नई दिल्ली : प्राचीन काल में ही भारत ने ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में बहुत तरक्की कर ली थी। इसकी एक मिसाल कुतुब मीनार के पास स्थित महरौली का लौह स्तंभ है।
गुप्तकाल के इस लोहे के खंभे में जंग नहीं लगती। पुराने समय में हमारे ऋषि-मुनि धर्म-अध्यात्म के साथ विज्ञान की साधना भी करते थे। उन्होंने वैज्ञानिक रिसर्च के आधार पर बहुत सारे ग्रंथ लिखे हैं।
विमानों की टेक्निक थी आज भी अच्छी
रामायण काल में महर्षि भारद्वाज ने यंत्र सर्वस्व नामक ग्रंथ लिखा था। इसमें तमाम तरह के यंत्रों के निर्माण और उनके संचालन के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसमें एक हिस्सा वैमानिक शास्त्र का भी है। वैज्ञानिक डॉ. वामनराव काटेकर ने `अगस्त्य संहिता´ की एक प्राचीन पांडुलिपि के आधार पर की गई रिचर्स में बताया था कि पुष्पक विमान को अगस्त्य मुनि ने बनाया था।
ऋग्वेद के चौथे मंडल के 25वें और 26वें सूत्र में तीन चक्कों वाले ऐसे हवाई जहाज का उल्लेख है, जो अंतरिक्ष में भी जा सकता था। प्राचीन ग्रंथ वैमानिका प्रकाराम के हवाले से एक रिसर्चर कैप्टन आनंद जे बोडास का दावा है कि उन दिनों के विमान आज के विमानों की तुलना में काफी बड़े होते थे। साथ ही वे दाएं-बाएं घूमने के अलावा पीछे की ओर भी आसानी से उड़ सकते थे।
शून्य व दशमलव का आविष्कार ने दुनिया को सिखाई गिनती :
ग्वालियर के एक मंदिर की दीवार पर हिंदी में 270 का अंक अंकित है। यह संसार में शून्य का सबसे पुराना लिखित दस्तावेज है। माना जाता है कि शून्य का प्रयोग वैदिक काल से शुरू हुआ। सन् 498 में भारतीय गणितज्ञ आर्यभट्ट ने शून्य और दशमलव पद्धति का आविष्कार किया। उन्होंने कहा था- ‘स्थानं स्थानं दसा गुणम्’ अर्थात् दस गुना करने के लिए उसके आगे शून्य रखो। इसी को संख्या के दशमलव सिद्धांत की शुरुआत माना जाता है। भारत का ‘शून्य’ अरब में ‘सिफर’ (खाली) नाम से जाना गया। लैटिन, इटैलियन, फ्रेंच से होते हुए यह अंग्रेजी में ‘जीरो’ (zero) कहलाया।
भारत में ही हुई सर्जरी की शुरुआत :
सुश्रुत को पहला सर्जन माना जाता है। आज से 3,000 साल पहले सुश्रुत युद्ध या नेचुरल डिजास्टर में जो लोग घायल हो जाते थे उन्हें ठीक करने का काम करते थे। सुश्रुत ने 1,000 ईसा पूर्व प्रेग्नेंसी, कैटरेक्ट, बॉडी पार्ट ट्रांसप्लांट, पथरी का इलाज और प्लास्टिक सर्जरी जैसी कई तरह की सर्जरी के सिद्धांत बताए थे।