नई दिल्ली : दिल्ली के मुख्य मंत्री अरविंद केजरीवाल की सरकार को देश की सबसे बड़ी अदालत से अब तक की सबसे बड़ी फटकार लगी है। दिल्ली में डेंगू और चिकनगुनिया के मामले पर केजरीवाल की सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के भीतर हलफनामा ही दाखिल नहीं किया। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए दिल्लीन के हेल्थक मिनिस्टतर सतेंद्र जैन पर 25 हजार रुपए का जुर्माना लगा दिया। इस पर दिल्ली सरकार ने हलफनामा दाखिल करने के लिए कोर्ट से 24 घंटे की मोहलत मांगी। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि जब लोग डेंगू और चिकनगुनिया से मर रहे हैं तो आपको फिर 24 घंटे का वक्तर क्योंग चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल सरकार से कहा कि शायद आपकी मंशा इस मामले को हल्कें में लेने की थी। इसीलिए आपकी सरकार की ओर शनिवार को इस मामले में हलफनामा दाखिल नहीं किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को फटकारते हुए कहा कि आपको तो पूरी रात जागकर इस केस में हलफनामा तैयार कर लेना चाहिए था और वक्ते पर दाखिल कर देना चाहिए था। कोर्ट का कहना था कि हमने आपको हलफनामा दाखिल करने के लिए वक्तर दिया था ताकि आप उन अफसरों के नाम बता सकें जो आपकी बात नहीं मान रहे हैं। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केजरीवाल सरकार को एक और झटका दिया। अदालत ने दिल्ली सरकार के स्वा स्य् इ सचिव को हलफनामा दाखिल करने की इजाजत दे दी।
हालांकि केजरीवाल सरकार ने इसका विरोध किया। क्योंकि स्वा्स्य्हल सचिव की ओर से SG रंजीत कुमार ने हलफनामा दाखिल करने की इजाजत मांगी थी। इस पर सरकार का कहना था कि दिल्लीस सरकार के अधिकारी के लिए केंद्र आखिर क्यों हलफनामा देगा। इसके बाद दिल्ली सरकार ने कहा कि वो आज हलफनामा दाखिल नहीं कर पाए, आज हर हालत में हलफनामा दाखिल कर देंगे। सरकार ने मांग की कि ऐसे में इस मामले की सुनवाई मंगलवार को की जाए। दरअसल, दिल्ली में लगातार डेंगू और चिकनगुनिया के मामले बढ़ते जा रहे हैं। इसकी रोकथाम के लिए सरकार ने क्याद कदम उठाए हैं उसकी जानकारी केजरीवाल सरकार को हलफनामे के जरिए सुप्रीम कोर्ट को देनी थी।
इस हलफनामे के साथ सरकार को कोर्ट में ये भी बताना था कि वो कौन-कौन से अधिकारी हैं जो सरकार की बात को नहीं मानते हैं। इस मामले में पिछली सुनवाई के दौरान भी कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाते हुए पूछा था कि आखिर ये कैसे हो सकता है कि इस मामले में कोई भी अधिकारी अपनी जिम्मेदारी लेने को तैयार ही नहीं है। कोर्ट ने तब कहा था कि ये बेहद गंभीर आरोप हैं। आप उन अधिकारियों के नाम बताइए जो अपनी जिम्मेकदारी लेेने से इनकार कर रहे हैं। कोर्ट ने ये भी कहा था इन अफसरों के नाम बंद लिफाफे में नहीं बल्कि सबके सामने बताए जाएं। अदालत का कहना था कि हम दिल्ली। की जनता को इस तरह से छोड़ नहीं सकते हैं। अदालत ने इस मामले में स्वएत : संज्ञान लिया था।