पिछले वर्ष अंतरराष्ट्रीय पर्यटन स्थल बोधगया और गांधी मैदान में नरेंद्र मोदी की रैली के दौरान हुए आतंकी धमाकों के बाद यह बात लगभग स्थापित हो गयी है कि बिहार में आतंकी फ़लने-फ़ुलने लगे हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी द्वारा किये गये प्राथमिक जांच के दौरान यह तथ्य भी सामने आये कि किस तरह सुरक्षा जैसे अति महतवपूर्ण विषय को दोयम दर्जे की प्राथमिकता दी गयी। सरकार की नींद तब खुली जब आतंकी अपना काम कर चुके थे। अभी हाल ही में बिहार में एक मंत्री के उपर आतंकियों को पनाह देने का संगीन आरोप लगा है।
सीमा सुरक्षा बल और आईबी के इनपुट में यह बात सामने आयी है कि बिहार सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री शाहिद अली खान का आतंकियों के साथ सीधा संबंध है। यह इनपुट बिहार पुलिस को 25 जनवरी के पहले मिली। यह बात राज ही रह जाता कि बिहार सरकार के एक मंत्री के उपर इस तरह का कोई मामला भी है। एक निजी न्यूज चैनल ने इस मामले को सार्वजनिक किया तब सरकार के होश फ़ाख्ता हो गये। आनन-फ़ानन में बुलाये गये प्रेस कांफ़्रेंस में बिहार पुलिस के प्रतिनिधि ने सरकार की ओर से सफ़ाई देते हुए मंत्री शाहिद अली खान को बेदाग होने संबंधी दलील दी। लेकिन, बिहार पुलिस की यह दलील कि जिन दो व्यक्तियों को आतंकी होने के शक के आधार पर गिरफ़्तार किया गया था, उनमें से एक पंक्चर बनाता है और दूसरा राजमिस्त्री है। यानी आईबी की सूचना को गलत करार दिया गया।
खास बात यह है कि सुरक्षा एजेंसियों के इनपुट के आधार पर जांच की कार्रवाई की गयी और दोनों नौजवानों को पहले तो हिरासत में लिया गया। लेकिन यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि मंत्री शाहिद अली खान को जांच की इस प्रक्रिया से दूर रखा गया। यह सब बिना राजनीतिक संरक्षण के हो सकता है, कल्पना के परे है। कहने का आशय यह है कि इस देश में कानून सबके लिए एक समान नहीं होता है। जिन दो लोगों को आतंकी कहा गया, उन्हें गिरफ़्तार किया गया और उनकी जांच की गयी। इसकी वजह केवल यही रही कि ये दोनों बिहार के आम नागरिक थे।
देश की सुरक्षा एजेंसी बिहार के किसी भी व्यक्ति को आतंकी होने के शक पर गिरफ़्तार कर सकती हैं। कटिहार में वर्ष 2012 में ऐसी ही एक घटना सामने आयी थी। आईबी से मिले इनपुट के आधार पर गिरफ़्तार किया गया। करीब डेढ साल होने के बाद भी उस नौजवान को जेल से मुक्ति नहीं मिली है। जबकि प्रावधान के अनुसार 90 दिनों के अंदर आरोप पत्र दाखिल करना अनिवार्य है। लेकिन बिहार में तो कोई कानून ही नहीं है।
बहरहाल, मुख्य सवाल यही है कि शाहिद अली खान पर लगे आरोपों की जांच बिहार पुलिस ने क्या केवल इसलिए नहीं किया क्योंकि वे एक मंत्री हैं। वे बिहार सरकर की कबीना में शामिल एक अल्पसंख्यक चेहरा भी हैं। हद तो तब हो गयी जब सीएम नीतीश कुमार ने भी शाहिद अली खान पर लगे आरोपों को एक सिरे से खारिज कर दिया। सवाल यह भी है कि जब गुलाम पर पाकिस्तानी एजेंट होने का आरोप देश की सुरक्षा एजेंसी लगा रही है, फ़िर उसके खिलाफ़ जांच क्यों नहीं गयी? संभव है कि आईबी का इनपुट गलत हो, लेकिन मामले की जांच से भी परहेज क्यों।