आजकल पिता और पुत्र चर्चा में हैं। पिताजी ने लगातार 20 साल तक घर में शौचालय निर्माण करवाने को लेकर जद्दोजद किए। बस उनको जहां भी मौका मिलता वहीं पर दुःखड़ा पेश करने लगते। 1992 से 2012 तक लगातार लाठीधारी विकलांग पत्नी और दोनों अपंग बच्चों को कंधे के सहारे देकर 20 साल तक बांध के किनारे ले जाकर शौचाक्रिया करवाया। इसकेे अलावे हर पल श्रवर्ण कुमार की तरह अपंगों की सेवा में तत्पर रहा।एक एनजीओ की सहायता से अन्ततः 2012 में मैं तुलसी तेरे आंगन की तरह ही मैं शौचालय तेरे आंगन में गया।
पिताजी की कार्यक्षमता और लगन से कायल पुत्रजी भी हो गए। पिताजी की पथचिन्हों पर अब पुत्र जी भी अग्रसर हैं। वह मन में ठान लिया हैं कि बीडीओ साहब के कार्यालय जाएंगे। और अपंग मां और दोनों भाइयों को निःशक्ता सामाजिक सुरक्षा पेंशन और त्रिपहिया वाहन दिलवाकर राहत महसूस करेंगे। अब देखना है कि कितना देर सबेर में पुत्र जी की अभिलाषा नौकरशाह पूर्ण कर पा रहे हैं।
गया जिले के फतेहपुर प्रखंड में मतासो ग्राम पंचायत है। इस पंचायत में बड़गांव है। बड़गांव में ही नरेन्द्र प्रसाद रहते हैं। जब नरेन्द्र प्रसाद 1992 में मैट्रिक में पढ़ते थे। उसी वक्त नरेन्द्र प्रसाद की छोटी बहन रीता देवी और उसके ससुुर बाबूलाल महतो ने मिलकर रीता नामक विकलांग से जबरन विवाह करा दिए। गरीबी और लाचारी के कारण राजमिस्त्री के मजदूर नरेन्द्र प्रसाद के घर में शौचालय नहीं था। तो उन्होंने लाठीधारी विकलांग पत्नी रीता देवी को 20 साल तक कंधे से सहायता देकर बांध के किनारे शौचक्रिया कराने ले गए। भगवान की दया देखें कि नरेन्द्र और रीता के सहयोग से तीन बच्चे जन्म लिए। इसमें आगे के दोनों बच्चे जन्मजात विकलांग हो गए। तीसरे सामान्य बच्चे हुआ। जन्मजात विकलांग रंजन कुमार और वरूण कुमार को भी शौचालय कराने ले जाते थे।
वर्ष 2012 में वाटर एड इंडिया ने गैर सरकारी संस्था प्रगति ग्रामीण विकास समिति को सहयोग देना प्रारंभ किया। प्रगति ग्रामीण विकास समिति के परियोजना समन्वयक बृजेन्द्र कुमार ने कहा कि हमलोग जल स्वच्छता अभियान के तहत फतेहपुर प्रखंड के पांच पंचायतों में काम करना शुरू कर दिए। एक दिन मतासो ग्राम पंचायत के बड़गांव में ग्रामीण बैठक कर रहे थे। इसमें बैठक में नरेन्द्र प्रसाद शामिल होकर ने अपनी आपबीती और अन्य समस्याएं रखे। गंभीरता के आलोक में नरेन्द्र प्रसाद के घर में शौचालय बना दिया गया। इसके साथ ही 1992 से लगातार 2012 तक विकलांग पत्नी और दोनों बच्चों को कंधे के सहारे देकर बांध के किनारे शौचक्रिया कराने का कार्य बंद करना बंद हो गया।
पिता जी नरेन्द्र प्रसाद के द्वारा घर के अंदर की जंग जीतने के बाद सामान्य शरीर वाले तीसरे पुत्र मनोहर कुमार ने घर के बाहर की जंग 2012 से शुरू कर दी है। राम सहाय उच्च विघालय में नौवीं कक्षा में पढ़ने वाले मनोहर कुमार ने विकलांग मां रीता देवी और विकलांग भाई रंजन कुमार और वरूण कुमार को निःशक्ता सामाजिक सुरक्षा पेंशन और त्रिपहिया वाहन दिलवाने के लिए प्रयास करना शुरू कर दिया है। वह प्रत्येक माह फतेहपुर प्रखंड विकास पदाधिकारी धर्मवीर कुमार के पास जाकर चिरौली करता हैं। फिलवक्त 2 साल गुजर गए।
बीडीओ साहब कान में रूई डालकर पड़े रहते हैं। अगर बीडीओ साहब चाहेंगे तो घंटों में विकलांगता प्रमाण पत्र निर्गत किया जा सकता है। इसमें जाति और आर्थिक प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं है। यह तो शारीरिक लूक पर ही प्रमण पत्र निर्गत किया जा सकता है। सरकारी गांड़ी पर भेजकर किसी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र के चिकित्सक से प्रमाण पत्र निर्गत करवा सकते हैं। वास्तव में इन विकलांगों की तकदीर नौकरशाहों के हाथ में निर्हित है। आखिर कब पीपुल्स फ्रेंडली होकर पीपुल्स के कार्य धकधकाधक करने में माहिर हो पाएंगे। वह तो आने वाले कल ही पता चल पाएगा। बीडीओ साहब जी अपंगों के सहारा बन जाए। बस न्याय की आस में लाठी थामकर रीता देवी खड़ी रहती हैं और दोनों बच्चे बैठे रहते हैं।