साबिर अली बनाम राजनेता और सुशासन

SABIR ALIलोजपा के जरिए राज्यसभा पहुंचने में कामयाब रहे साबिर अली की सच्चाई अब सामने आने लगी है। एक-एक कर आ रही इन सच्चाइयों में कितनी सच्चाई है यह तो कोई जांच एजेंसी ही बता सकती है। लेकिन जिस तरीके से बेआबरू कर जदयू और अब भाजपा ने उन्हें दल से बाहर किया है, वह राजनीति में दाउद इब्राहिम या फ़िर अन्य किसी बड़े गिरोह या आतंकी संगठनों के हस्तक्षेप को सत्यापित करता दिखता है। इससे पहले जब साबिर अली जदयू की सदस्यता से त्यागपत्र दिया था तब मीडिया के सामने उसने डंके की चोट पर एलान किया था कि उसने जदयू को फ़ाइनांस किया।

तब उसने जदयू के एक बड़े और नीतीश कुमार की नाक के बाल कहे जाने वाले नेता पर कई गंभीर आरोप लगाये थे। इन आरोपों में ट्रांसफ़र पोस्टिंग के जरिए रिश्वत वसूलने से लेकर टिकट बेचने तक के आरोप शामिल थे। साबिर अली के बारे में भाजपा के ही मुख्तार अब्बास नकवी ने मोर्चा खोल दिया। फ़िर मीडिया जगत में एक-एक कर साबिर अली की तमाम सच्चाईयां जनता के समक्ष लाने की होड़ लग गयी। जदयू ने इस पूरे ममले पर टिप्प्णी करने से इन्कार कर दिया। जबकि यह सभी जानते हैं कि अभी दो-तीन दिन पहले ही साबिर अली जदयू में कैसी हैसियत रखते थे।

जदयू में उनकी हैसियत का अनुमान इसी मात्र से लगाया जा सकता है कि उन्हें शिवहर लोकसभा क्षेत्र से उम्मीदवार तक बनाया गया जहां मौजूदा दौर में जदयू के लिए सेफ़ सीट मानी जा रही थी। इसके अलावा दिल्ली में विशेष राज्य के दर्जे की मांग के लिए नीतीश कुमार द्वारा आहूत अधिकार रैली के आयोजन में साबिर अली की कितनी बड़ी भूमिका थी, इसका खुलासा साबिर अली ने स्वयं कर दिया।  असल में सवाल केवल एक साबिर अली का नहीं है। टी सीरिज कंपनी के मालिक गुलशन कुमार की हत्याकांड मे आरोपी और जेल में रह चुके साबिर अली को रातों-रात नेता किसने बनाया।

निश्चित तौर पर इसका श्रेय लोजपा के रामविलास पासवान को जाता है। हालांकि महत्वाकांक्षी साबिर अली ने तब लोजपा सुप्रीमो को भी छोड़कर कुछ अधिक की लालसा में जदयू की सदस्यता ग्रहण कर ली। जदयू ने उन्हें सिर माथे पर बिठाया और एक तरह से दिल्ली में जदयू का सर्वेसर्वा तक बना दिया. सवाल यह है कि साबिर अली के वेश में सभी दलों में कई साबिर अली मौजूद हैं। इन सबकी अपनी भूमिकायें हैं। इस सच को सभी जानते हैं। आम जनता भी अपने आंखों से देखती है।

अभी हाल ही में बिहार सरकार के एक मंत्री पर आतंकियों को पनाह देने का आरोप लगा। नतीजा वही हुआ जिसकी आशा थी। “सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का” वाली कहावत चरितार्थ करते हुए बिहार सरकार ने उन्हें भी पाक साफ़ घोषित करा लिया। यह बिल्कुल ऐसा ही था जैसे कभी बियाडा घोटाले की जांच रिपोर्ट में अपने सगे=-संबंधियों को कीमती जमीन कौड़ियों के भाव दिये जाने के मामले में किया गया था।  बहरहाल, यह तय करना जनता की जिम्मेवारी है कि वह किसे अपना समर्थन देती है। सच्चाई सबके सामने है। रक्तबीज के समान साबिर अली जैसे लोगों की तायदाद बढती जा रही है। धनपशुओं का प्रभाव हर दल में बढता जा रहा है। इनके खिलाफ़ कोई कार्रवाई हो सकती है, इसकी महज कल्पना ही की जा सकती है।