‘हिंदू मैरिज एक्ट’ के तहत ‘नाजायज’ संतान की धारणा खत्म की जा सकती है। महिला और बाल विकास मंत्रालय एक कमेटी की ऐसी सिफारिशों पर विचार कर रहा है। यूपीए सरकार के समय गठित कमेटी ने परिवार में स्त्री को मजबूत बनाने के स्तर पर कई सुझाव दिए हैं।
अंग्रेसी अखबार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने यह खबर दी है जिसके मुताबिक़ कमेटी ने सुझाव दिया है कि कानून में ‘अनाचार’ के दायरे को फिर से परिभाषित किया जाए, ताकि पत्नी से ‘प्रॉपर्टी’ की तरह बर्ताव न किया जा सके। कमेटी ने ‘क्रूरता’ पर नए सिरे से विचार करने और ‘नाजायज संतान’ की धारणा को खत्म करने का सुझाव भी दिया है।
पंजाब यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर रह चुकीं पाम राजपूत की अध्यक्षता में बनी कमेटी को यूपीए सरकार ने गठित किया था। इसने हाल ही में एनडीए सरकार की महिला-बाल विकास मंत्री मेनका गांधी को रिपोर्ट सौंपी है।
पैनल ने ‘ऑनर किलिंग’ से निपटने के लिए अलग कानून बनाने की सिफारिश की है। साथ ही मुस्लिम और ईसाइयों के कानून में भी सुधार सुझाए हैं। कमेटी ने ‘मौखिक, एकतरफा और तीन बार तलाक’ और एक से ज्यादा शादी करने की प्रथा पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
कमेटी ने अलगाव या तलाक की स्थिति में पत्नी को अनिवार्य रूप से मुआवजा दिए जाने की वकालत की है। मौजूदा कानून के मुताबिक, अगर महिला ‘व्यभिचारी’ साबित कर दी जाए या वह खुद पति के साथ रहने से मना कर दे तो उसे मुआवजा देना जरूरी नहीं होता। कमेटी ने इस व्यवस्था को खत्म करने की सिफारिश की है। पैनल ने हिंदू उत्तराधिकार कानून में भी महिलाओं की स्थिति को मजबूत करने के लिए कई सुझाव दिए हैं।
कमेटी ने कहा है कि ‘लिव-इन रिलेशनशिप’ के मामले भी विवाह और उत्तराधिकार कानूनों से बंधे हुए होने चाहिए। कमेटी ने कहा है कि सभी प्रासंगिक कानूनों में संशोधन करके मां को बच्चे का ‘प्राकृतिक अभिभावक’ घोषित किया जाना चाहिए।
कमेटी ने कहा है कि हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 16 में संशोधन करके इसमें वैवाहिक संबंधों के बिना पैदा होने वाले हर बच्चे को शामिल करना चाहिए। आगे से ‘नाजायज’ शब्द का इस्तेमाल किसी दस्तावेज में नहीं होना चाहिए। अगर इस सुझाव को मान लिया तो इसका मतलब है कि मां-बाप की वैवाहिक स्थिति का संतान पर कोई कानूनी असर नहीं पड़ेगा।