हालांकि यह बात भी इन दिनो कही जा रही है कि बीजेपी के अंदर एक भी ऐसा नेता नहीं है जो गुजरात के मुख्मंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता पर सवाल खड़ा करे, लेकिन अंदरूनी तौर पर यी फैसला कर पाना कठिन है। कुछ दिन पहले लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सुषमा स्वराज ने भी उस वक्त अटकलें तेज कर दी थी, जब उन्होंने कहा था कि रेस में कई लोग है और उनमें पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी भी शामिल हैं।
साफ तौर पर उनका संकेत यह है कि प्रधानमंत्री उम्मीदवार राजग के सामूहिक निर्णय से तय किया जाना चाहिए। जबकि मोदी के नाम पर राजग के दो सहयोगियों जदयू और शिवसेना से आपत्ति जता दी है। कुछ नेता इस मत से भी सहमत नहीं है कि उम्मीदवा चुनाव बाद तय होना चाहिए। उनका कहना है कि जनता का भरोसा राजनीतिक दलों में नहीं, व्यक्ति में होता है। लिहाजा नाम तय कर मैदान में उतरना ज्यादा अच्छा हे।
ऐसे में सूत्रों का कहना है कि बहुत कुछ जदयू के रूख पर निर्भर करता है। अपनी राजनीतिक मजबूतियों के कारण अगर उसने अलग रास्ता सुना तो प्रधनमंत्री उम्मीदवार के चयन की प्रक्रिया तेज हो सकती है, वरना उम्मीदवार पेश करने की मांग के बावजूद देर हो सकती है। खैर बाते तो प्रधानमंत्री पद को लेकर चल रही हैं और चलती ही रहेंगी। देखना तो यह है कि इस दौड़ में शामिल कौन आगे निकल कर रेस का विजेता बनेगा।