नई दिल्ली : भारत-पाकिस्तान सीमा पर बन रहे युद्ध के माहौल को देखते हुए जब प्रशासन ने यहाँ से लोगो को राहत शिविरों में भेजने की बात कही तो गुरदासपुर में 10 किलोमीटर एरिया में बने गांवों से कोई राहत शिविर में जाने को तैयार नहीं है। लोग शिविर में जाने से अच्छा जंग में जाने को समझते हैं।
गौरतलब है कि अंतरराष्ट्रीय सीमा के आसपास गुरदासपुर का करीब 10 किमी का रास्ता पाकिस्तान से सटा है। इलाके में 294 गांव हैं। इनमें पांच गांव रावी दरिया के पार हैं। सरकार की तरफ से गुरदासपुर में गोल्डन इंस्टीट्यूट और सुखजिंदरा इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग में दो राहत शिविर बनाए गए हैं।
प्रशासन की लाख कोशिशों के बाद भी इन राहत शिविरों में कोई आने के लिए तैयार नहीं है। राहत शिविरों न तो पीने का पानी है और न ही बिस्तरों का प्रबंध है। टेंट को ही जमीन पर बिछाकर लोगों का इंतजार किया जा रहा है। गोल्डन इंस्टीट्यूट के बेसमेंट में राहत शिविर एक बड़े हॉल में है। इसकी दीवारों में सीलन है और फर्श गंदगी से अटा पड़ा है। पीने का पानी तक नहीं है और बिजली के तार बाहर निकले हुए हैं।
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक जब मीडिया यहां पहुंची तो वहां हालात काफी खराब थे। कमरे से सीलन की बदबू आ रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे हॉल को कभी खोला ही नहीं गया था। प्रशासन का कोई भी प्रतिनिधि वहां मौजूद नहीं था। इंस्टीट्यूट के कर्मचारियों ने हॉल को खोलकर अंदर का नजारा दिखाया।
ऐसा ही नजारा सुखजिंदरा इंस्टीट्यूट का भी था। वहां लाइब्रेरी के हाल को शिविर के रूप में खोला गया था। वहां भी न तो बिस्तर थे और न ही पीने का पानी। सीमावर्ती गांव की सरपंच रणदीप कौर का कहना है कि शिविरों में मच्छर हैं, गंदगी है। वहां वह कैसे अपने बच्चों या लोगों को भेज सकते हैं।
इससे तो सीमा पर रहकर टक्कर लेना बेहतर है। राहत शिविरों में वह बीमार होने नहीं जाएंगे। प्रीतम सिंह ने बताया कि पुलिस कह रही थी कि चलो शिविर में। पुलिस को सारे गांव ने मिलकर जवाब दे दिया कि हम नहीं जाना चाहते शिविरों में। इसके बदले हमें जेल तो नहीं भेज सकते न।