नई दिल्ली. यूक्रेन युद्ध से दुनिया में बढ़ती अस्थिरता और लद्दाख सीमा पर चीन की फिर से नई हरकतों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगले महीने चीन और रूस के राष्ट्रपतियों से अहम मुलाकात होगी. मौका होगा, BRICS समिट का. ब्रिक्स यानी ब्राजील, रूस, इंडिया, चीन और दक्षिण अफ्रीका का संगठन. हालांकि ये मुलाकात वर्चुअल ही होगी, लेकिन फिर भी पूरी दुनिया की इस पर नजरें हैं. यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन पहली बार ब्रिक्स की बैठक में हिस्सा लेने जा रहे हैं. टाइम्स ऑफ इंडिया ने सूत्रों के हवाले से बताया कि ये ब्रिक्स समिट 24 जून को होगी.
इससे पहले 19 मई को ब्रिक्स के विदेश मंत्रियों की बैठक हुई थी. उसमें संबोधन के दौरान चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने दूसरों पर दबदबा दिखाने और पावर पॉलिटिक्स का विरोध करते हुए एक दूसरे की संप्रभुता, सुरक्षा और चिंताओं का ध्यान रखने की अपील की थी. TOI के मुताबिक, राष्ट्रपति शी ने अमेरिका और यूरोप की तरफ संकेत करते हुए कहा था कि वो दूसरों की सुरक्षा की कीमत पर अपनी सिक्योरिटी सुनिश्चित करना चाहते हैं, जो नया संकट और तनाव पैदा कर सकता है. अब ब्रिक्स सम्मेलन में वह ग्लोबल सिक्योरिटी को लेकर अपने नए प्रयास ‘कॉमन सिक्योरिटी’ के लिए समर्थन जुटाने की पहल कर सकते हैं.
ब्रिक्स के विदेश मंत्रियों की बैठक के बाद जारी साझा बयान में भी यूक्रेन में पैदा हुए मानवीय संकट का हवाला देते हुए रूस और यूक्रेन के बीच बातचीत पर जोर दिया गया था. इस बैठक में भारतीय विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने लद्दाख के मसले पर चीन को आइना दिखाने की कोशिश की थी. उन्होंने कहा था कि बिक्स संप्रभुता, सीमाई अखंडता और अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करने की बात लगातार करता रहता है लेकिन सदस्य देशों को अपने इस वादे पर अमल भी करना चाहिए.
लद्दाख में भारत के साथ सीमा विवाद में उलझे होने के बावजूद चीन लगातार ये जताने की कोशिश करता रहा है कि बड़े क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय मसलों पर दोनों देशों की स्थिति समान है. हालांकि ऐसा असल में है नहीं. यूक्रेन पर रूसी आक्रमण को लेकर चीन पुतिन के ज्यादा समर्थन में दिखता है जबकि भारत ने हमेशा तटस्थ रवैया अपनाया है. ये अलग बात है कि भारत के इस रवैये को कुछ पश्चिमी नेता रूस के समर्थन के तौर पर देखते हैं.