बिहार के पंचायतो में रिश्वत का बोल बाला है, रिश्वत दो तो बी.पी.एल. में नाम जुड़ जायेगा, रिश्वत दो तो इन्दिरा आवास मिल जायेगा, रिश्वत दो तो स्वच्छ पेय जल हेतु चापाकल मिल जायेगा। रिश्वत दो तो पंचायत सेवक, विकास मित्र, रोजगार सेवक, हल्का कर्मचारी हो या पंचायत प्रतिनिधी सब के सब रिश्वत मिलने पर कुछ भी करने को तैयार हैं।
इसी रिश्वत के खेल मे पंचायत सेवक और विकास मित्र क्या पदाधिकारी भी इतने अन्धे हो गए हैं कि भारतीय नागरीक इन्दिरा आवास के लिए भटक रहे और नेपाली नागरीक को मिल जा रहा इन्दिरा आवास जी हा यह वाक्या हुआ है पूर्वी चम्पारण के बनकटवा प्रखण्ड के जीतपुर का जहां रिश्वत के पैसे से पदाधिकारी और प्रतिनिधी इतने अन्धे हो गए हैं कि एक नेपाली नागरीक को इन्दिरा आवास का लाभ दे बैठे।
जानकारी के मुताबिक नेपाल के बारा जिला के नयका टोला निवासी प्रभु राम अपने मामा के यहां उक्त गांव मे रहकर ईट भठे में कार्य करता था जो किसी प्रकार रिश्वत के बलपर अपना नाम बी.पी.एल. मे जुड़वा लिया और नियम के अनुसार दलालों ने सारी प्रकिया पूरी करा कर उसकी पत्नि राजपति देवी के नाम पर प्रथम किस्त का उठाव जयमूर्तिनगर ग्रामीण बैंक से तीस हजार रूपये हो भी गए अब यहां सोचने बाली बात यह भी है कि बिना पहचान पत्र और अन्य सबूतांे के बैक में भी खाता कैसे खुल गया?
जबकि आम आदमी को खाता खुलवाने में बैकों के चक्कर लगाने पड़ते हैं और बैंको में बगैर मतदाता पहचान पत्र और आवासीय प्रमाण पत्र के खता नहीं खुलते फिर उक्त नेपाली नागरीक का खाता कैसे खुल गया जिसका न मतदाता पहचान पत्र है न ही कोई जमीन के कागजात है न वह भारत का नागरीक है यह वाकया अकेले नहीं है अगर सूक्ष्मता से जांच की जाय तो इन्दिरा आवास व अन्य योजनाओं में चल रहे बडे़ पैमाने पर रिश्वत के खेल का असली चेहरा नजर आयेगा ।