5जून2016 को दूसरी बार एनडीए सरकार में 19 नए चेहरे को मंत्री पद की शपथ दिलाई गई पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावेडकर का कद बढ़ा कर कैबिनेट में मानव संसाधन विकास मंत्रालय दिया गया। वही एनडीए के मंत्री विस्तार में पांच चेहरे दलित राजनीति को साधने वाले। आगामी 2017 में उत्तर प्रदेश, गुजरात,पंजाब, उत्तराखंड में होने वाले विधान सभा चुनाव को लेकर एनडीए का मंत्रिमंडल विस्तार किया गया है। वही उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव को लेकर बीजेपी अभी से दलित वोट कार्ड का खेल खेलने लगी है।
उत्तर प्रदेश में दलित वोट की बात करें तो 20 फीसदी दलित वोट बैंक को लेकर उत्तर प्रदेश की पूर्व सीएम व बसपा सुप्रीमों मायावती की राजनीतिक हवा कैसे निकाली जा सकती है, इस पर मोदी मंत्रिमंडल का ध्यान होगा ही इसे कैसे कोई इंकार करे। अगर और राजनीति की इस लकीर को मंत्रिमंडल के नये चेहरो तले खीचेंगे तो अपना दल से अनुप्रिया पटेल पटेल वोट बैंक में सेंध लगाने वाली मानी जा सकती है। जिस तरह सीएम नीतीश कुमार बिहार में सत्ता काबिज करने के बाद उत्तर प्रदेश में चुनावी बिगुल फुकते हुए पटेल वोट बैक को साथ समेटे नजर आ रहे हैं तो वही पर उत्तर प्रदेश की सत्ता में काबिज समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव ने जिस तरह बेनी प्रासद वर्मा को साथ ले कर आई है, उन्हें अनुप्रिया पटेल के जरीये खारिज किया जा सकता है। उत्तर प्रदेश में 8 फीसदी कुर्मी वोट बैंक के लिये अनुप्रिया पटेल एनडीए मंत्रिमंडल में शामिल हो गई है।
वही कांग्रेस की नईया पार लगाने के लिए प्रशांत किशोर जिस तरह काग्रेस को उत्तर प्रदेश में बिखरे 13 फीसदी ब्राह्मण वोट बैक को अपने साथ लाने के लिये किसी ब्राह्मण चेहरे को सामने लाने की वकालत कर रहे हैं तो वही बीजेपी भी गृहमंत्री राजनाथ के करीबी माने जाने वाले और साफ सुथरी छवि की पहचान वाले चंदौली के सांसद महेन्द्र नाथ पांडे को कांग्रेस की बिसात को ध्यान में रखकर एनडीए के मंत्रिमंडल में शामिल कर मानव संसाधन विकास मंत्रालय में राज्यमंत्री का दर्जा दिया गया है।
वही चुनावी राजनीति में कुछ इस तरह सत्ता चलाने तक पर हावी हो चुकी है कि पहली नजर वोट बैक को साधने के लिये उसी समाज के नेता को मंत्री पद देकर होती है। और दूसरी नजर नेता रहित किसी समुदाय के आंदोलन को सियासी नेता मंत्री बना कर देने की होती है। यानी सवाल यह नहीं कि सरकारें काम कर क्या रही है। सवाल यही है कि सरकार हो तो आने वाले वक्त में कहां कौन चुनाव जीतना है उसके लिये मंत्रिमंडल को ही हथियार बना लिया जाये। और अगर वाकई मंत्रिमंडल विस्तार के जरीये नजरें यूपी चुनाव पर ही हैं। तो नरेन्द्र मोदी, मायावती. मुलायम सिंह यादव और प्रियंका गाधी की पहचान है क्या। जाहिर हैं चारों को या तो देश का नेता होना चाहिये या फिर किसी प्रदेश का। लेकिन चुनाव के खेल में सत्ता के लिये देश हो या प्रदेश। हर नेता की पहचान उसके वोट बैंक से चाहे अनचाहे इस तरह जोड़ दी गई कि हर किसी की जाति ही उसकी पहचान है। और आलम ये हो चला है कि देश के प्रधानमंत्री मोदी को ओबीसी कहने में बीजेपी अध्यक्ष को भी हिचक नहीं होती। और पीएम के ओबीसी होने का जिक्र हर राज्य के चुनाव में बीजेपी ने लगातार किया ।
वही उत्तर प्रदेश की बात करें तो बीते कुछ सालों में उत्तर प्रदेश में कभी मायावती बतौर दलित नेता , तो कभी लोहिया के रास्ते पर चलने वाले और अपने आप को समाजवादी विचार धारा का नेता कहने वाले सपा के मुखिया मुलायम सिंह बतौर यादवों के ऐसे सेकुलर नेता जिके साथ मुस्लमान जुड़ जायें तो सत्ता मिल जाये। यानी मायावती के राज में दलित घर से बाहर निकलता है, बेखौफ होता है । तो वही इस समय उत्तर प्रदेश की सत्ता में काबिज समाजवादी पार्टी के दौर में यादव दबंग हो जाता है। वही देश का मुस्लिम दोनो ही के दौर में खुद सत्ता के करीब पाकर भी वोट बैक की सहुलियत पाने से आगे बढ़ नहीं पाता। ऐसे में एक नजर काग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका गांधी पर भी जा सकती है। क्योंकि प्रियंका की पहचान जाति या धर्म से नहीं बल्कि गांधी परिवार से है और यही वजह है कि यूपी चुनाव में जब राष्ट्रीय पार्टी बीजेपी मंडल की राह पर है और यूपी की बिसात पर जितने भी खिलाड़ी हैं सभी जाति की पहचान के साथ ही अपना अपना वोट बैंक देख रहे हैं। तो प्रियंका गांधी के आसरे कांग्रेस नेहरु इंदिरा से लेकर राजीव तक की छवि को यूपी में भुनाने के लिये तैयार हो रही है। तो क्या इससे कांग्रेस को सत्ता मिल जायेगी। या फिर जिस राष्ट्रीय शंखनाद के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने 2014 में राष्ट्रीय पहचान बनायी अब वह छोटे छोटे नेताओं के वोट के आसरे बीजेपी को यूपी में सत्ता पाते हुये देख रहे हैं। क्योकि इसी से सत्ता मिलती है तो देश के हर चेहरे के आसरे सवाल यही बड़ा है कि सत्ता के लिये सभी देश को वोट बैंक में बांट रहे हैं। कह सकते है की एनडीए दूसरा मंत्रिमंडल विस्तार उत्तर प्रदेश के वोट बैक की राजनीति पर किया गया है। वही एनडीए मंत्रिमंडल विस्तार से और बदलाव से शेष मंत्रियों को यह जरूरी संदेश मिल जाना चाहिए कि बेहतर प्रदर्शन ही मंत्री बने रहने और बड़ी जिम्मेदारी संभालने की कसौटी है। दरअसल इसके अतिरिक्त और कोई कसौटी होनी भी नहीं चाहिए।