हालांकि प्रशासन ने तो आपदाग्रस्त क्षेत्रों में राहत के नाम पर बड़े-बड़े दावे किए हैं, लेकिन हकीकत कुछ और ही बयां करती हैं। केदारनाथ-गौरकुंडी पैदल मार्ग पर कई स्थानों पर फंसे लगभग पांच हजार लोगों को भोजन तो दूर, पानी तक नसीब नहीं हो पा रहा है। भूख थकान और कमजोरी के कारण ये लोग न तो रास्ते तलाश पा रहे हैं और न हीं उनके पास किसी तरह की राहत पहुंच पा रही है।
इसी तरह जंगलचट्टी, गौरी गांव में भी भोजन और पानी के अभाव से कई महिलाओं वत बच्चों ने दम तोड़ दिया। इस गांव में फंसे लगभग ढाई हजार से अधिक लोगों को निकालने के कोई ठोस इंतजाम अभी तक नहीं हो पाया हैं।
हालांकि सेना व एनडीआरएफ की टीम पैदल फाटा से गौरीकुंड के लिए चली थी, लेकिन शाम तक वह मौके पर नहीं पहुंच पाई। अब भी वहां एसे कई लोग फंसे हुए हैं जो अपनी अंतीम सांसे गिन रहे हैं। यहां पर यात्रियों समेत यहां के स्थानीय लोग भी भगवान भरोसे ही हैं। यहां मंदाकिनी की हालत की बात करे तो उसे देख ऐसा लगता है, जैसे शायद सरकार और उसका प्रशासन वहां के लोगों को राहत देना भूल गया हैं।
यहां केदारनाथ सहित अगसत्यमुनि, सिल्ली, विजयनगर, चंद्रापुरी, सुमाड़ी और तिलवाड़ा क्षेत्र में भी भारी तबाही हुई है। यहां के 400 से अधिक घर पूरी तरह तबाह हो गए हैं और 10 हजार से अधिक लोग बेघर हो चुके हैं। इन लोंगों मे राहत पहुंचाने की कोई योजना भी अभी तक नहीं बन सकी हैं। यहां खाने के पैंकेट भी नहीं पहुंचाए जा सके हैं। ऐसे हालांतों में यहां का स्थानीय प्रशासन पूरी तरह फेल होते दिखाई दे रहा हैं।