सोनभद्र, सोनभद्र का दक्षिणांचल क्षेत्र Energy capital of India के नाम से जाना जाता है क्योंकि इस क्षेत्र में पावर प्लाण्टों की भरमार है। भारत का पहला पाॅवर प्लान्ट एनटीपीसी द्वारा शक्तिनगर में लगाया गया था जिसकी पाॅवर क्षमता 2000 मेगावाट है। इसके बाद इस क्षेत्र में दो और पाॅवर प्लान्ट लगाये गये जिसमें विन्ध्य नगर पाॅवर प्लान्ट और बीजपुर पाॅवर प्लान्ट षामिल हैं। जिसकी पाॅवर क्षमता क्रमश: 3260 मेगावाट व 3000 मेगावाट है इसमें विन्ध्यनगर पाॅवर प्लान्ट की क्षमता सबसे अत्यधिक है। वर्तमान समय में सोनभद्र में पाॅवर प्लान्टों की संख्या 9 के आसपास है और कुछ निर्माणाधीन हैं।
सोनभद्र Energy capital of India के नाम से जाना जाता है तो वहीं दूसरी तरफ यह देष के दस प्रतिदूशित षहरों में से एक है इसके लिये भी जाना जाता है। यहां की अबोहवा में सांस लेने से लेकर खाने व पीने तक में प्रदूशण व्याप्त है वहीं दूसरी तरफ वन एवं पर्यावरण मंत्रालय , भारत सरकार ने 13 जनवरी, 2010 को सोनभद्र क्षेत्र को क्रिटिकली पल्यूटेड इण्डस्ट्रीयल एरिया घोशित कर दिया है। सोनभद्र में विकास को प्रमुखता तो दी गयी परन्तु इसके विकास से सोनभद्र के किस-किस क्षेत्रों में दुश्प्रभाव पड़ेगा इस पर ध्यान नहीं दिया गया। यहां पर केमिकल प्लान्ट, कोयला प्लान्ट, सीमेन्ट प्लान्ट, लाइम स्टोन प्लान्ट, एबे्रसीव प्लान्ट और पाॅवर प्लान्ट हैं।
इन प्लान्टों से निकलने वाला अपषिश्ट पदार्थ कहां छोड़ा जाय इसको भी ध्यान में नहीं रखा गया पर्यावरण पर पड़ने वाले ऐसे प्रभावों को ध्यान में रखा गया होता तो सोनांचल की हवायें, पानी, मृदा और अन्न प्रदूशित ना होंते। मृदा, पानी और वायु के दूशित होने के कारण यहां के भोज्य पदार्थो में विश घुल चुका है जिसका जीता-जागता उदाहरण जिले के चिलकादाद गांव में सरजू निषा के रूप में देखने को मिलता है इस जिले का पूरा पर्यावरणीय तंत्र प्रदूषित हो चुका है।
2010 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पर्यावरण कार्यक्रम के तहत ब्लैक स्मिथ संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार इस क्षेत्र के व्यक्तियों में परीक्षण के बाद खून व बाल में पारे की मात्रा सामान्य से अधिक पायी गयी। रिपोर्ट में, फ्लाई ऐश के अनियंत्रित डिस्पोजल के कारण कैंसर सहित जैसे कई गम्भीर बीमारियों को भी नोटिस किया गया। जबकि वहीं दूसरी तरफ विश्व विज्ञान अनुसंधान संस्थान लखनऊ ने 1998 में सोनभद्र सिंगरौली क्षेत्र में पारे के अधिकता पर एक रिपोर्ट पेश की और कहा कि इस क्षेत्र में पारे की मात्रा सामान्य से अधिक है।
