नई दिल्ली: नीतीश कुमार BJP से अलग होंगे, बात लगभग उस राह पर बढ़ रही है। लेकिन उसकी वजह यह हालिया तनाव नहीं होगा। नीतीश को इस बार के भाजपा से मेल मिलाप के बाद यह साफ दिख रहा है कि भाजपा से गंठजोड़ तो उन्होंने किया है लेकिन भाजपा दांती काटी यारी टाइप गंठबन्धन धर्म का निर्वाह राजद के साथ कर रही है।
भाजपा और राजद साथ होकर, फ्रेंडली टी-ट्वेंटी मैच का खेल जड़ से नीतीश कुमार की सियासत को खत्म कर रहे हैं, यह बिहार की सियासत को जरा भी जाननेवाले महसूस कर रहे हैं। इस बार राजद का निरन्तर ज्यादा से ज्यादा अटैक नीतीश कुमार पर फोकस्ड है। इस बार यह भी नया है कि पिछले कार्यकाल में नीतीश के हनुमान माने जाने वाले सुशील मोदी कभी भी नीतीश की ओर से राजद को जवाब नहीं दे रहे।
पिछली बार तो स्थिति यह थी कि सुशील मोदी आधिकारिक तौर पर जदयू के प्रवक्ता जैसे हो गये थे और भाजपाई भी कहते थे कि ई भाजपा में काहे हैं, काहे नही नीतीश की पार्टी में ही चले जाते हैं। यूँ भी भाजपा और राजद, दोनों को राज करने के लिए, दो ध्रुवीय राजनीति करने के लिए बिहार की सियासत से नीतीश फैक्टर को खत्म करना जरूरी है। नीतीश एक ऐसे फैक्टर हैं जो दोनों के आधार पर असर डालते हैं, अपनी ओर खींचते हैं।
राजद और भाजपा, दोनों को एक दूसरे की जरूरत है। राजद को खोया आधार पाने के लिए आक्रामक भाजपा चाहिए। भाजपा को बिन नीतीश अपना एक ठोस टिकाऊ आधार बना लेने के लिए सामने राजद चाहिए। तमाम इफ बट के बावजूद नीतीश इन दोनों की राह में रोड़े हैं।