रेशमा का जन्म साल 1947 में राजस्थान के बीकानेर शहर में हुआ था। रेशमा पिछले कई महीनो से गले के कैंसर से जूझ रही थीं। यूं तो वह पाकिस्तानी नागरिक थीं, बंटवारे के बाद रेशमा का परिवार कराची चला गया था।
12 साल की उम्र से ही रेशमा गायकी में मशहूर हो गईं। पाकिस्तान रेडियो पर रेशमा ने अपना पहला सूफ़ी गाना लाल मेरी… गाया। बाद में ये एक बड़ी सूफ़ी गायिका के रूप में जानी गईं। लेकिन 3 दशक पहले आई बॉलिवुड फिल्म हीरो के गाने ‘लंबी जुदाई’ से वह भारत में भी लोकप्रिय हो गईं।
रेशमा ने संगीत की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं ली थी। वे दरगाह पर गाती थीं. ऐसे ही, शहबाज कलंदर की दरगाह पर 12 साल की नन्ही रेशमा को गाते सुनकर एक टीवी व रेडियो प्रोड्यूसर ने पाकिस्तान के सरकारी रेडियो पर चर्चित गीत ‘लाल मेरी’ रेशमा से गवाने का इंतजाम किया। यह गीत बेहद लोकप्रिय हुआ और रेशमा पाकिस्तान के पॉपुलर लोक गायकों में शामिल हो गईं।
1960 के दशक में रेशमा का जादू सर चढ़ कर बोला और उन्होंने पाकिस्तानी तथा भारतीय फिल्म उद्योग में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने उन्हें ‘सितारा ए इम्तियाज’ और ‘लीजेंड्स ऑफ पाकिस्तान’ सम्मान दिया था। उन्हें और भी कई राष्ट्रीय सम्मान मिले थे, लेकिन प्रसिद्धि से बेपरवाह रेशमा हमेशा परंपरागत कपड़ों में ही नजर आईं।
रेशमा की जिंदगी में एक दौर ऐसा भी आया, जब वह आर्थिक परेशानियों में घिर गईं। तब पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और संगीत प्रेमी परवेज मुशर्रफ ने उन्हें दस लाख रुपये दिए, ताकि वह अपना कर्ज चुका सकें। बाद में मुशर्रफ ने रेशमा के लिए प्रति माह 10,000 रुपये की सहायता भी तय कर दी।
रेशमा को जब 6 अप्रैल, 2013 को लाहौर के डॉक्टर्स हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था, तो नजम सेठी की अगुवाई वाली तत्कालीन कार्यवाहक सरकार ने उनके इलाज खर्च का भुगतान करने का फैसला किया था।