नई दिल्ली : पश्चिम बंगाल की सरकार ने बीते शुक्रवार को नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी 64 फाइलों को सार्वजनिक किया। तर्क दिया गया कि नेताजी की मौत से जुड़े रहस्य का सामने आना और इसे जानना देश के नागरिकों के लिए जरूरी है और उनका हक भी। लेकिन बताया जाता है कि नेताजी से जुड़ी करीब एक दर्जन फाइलों को ममता बनर्जी की सरकार ने अभी भी गुमनाम अंधेरे में रखा हुआ है।
ममता बनर्जी की घोषणा के बाद भारतीय जनता पार्टी ने नेताजी की फाइलों के सार्वजनिक किए जाने का स्वागत किया है। पार्टी नेता सिद्धार्थ नाथ सिंह ने पश्चिम बंगाल सरकार के ऐलान का स्वागत किया।
नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी 64 फाइलों को CD के रूप में आम लोगों और नेताजी के परिजनों के बीच बांट दिया गया है। इस तरह लंबे इंतजार के बाद लोगों को नेताजी के जीवन के कुछ रहस्यों के बारे में ठोस जानकारी मिल सकेगी। इस मौके पर कोलकाता के पुलिस कमिश्नर सुरजीतकर पुरकायस्थ ने बताया कि कुल 64 फाइलों से जुड़े 12744 पेज को डिजिटल रूप में बदला जा चुका है। नेताजी से जुड़ी फाइलों को शुक्रवार से कोलकाता पुलिस म्यूजियम में ही सुरक्षि त रखा गया है।
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री कार्यालय, केंद्रीय गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय अबतक नेताजी से जुड़ी गोपनीय फाइलें सार्वजनिक करने से रोकते रहे हैं। ये फाइलें नेताजी के गायब होने की कहानी पर नई रोशनी डाल सकती हैं। इससे पहले केंद्र की एनडीए सरकार ने नेताजी से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया था।
दरअसल, पिछले हफ्ते राज्य सचिवालय से ममता बनर्जी ने ऐलान किया था, ‘पश्चिम बंगाल सरकार ने फैसला किया है कि सभी फाइलों और दस्तावेजों को लोगों के सामने लाया जाएगा। हमलोग नेताजी के जन्म की तिथि जानते हैं लेकिन मौत अब भी रहस्य है। जनता को उनके आखिरी दिनों के बारे में जानने का हक है। हमलोग पारदर्शिता और जवाबदेही को लेकर प्रतिबद्ध हैं। जनता को नेताजी के बारे में जरूर जानना चाहिए।
रहस्य सम्बंधित हैं ये फाइलें
भारत की स्वतंत्रता के लिए आजाद हिंद फौज का नेतृत्व करने वाले सुभाष चंद्र बोस की मौत एक रहस्य बनी हुई है। इस मुद्दे पर फिर राजनीतिक हलकों और बुद्धिजीवियों के बीच तीखी बहस छिड़ हुई है। गौरतलब है कि 1945 में 18 अगस्त को वह विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया था, जिसमें सुभाषचंद्र बोस सवार बताए जाते थे, हालांकि नेताजी को लेकर कई विरोधाभासी बातें सामने आती रही हैं और उनसे जुड़ी गोपनीय जानकारी को सार्वजनिक करने की मांग उठती रही है। बीजेपी ने 2014 के आम चुनावों में केंद्र में सरकार बनने पर इन फाइलों को सार्वजनिक करने का वादा किया था। लेकिन, बाद में बीजेपी ने इस मामले में यूटर्न ले लिया था।
नेताजी के ऊपर शोध कर रहे विद्वानों का कहना है कि बोस की मौत और उससे जुड़े रहस्यों को सियासी रंग दिया जा रहा है। समझा जा रहा है कि ममता सरकार ने अगले साल होने वाले चुनाव के मद्देनजर कुछ फाइलों को सार्वजनिक कर भावानाओं का कार्ड खेला है। जबकि एक दर्जन से अधिक ऐसी फाइलों पर राज्य सरकार अभी भी बैठी हुई है, जिनसे कई बड़े खुलासे हो सकते हैं। विद्वान मानते हैं कि तृणमूल के कई सांसद नेताजी के परिवार से जुड़े हुए हैं, ऐसे में सच्चाई को अभी भी रहस्य बनाकर ही रखा गया है। नेताजी पर तीन दशक से शोध कर रहे जयंतो चौधरी कहते हैं, ‘इसके कई कारण हो सकते हैं। इसके पीछे राजनीतिक कारण हैं। नेताजी से जुड़ी कई फाइलें अभी भी गायब हैं। 1941 की जनवरी में कोलकाता से उनका गायब होना और आईएनए ट्रांजिट कैंप की दास्तान जहां अंग्रेजों ने सदस्यों की हत्या की थी।
हो सकता है अंतरराष्ट्रीय संबंधों को खतरा!
जयंतो कहते हैं, ‘इसके पीछे राजनीतिक कारण हो सकते हैं, क्योंकि संभव है कि फाइलों के सार्वजनिक होने से कई देशों से अंतरराष्ट्रीय संबंध खराब हो जाएं। वह आगे कहते हैं कि अगर नेताजी ओर ईमिली के बीच संबंधों को लेकर कोई चिट्ठी है तो उसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए। शिशिर बोस ने ईमिली को जो चिट्ठी लिखी थी वह भी गायब है, जबकि उसका मेमो नंबर उपलब्ध है।
1937 में नहीं हुई थी नेताजी की शादी!
जयंतो चौधरी कहते हैं कि यह बात गलत साबित होती है कि नेताजी ने 1937 में शादी कर ली थी, क्योंकि 1939 में उन्होंने पासपोर्ट के लिए अपने आवेदन में खुद को अविवाहित बताया है। सरकार के राजनीतिक कारणों से जस्टिस मुखर्जी कमीशन की फाइलों को भी सार्वजनिक नहीं किया है।