दरबार भी लगे डि. एम. का जनता दरबार, एस. पी. का जनता दरबार और तो और सी.एम. का जनता दरबार। जनता अपनी समस्याए लेकर दरबार में जाने भी लगी लम्बी कतारे लगने लगी शिकायतों कि आवेदनों से फाइलें भरने लगी पर कार्रवाई के नाम पर जनता को आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिल पया। यहां तक कि जनता के दरबार मे डी. एम., जनता के दरबार में सी. एम. कार्यक्रम भी चला सरकारी पैसों का भी खूब दुरूपयोग किया गया जनता वहां भी इकठा हो अपनी समस्या सुनाए पर कार्रवाई के लिए डि.एम से लेकर सी.एम. के दरबारो का चक्कर लगाते रहे पर न्याय नहीं मिल सका उनके शिकायत के आवेदन शायद फाइलों में ही दब कर रह गई।
गरीबों कि हकमारी नहीं रूक सकी ना ही घटिया निर्माण रूका ना ही किसी आवेदन के आलोक मे जांच गठित हुई अगर किसी ज्वलंत मुदा पर जांच गठित कि भी गई तो नतिजा वही ढाक के तिन पात ही रहा। जनता कि आश अब धूमिल हो गई अब वह दिन दूर नहीं जब जनता सुसासन बाबू के इस तमाशे से कन्नी काट ले।