बुधवार को दिल्ली हाई कोर्ट को केंद्र ने बताया कि अगर लग्जरी कंडोम को दवा मूल्य नियंत्रण आदेश (डीपीसीओ) से हटा दिया जाता है तो कंपनियां महंगी वैरायटी वाले लग्जरी कंडोम से बाजार को पाट देंगी और कम मूल्य वाले कंडोम की बाजार में किल्लत हो जाएगी।
अतिरिक्त सोलिसिटर जनरल (एएसजी) संजय जैन ने मुख्य जस्टिस जी। रोहिणी और चीफ जस्टिस राजीव सहाय एंडलॉ की पीठ को बताया, अगर हम महंगे कंडोम को डीपीसीओ से बाहर कर दें तो वे (कंपनियां) महंगी वैरायटी वाले कंडोम से बाजार को पाट देंगी। उन्होंने कहा, ‘कंपनियां कम कीमत वाले ब्रांड्स उत्पादों की बाजार में किल्लत भी पैदा कर सकती हैं या पैकेजिंग बेकार कर सकती हैं जिससे उपभोक्ता उन्हें खरीदने में दिलचस्पी न दिखाएं।
कोर्ट ने इसके जवाब में कहा कि सरकार कंपनियों पर समान अनुपात में विनिर्माण बनाए रखने की शर्त लगा सकती है। कोर्ट फार्मा कंपनियों रेकिट बेंकाइजर और जे.के. अंसल द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इन कंपनियों ने कंडोम को डीपीसीओ में शामिल कर इनकी कीमत को सीमा के दायरे में लाने के सरकार के फैसले को चुनौती दी है।
सुनवाई के अंतिम दिन कोर्ट ने सवाल किया कि अगर उपभोक्ता प्रीमियम या लग्जरी कंडोम के लिए कीमत देने के इच्छुक हैं तो मुद्दा क्या है। सरकार ने इससे पहले कहा था कि कंडोम वर्तमान में आवश्यक दवाओं की राष्ट्रीय सूची में है और जहां तक दवाओं का संबंध है, इनका लग्जरी या साधारण के तौर पर कोई वर्गीकरण नहीं किया जा सकता।
फार्मा कंपनियों ने दलील दी कि उनके उत्पाद डिवाइस है न कि दवाएं और इसलिए वे डीपीसीओ के दायरे में नहीं आते। कंपनियों ने दावा किया कि उनके उत्पाद लग्जरी उत्पाद है जो आनंद के लिए बने हैं। केंद्र सरकार ने हालांकि कहा कि क्योंकि कंडोम से बीमारियों की रोकथाम में मदद मिलती है, इसलिए ये दवाओं के वर्ग में आते हैं और इसलिए इनकी कीमतें नियंत्रित की जा सकती हैं।