दिल्ली में स्कूलों की बढ़ती फीस और उसपर से एक साथ 3 महीने की फीस एक साथ जमा करने ये परेशान अभिभावको को राहत मिली है। उच्च न्यायालय ने राजधानी के निजी स्कूलों और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावाकों के हित में फैसला सुनाकर उन्हें राहत प्रदान की है। एक याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने निर्देश जारी किया है कि सभी स्कूल संचालक अभिभावकों से एक महीने से ज्यादा की फीस अग्रिम के तौर पर नहीं लेंगे। यह फीस अभिावक को महीने की दस तारीख तक जमा करानी होगी। न्यायमूर्ति वाल्मीकि मेहता ने अपने फैसले में कहा कि शिक्षा निदेशक को कानून के तहत ऐसा कोई अधिकार प्राप्त नहीं है, जो निजी स्कूलों को यह अधिकार दे कि वह एक महीने से ज्यादा का शुल्क अग्रिम के तौर पर एक साथ ले सके।
निजी रूकूलों द्वारा अभिवकों से तीन महीने की शुल्क अग्रिम के तौर पर लिया जा रहा है। मामले में समरफील्ड स्कूल में पढ़ने वाले 10 बच्चों के माता-पिता ने अधिवक्ता अशोक अग्रवाल के माध्यम से एक याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि निजी स्कूल तीन महीने की फीस अग्रिम लेते हैं जो कि दिल्ली स्कूल एजुकेशन एक्ट-1973 के विरूद्ध है। इतना ही नहीं, कई स्कूल सालभर का शुल्क एक साथ ले लेते हैं। स्कूलों की यह हरकत माता-पिता के मूलभूल अधिकारों का हनन है। इससे उन्हें आर्थिक परेशानी उठानी पड़ती है और अक्सर घरेलू बजट प्रभावित होता है।
न्यायालय के फैसले के बाद अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने कहा है कि हालांकि यह फैसला दिल्ली के जिनी रूकूलों से संबंधित है, लेकिन देशभर के अभिभावकों से आग्रह है कि वे स्कूलों में एक महीने से ज्यादा अग्रिम शुल्क जमा न कराएं और स्कलों की इस मनमानी को रोकने में एक दूसरे का सहयोग करें।