सांविधिक तरलता अनुपात (एसएलआर) बैंकों के पास मांग और सावधि जमाओं का वह न्यूनतम अनुपात हैं, जिसे उन्हें सरकारी प्रतिभूतियों में निवेश करना होता है और इसका प्रबंध रिजर्व बैंक के नियंत्रण में रहता है। एसएलआर में आधा प्रतिशत की कमी से बैंकों के पास 40,000 करोड़ रुपये की और नकदी आ जाएगी, जिसका इस्तेमाल वे कर्ज देने के लिए कर सकते हैं।
RBI ने एसएलआर में 0.5 प्रतिशत की कटौती की जो पहले 23 प्रतिशत थी। RBI का अनुमान है कि 2014-15 में आर्थिक वृद्धि दर हल्की बढ़कर 5-6 प्रतिशत रहेगी। एसएलआर में कटौती 14 जून से लागू होगी। RBI खुदरा मुद्रास्फीति को जनवरी 2015 तक 8 प्रतिशत और 2016 तक 6 प्रतिशत पर लाने के लक्ष्य पर कायम है। यह नई सरकार के गठन के बाद रिजर्व बैंक की पहली नीतिगत समीक्षा थी। RBI गवर्नर रघुराम राजन अपने महंगाई विरोधी रुख के लिए जाने जाते हैं।
उन्होंने पहली अप्रैल की समीक्षा में नीतिगत दरों को आठ प्रतिशत पर अपरिवर्तित बनाए रखा था। उन्होंने शुक्रवार को टोक्यो में संवाददाताओं से बातचीत में संकेत दिया था कि सरकार और RBI दोनों ने कमजोर वृद्धि दर के बावजूद महंगाई को नीचे लाने की जरूरत पर जोर दिया है।
ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि महंगाई नियंत्रण की RBI गवर्नर की प्राथमिकता नई सरकार के वृद्धि समर्थक रुख से टकरा सकती है, जो कि ऋण को आसान बनाने पर जोर दे रही है। ऐसे वातावरण में राजन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली से मौद्रिक नीति समीक्षा से पहले ही मुलाकात कर चुके हैं।
राजन ने निर्यात ऋण के लिए पुनर्वित्त सुविधा के लिए उपलब्ध कराई जा रही नकदी की मात्रा को बकाया निर्यात ऋण के 50 प्रतिशत से घटाकर 32 प्रतिशत करने की घोषणा की। हालांकि इसकी क्षतिपूर्ति के लिए निर्यात ऋण देने वाले बैंकों के लिए विशेष आवधिक रेपो सुविधा उनकी कुल मांग और सावधिक देनदारियों के 0.25 प्रतिशत के बराबर कर दी गई है। नए वित्त मंत्री से मुलाकात के बाद राजन ने संवाददाताओं से कहा था कि वृद्धि और महंगाई के बीच संतुलन बनाए रखने को लेकर सरकार और आरबीआई का रुख समान है।
पिछले दिनों तीन बार रेपो दरों में बढ़ोतरी करने वाले राजन ने आने वाले दिनों की संभावनाओं के संबंध में कहा कि यदि मुद्रास्फीति में कमी का यह सिलसिला बना रहा तो ब्याज दरों में और बढ़ोतरी की कोई जरूरत नहीं होगी। उन्होंने कहा कि यदि मुद्रास्फीति में कमी की प्रक्रिया अनुमान से अधिक तेजी से हुई तो RBI ब्याज दरों में भी कटौती पर भी विचार कर सकता है।