नई दिल्ली : रमन सिंह सरकार के अन्याय और अपनी मांगों की तरफ ध्यान खींचने के लिए किसानों ने अनौखा तरीका अपनाया। छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में सैंकड़ों किसानों ने हजारों लीटर दूध एक साथ नदी में बहा दिया। पूरी की पूरी नदी ही दूध की नदी जैसी दिखाई देने लगी। किसानों का आरोप है कि उनके दूध को दुग्ध संघ समिति द्वारा नहीं खरीदा जा रहा है। समिति ने गुणवत्ता के नाम पर खरीदी बंद कर दी है जबकि वषों ने इन किसानों का दूध खरीदा जाता रहा है।
समिति नहीं खरीद रही दूध :
मामला गरियाबंद जिले के पोंड गांव का बताया जा रहा है। दूध उत्पादक रामलाल तिवारी ने दुग्ध संघ समिति पर आरोप लगाते हुए कहा कि सालों से संघ द्वारा किसानों से दूध की खरीदी की जाती रही है। तीन दिन पहले अचानक दुध की गुणवत्ता सही नही होने की बात कहकर दूध खरीदने से मना कर दिया गया। किसान फिरतूराम कंवर ने बताया कि केवल पोंड समिति ही नही बल्कि दुग्ध संघ समिति ने जिले की सभी 19 दुग्ध समितियों को गुणवत्ता सुधारने के बाद ही दूध खरीदने का फरमान सुना दिया है। समिति के दूध नहीं खरीदने से हमारे सामने रोजी-रोटी का संकट आ खड़ा होगा। बीते तीन दिनों से दूध नहीं बिकने पर किसानों का गुस्सा फूट पड़ा।
किसानों ने बहाया हजारों लीटर दूध:
यहाँ के परेशान किसानों और दूध उत्पादकों ने तीन दिनों का इकट्ठा हजारों लीटर दूध पैरी नदी में बहा दिया। वहीं अन्य गांव वाले नदी से दूध निकालकर चाय बनाने लगे। दूध उत्पादकों ने दुग्ध संघ समिति पर आरोप लगाते हुए कहा कि वे सालों से ऐसा ही दूध बेचते आए हैं। अब अचानक समिति ने गुणवत्ता का बहाना करके उनके दूध को खरीदने से मना कर दिया है। दूध उत्पादकों का कहना है कि उन्होंने अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए लोन लेकर दूध उत्पादन का काम शुरु किया था।
बता दें कि अगर समिति का ये फैसला जारी रहेगा, तो इससे हमारा काफी नुकसान होगा। वहीं, समिति के जिलाध्यक्ष सोमप्रकाश साहू ने दूध उत्पादकों को जल्द ही इसका हल निकालने का आश्वासन दिया है. वैसे विरोध और प्रदर्शन अपनी जगह सही है, लेकिन इस तरह से खाने-पीने की चीजों की बर्बादी करने पर भी सवाल उठाए जाने चाहिए।