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सस्ती होंगी कैंसर की दवाएं

cancer drugब्लड कैंसर जैसी बिमारी जिसका इलाज इतना महंगा होता है कि अगर किसी गरीब या मध्य वर्ग के लोगों में किसी को ये बिमारी हो जाती है तो वह इस बिमारी के डर से कम इसके महंगे इलाज से हताश होकर अपनी जिंदगी से हार जाता है। अब इस सभी समस्यओं को देखते हुए ब्लड कैंसर से पीडि़त मरीजों के लिए एक बहुत बड़ा फेसला लिया गया है जो सभी मरीजों के लिए बहुत ही राहत की बात साबित होग। ब्लड कैसर की दवाएं महंगी होने की बात जिसपर विचार किया जा रहा था अब सुप्रीम कोर्ट ने स्विस दवा निर्माता कंपनी नोवार्टिस की ब्लड कैंसर की महंगी दवा ग्लिेवेक के पेटेंट की मांग खारिज कर दी है। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से जहां

भारत में ब्लड कैंसर की सस्ती दवाओं का रास्ता साफ हो गया है, वहीं ब्लड कैंसर की जेनरिक दवा बनाने वाली भारतीय कंपनियों ने भी राहत की सांस ली है।

 बता दें कि ग्लिवेक दवा का महीने का खर्च करीब 1.3 लाख रूपये है जबकि इसके जेनरिक संस्करण की लागत देश में 8,750 रूपये प्रति माह है। अगर सुप्रीम कोर्ट भारतीय बाजार में बिक्री के लिए पेटेंट सुरक्षा प्रदान करने की नोवार्टिस की याचिका स्वीकार कर लेता तो भारतीय कंपनियां इस दवा का उत्पादन, निर्माण व बिक्री नहीं कर सकती थी। इससे नोवार्टिस का बाजार पर एकाधिकार हो जाता और मरीजों को कई गुना महंगी दवा खरीदनी पड़ती।

 

जस्टिस आफताब आलम व जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई ने नोवार्टिस की याचिका खारिज करते हुए कहा कि कंपनी पेंटेंट कानून के तहत नए अनुसंधान और पेंटेट के दावे को साबित करने में विफल रही है। नोवार्टिस ने चेन्नई स्थित बौद्धिक संपदा अपीली बोर्ड (IPAB) के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की थी। (IPAB) पहले ही कंपनी की पेटेंट की मांग ठुकरा चुका था। कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट से ग्लिवेक को भारतीय बाजार में बिक्री के लिए पेटेंट सुरक्षा प्रदान करने की मांग की थी। कंपनी का दावा था कि ग्लिवेक में बीटा क्रिस्टलाइट शामिल किया गया है। यह कंपनी की अपनी नई खोज हैं सुप्रीम कोर्ट ने कपंनी की दलीलें खारिज करते हुए कहा है कि वह यह साबित करने में विफल रही है कि उसकी दवा में कोई नया पदार्थ शामिल किया गया है। कोर्ट ने कहा है कि देश का पेटेंट कानून ऐसा नहीं होना चाहिए जो कि नए वास्तविक अनुसंधान को सुनिश्चित करने के बजाए कंपनी के कलात्मक ढंग से तैयार पटेंट के दावे को स्वीकृति दे। हम नहीं चाहते के पेटेंट का उद्देश्य किसी वस्तु या सामग्री के व्यापार या मार्केटिंग के बजाय किसी को मुकदमे में फंसाने का हो। सुप्रीम कोर्ट ने अपने 160 पेज के फैसले में कंपनी की सारी दलीलें ठुकराते हुए याचिका मुकदमा खर्च सहित खारिज कर दी। इससे पहले (IPAB) बोर्ड ने कंपनी की पेटेंट की मांग खारिज करते हुए इसे नई खोज और बढ़ी गुणवत्ता मानने से इन्कार कर दिया था जो कि किसी भी चीज के पेटेंट के लिए जरूरी है। नोवार्टिस पिछले सात सालों से इस पेटेंट के लिए जूझ रही थी और अंततः सुप्रीम कोर्ट पहुंची थी।

कंपनी के पास करीब 40 देशों में इस दवा का पेटेंट है, लेकिन समस्या केवल भारत में खड़ी हुई। भारतीय पेटेंट ऑफिस से 2003 में इस दवा को अगले पांच साल के लिए विशेष मार्केर्टिंग अधिकार (EMR) दिया गया। बाद में ग्लिवेक के जेनरिक संस्करण को बताने के लिए रैनबैक्सी और सिपला जैसी कंपनियों ने नोपार्टिस को मद्रास और बांबे हाईकोर्ट में चुनौति दी। 2006 से नोवार्टिस इस दवा का भारत में नया पेटेंट हासिल करने की कानूनी लड़ाई लड़ रही थी।

ब्लड कैंसर की दवाईओं का सस्ता करने का यह फैसला बहुत ही अहम है जो इस बिमारी से जूझ रहे लोगों के लिए अपनी बिमारी से लड़ने में काफी मदद करेगा।