राजन ने वॉशिंगटन के ब्रूकिंग्स इंस्टीच्यूशन द्वारा आयोजित सम्मेलन में कहा ‘हमारे पास पर्याप्त मुद्रा-भंडार है लेकिन कोई भी देश अंतरराष्ट्रीय प्रणाली से अपने आपको को अलग नहीं कर सकता।
हाल ही में समाप्त वित्त वर्ष के दौरान भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 300 अरब डॉलर के स्तर को पार कर गया जो दिसंबर 2011 के बाद का उच्चतम स्तर है। मार्च 28, को समाप्त सप्ताह के दौरान मुद्रा भंडार 5.038 अरब बढ़ कर 303.673 अरब डॉलर हो गया जो वित्त वर्ष का दूसरा उच्चतम स्तर था। इस अवधि में विदेशी मुद्रा परिसंपत्ति भी 5.011 अरब डॉलर बढ़कर 276.406 अरब डॉलर हो गई।
राजन ने कहा, ‘मेरी यह टिप्पणी इस आकांक्षा के मद्देनजर है कि अंतरराष्ट्रीय प्रणाली और स्थिर हो। ऐसी प्रणाली हो जो अमीर-गरीब, बड़े-छोटे सबके लिए मुनासिब हो न कि सिर्फ हमारे हालात के मुताबिक हो। औद्योगिक देशों की अपारंपरिक नीतियों के बारे में उन्होंने कहा कि जब बड़े देशों में मौद्रिक नीति बेहद और अपरंपरागत तौर पर समायोजक हो तो पूंजी प्रवाह प्राप्त करने वाले देशों को फायदा जरूरत होगा।
औद्योगिक देशों की अपारंपरिक नीतियों के बारे में उन्होंने कहा कि जब बड़े देशों में मौद्रिक नीति बेहद और अपरंपरागत तौर पर समायोजक हो तो पूंजी प्रवाह प्राप्त करने वाले देशों को फायदा जरूरत होगा। उन्होंने कहा, ‘ऐसा सिर्फ सीमा-पार के बैंकिंग प्रवाह के प्रत्यक्ष असर के कारण नहीं हुआ बल्कि अप्रत्यक्ष असर से भी हुआ क्योंकि विनिमय दर में मजबूती और परिसंपत्तियों विशेष तौर पर रियल एस्टेट की बढ़ती कीमत के कारण लगता है कि रिण लेने वाले के पास वास्तविकता से ज्यादा इक्विटी है। उन्होंने कहा कि ऐसे हालात में पूंजी प्रवाह प्राप्त करने वाले देश में विनिमय दर में लचीलेपन से संतुलन की बजाय अप्रत्याशित उछाल को बढ़ावा मिलता है।
उन्होंने कहा कि फेड द्वारा मई 2013 में उदार लोन नीति (बॉन्ड खरीद कार्यक्रम) में धीरे-धीरे कमी किए जाने की चर्चा छेड़ने के बाद शुरू हुई विनिमय दर उठापटक में तात्कालिक वित्तीय परिस्थितियों के तहत वे देश सबसे ज्यादा प्रभावित हुए जिन्होंने आसान लोन नीति के दौर में अपनी मुद्रा की वास्तविक दर को चढ़ने दिया था। इसी के साथ देखा जाए तो भारत में केंद्रीय बैंक द्वारा विदेशी मुद्रा भंडार का लक्ष्य निर्धारित करने की परंपरा नहीं रही है। चीन का विदेशी मुद्रा भंडार 2013 के अंत में 3,660 अरब डॉलर था जो विश्व में सबसे अधिक है जबकि सबसे अच्छी स्थिति में भी भारत का मुद्रा भंडार कभी 322 अरब डॉलर से अधिक नहीं रहा।