सोनभद्र में एक ही सिद्धान्त देखने को मिल रहा है कीलिंग फाॅर मनी अर्थात् अपनी पूंजी को बढ़ाने के लिये विकास के सारे पैमाने को ताक पर रखना। यहां का औद्योगिक संस्थान जो चाह रहा है वह कर रहा है। प्रदूषण नियंत्रण विभाग को भी वे अपने पाकेट में रखे हुए हैं यहीं कारण है कि प्रदूषण नियंत्रण विभाग के वरिष्ठ क्षेत्राधिकारी कालिका सिंह को सोनभद्र में कहीं पर भी प्रदूषण नजर नहीं आता वे कहतें हैं कि सारे जांच करा लिये गये हैं किसी भी तत्व में प्रदूषण की मात्रा नहीं पायी गयी। कालिका सिंह को यह नहीं मालूम की इस प्रदूषण ने लोगों के स्वास्थ्य को कैसे जकड़ रखा है।
गम्भीर बीमारियों की समस्यायें उत्तर प्रदेश के किसी अन्य जिले की अपेक्षा सोनभद्र में आंकड़े ज्यादा बयां करते हैं। 2010-11 के दौरान उ.प्र. वार्षिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण दर्शाता है कि प्रति सौ हजार लोगों में से 30634 लोग दस्त, पेचीस और श्वसनतंत्र संक्रमण बीमारियों से प्रभावित हैं। यह गम्भीर बिमारियां राज्य औसत से ढाई गुना ज्यादा है। इस जिले के 24 गांव ऐसे हैं जो भयंकर प्रदूषण की चपेट में है जबकि सोनभद्र प्रशासन गांधी जी के तीन बन्दर बन बैठे हैं कारण सिर्फ एक है कीलिंग फाॅर मनी।
पर्यावरण संरक्षण को लेकर केसी शर्मा (पर्यावरण चिंतक) ने मई, 2014 में केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री को अपने शिकाय पत्र में लिखा कि, – ‘रिलायंस सासन पाॅवर प्रोजेक्ट को 23 नवम्वर, 2006 को दिये गये पर्यावरणीय स्वीकृति के दौरान रिलायंस सासन पाॅवर प्रोजेक्ट को 15000 करोड़ का प्रोजेक्ट मंत्रालय द्वारा स्वीकृत किया गया था जिसमें 865 करोड़ रूपये पर्यावरण की सुरक्षा और प्रदूषण शून्य रखने के लिये आरक्षित किया गया था। परन्तु वर्षों व्यतीत होने के बाद भी अभी तक न मंत्रालय के शर्तों के अनुसार वृक्षा रोपण ही किये गये हैं और न ही प्रदूषण रोधी अत्याधुनिक यंत्र लगे हैं। प्रोजेक्ट में न एयर फिल्ट्र्स न ही वाटर स्प्रे तक लगा है।
नयी शर्तों के अनुसार ग्रीन बेल्ट जो विकसित करना था उसे ही किया गया। सभी कागजी आकड़ों तक ही सीमित है पर्यावरण की सुरक्षा और प्रदूषण को शून्य रखने की शर्तों का पालन नहीं किये जाने के फलस्वरूप अत्यधिक क्रिटिकली प्रदूषित सिंगरौली परिक्षेत्र और प्रदूषित होता जा रहा है। जिसकी वजह से यहां 90 प्रतिशत लोगों को गम्भीर बीमारियां उत्पन्न हो रहीं हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि सिंगरौली परिक्षेत्र में औद्योगिक इकाईयों के विस्तार या नया उद्योग लगाने पर केन्द्र द्वारा रोक लगाया गया है इसके बावजूद रिलायंस सासन पाॅवर प्रोजेक्ट में 2000 मेगावाट क्षमता के विस्तार करने की घोषणा से प्रदूषण को लेकर सिंगरौली-सोनभद्रवासियों की चिन्ता और भी बढ़ गयी है। नयी इकाईयों के स्थापित होने से लाखो टन कोयले की खपत बढ़ेगी और उसके बाद प्रदूषण का सूचकांक जो 8324 खतरनाक स्टेज में पहले से ही पहुंच चुका है वह और भी बढ़ता जायेगा।