार्टम हॉउस अंग्रेजी हुकूमत से यहाँ पर है। बीच बस्ती खँडहर सा बना पोस्ट मार्टम हाउस मुर्दों के साथ -साथ ज़िंदा इंसानों के लिए भी कष्ट का सबब बना हुआ है। चाहे सड़ी हुई लाशो की बदबू हो, या तड़पती रोती सिसकती लोगों की आहे हो, इस मोहल्ले के लोगों की आदत बन गई है लाशों।  

यहाँ इंसानी लाशो के साथ हो रहा यह भद्दा मजाक सिर्फ हरदोई की मर्चरी से लेकर पोस्ट मार्टम तक साफ़ देखा जा सकता है, कहने को तो मानवाधिकार हैं, लेकिन क्या मानक के अनुसार इन इंसानी लाशो को रखा जा रहा है आखिर क्यों जिला प्रशासन इन इंसानी लाशो के साथ हैवानो जैसा सलूक कर रहा है? हत्या आत्म हत्या या जहर वाली लाशों को मानक के अनुसार वातावरण न मिलने पर उनकी पोस्ट मार्टम रिपोर्ट सही रहती होगी क्या गैर जिम्मेदाराना तरीके से रखी गई लाशों के साथ खिलवाड़ तो नही होता होगा क्या इन पोस्ट मार्टम की लाशों की चीड़- फाड़ सही औजारों से मानक के अनुसार हो रही है?

हम दिखायेगे आपको लाशो पर हो रहे अत्याचार की कहानी कैमरे की जुबानी क्योकि कैमरा बोलेगा राज खोलेगा लाशो पर यह अत्याचार यही नही रुकता क्योकि इधर एयर कंडिशनर और सेंटेड कमरों में बैठे अधिकारी नही देखते क्योकि यहाँ इंसानी लाशे बदबू करती है, वह यह देखे भी क्यों, क्योकि वह तो जीवित है वह हर चीज महसूस कर सकते है उन्हें मुर्दों से मतलब ही क्या क्योकि मुर्दे शिकायत नही करते ?

मोहल्ले वाले कहते है साहब खाना खाना दुसवार है बच्चे डर के मारे बाहर नहीं निकलते क्योकि दरवाजे पर लाशों  का दिल दहला देने वाला जमावड़ा रहता है, कोई भी दिल का मरीज इस रास्ते से नहीं निकलता क्योकि कटी फटी लहू लुहान लाशे रास्ते में पड़ी रहती है और दिल से दिमाग तक को सहमा देने वाली यह लाशे अच्छे खासे इंसान को भी बीमार कर दे। स्कूल जाते बच्चे रात में भी सहम कर उठ बैठते है, और कहते हैं पापा मैं कल स्कूल उधर से नहीं जाउगा।  

आखिर जिला प्रशासन इस तरफ क्यों नही देखता क्या प्रशासन की आख पर पट्टी बंधी है ? सूत्रों के मुताबिक शहर में दूसरा पोस्ट मार्टम शहर के बाहर काफी समय पहले ही बन चुका है, मगर पुलिस प्रशासन और हॉस्पिटल प्रशासन की उदासीनता के कारण अभी तक यह पोस्ट मार्टम हाउस शहर के बीचो-बीच जिला हॉस्पिटल के बगल में स्थित है।

अब यहाँ सवाल कई खड़े हो जाते है कि पुलिस अधीक्षक से सवाल पोस्ट मार्टम हॉउस शहर के रिहायसी इलाके में कितना जायज है, इसे बाहर ले जाने में क्या दिक्कते है बाहर जाएगा तो कब तक ? मुख्य चिकित्सा अधिकारी से यह सवाल है कि क्या मानक के अनुसार पोस्ट मार्टम वाली लाशों को रखा जा रहा है, अगर नहीं तो क्यों क्या मानक के अनुसार लाशो का पोस्ट मार्टम हो रहा है, क्या मानक के अनुसार इन लाशों का रख रखाव हो रहा है ?

इसके साथ ही यहाँ के जिलाधिकारी पर भी यह सवाल उठते हैं कि पोस्ट मार्टम व् मर्चरी में रखी जा रही लाशों के रख रखाव में इतनी बदिन्तजामी क्यों ? साथ ही यहाँ के एक डाक्टर बिशेषज्ञ से पर यह सवाल उठता है कि क्या इस इस बदिन्ताजामी से पोस्ट मार्टम में आने वाला रिजेल्ट तो नही प्रभावित होता है ? अगर हम मानवाधिकार संगठन चला रहे समाज सेवी से यह सवाल करें कि क्या इंसानी लाशों के साथ ऐसा खिलवाड़ जायज है ?

लाशों के साथ यहाँ के प्राशासन के सामने जो खिलवाड़ खुले आम हो रहा है उसे लेकर सवाल तो कई उठते है लेकिन अभी तक न तो इसका कोई हल सामने आया है और न ही कोई सटीक सवाब, जो लोगों को ये बता सके कि आखिर लाशों के साथ ये भद्दा खिलवाड़ क्यों?